
Against System 23 साल की लंबी लड़ाई, इस महिला के आगे झुक गई सरकार, लैंगिक भेद के विरोध में Wings
Against System लड़ाई किसी जंग से कम नहीं होती। ऐसी ही एक लड़ाई में जीत मिली है केरल के पुलिस अधिकारी विनया एन को। 23 साल तक उन्होंने धैर्य के साथ मुकाबला किया और आखिरकार जीत इंसाफ की हुई। ये लड़ाई किसी निजी हित के लिए नहीं, बल्कि सरकारी आवेदन पत्रों में लैंगिक भेदभाव के खिलाफ लड़ी गई। केरल पुलिस में 23 साल की लड़ाई के बाद मिली जीत की कहानी लैंगिक समानता और भेदभाव के मोर्चे पर मौजूद चुनौतियों की तरफ भी इशारा करती हैं। जानिए विनया एन की विजयगाथा...

त्रिशूर की महिला पुलिस अधिकारी
केरल आम तौर पर सबसे पढ़े लिखे लोगों और शिक्षा जगत की उल्लेखनीय उपलब्धियों के कारण सुर्खियों में रहता है, लेकिन इस बार त्रिशूर के एक पुलिस अधिकारी विनया एन ए के कारण केरल सुर्खियों में है। दो दशक से भी अधिक लंबी लड़ाई के बाद विनया को सफलता मिली है। राज्य सरकार के आवेदन पत्रों में लैंगिक भेदभाव के आरोप के बाद विनया ने 23 साल लंबी लड़ाई में जीत हासिल की है।

1991 में केरल हाईकोर्ट पहुंचे
लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए गत शनिवार (12 नवंबर) को केरल की प्रशासनिक सुधार समिति ने सर्कुलर जारी किया। ये सर्कुलर विनया की व्यक्तिगत जीत है, क्योंकि उन्होंने 1999 में इस मुद्दे को उजागर करते हुए केरल उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की थी। 27 सितंबर, 2001 को हाईकोर्ट ने सभी सरकारी विभागों को निर्देश दिया था कि वे लैंगिक असमानता को उजागर करने वाले आवेदन प्रपत्रों में बयानों को बदलें।

23 साल की लंबी लड़ाई के बाद बदली सूरत
विनया एन की सफलता के बारे में न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया है कि वे इरिनजालकुडा में त्रिशूर ग्रामीण महिला पुलिस स्टेशन की सब इंस्पेक्टर (एसआई) हैं। उन्होंने 23 साल लंबी लड़ाई के बारे में कहा, लैंगिक असमानता के खिलाफ लड़ाई में उन्हें वर्षों लगे, लेकिन उन्हें खुशी है कि कम से कम अब जाकर सरकार को इसका एहसास हो गया है। गत शनिवार को जारी सर्कुलर में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित सरकारी आवेदन फॉर्मों में 'पत्नी' शब्द की जगह 'पति/पत्नी' और 'वह' और 'हिम' शब्द की जगह 'ही/शी' और 'हिम/हर' शब्द का इस्तेमाल करने का आदेश दिया गया है। सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि माता-पिता में से किसी एक या दोनों के नाम शामिल करने के विकल्प भी जोड़े जाने चाहिए।

महिलाओं के साथ भेदभाव कैसे साबित हुआ ?
दो दशक पहले केरल उच्च न्यायालय में दायर याचिका में एसआई विनया ने कई ऐसे उदाहरण दिए थे जहां आवेदन पत्र और सरकारी लिस्टिंग की बात आने पर महिलाओं के लिए अपमानजनक शब्द थे। इनमें प्रपत्रों में केवल पिता या पति का नाम पूछना और प्रत्येक थाने में रखे गए रजिस्टर के सबसे अंत में महिला पुलिस अधिकारियों के नाम सूचीबद्ध करने जैसे उदाहरण शामिल थे।

हाईकोर्ट जाने से पहले लोगों ने क्या कहा ?
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में एसआई विनया ने कहा, जब मैं याचिका दायर करने के लिए तैयार हो रहा था, तो कई लोगों ने मुझे बताया कि यह मूर्खता होगी। कुछ ने कहा कि अदालत इस याचिका को कूड़ेदान में फेंक देगी। हालांकि, हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त क्लर्क ने मेरे प्रयास की सराहना की और रिट याचिका तैयार करने में मेरी मदद की।" हाईकोर्ट के फैसले के तुरंत बाद, पुलिस विभाग ने अपने तरीकों को ठीक किया और सभी अधिकारियों के नामों को वर्णानुक्रम में सूचीबद्ध करना शुरू कर दिया।

महिलाओं के साथ हुए अन्याय का एहसास
चुनौतियों और सरकारी प्रणाली की जटिलता के बारे में एसआई विनया बताते हैं कि उन्हें तीन बार अदालत की अवमानना याचिका दायर करनी पड़ी। जितनी बार मैंने कंटेप्ट याचिका दायर की, मुझे उन सभी आवेदन पत्रों की प्रतियां एकत्र करने के लिए कहा गया, जिनमें ऐसे प्रयोग और शब्द थे जो लैंगिक न्याय के खिलाफ थे। अब, हाईकोर्ट के नवीनतम आदेश के बाद मुझे उम्मीद है कि लोग इन सभी वर्षों में महिलाओं के साथ हुए अन्याय को महसूस करेंगे और उनके साथ सही व्यवहार करने के तरीके समझेंगे। हाईकोर्ट के फैसले के बाद उन्होंने कहा कि अभी भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।

पितृसत्तात्मक सोच के खिलाफ विनया के Wings
विनया ने एक उदाहरण के रूप में हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम 1956 का जिक्र किया। ये केरल में हिंदू परिवारों से संबंधित है। उन्होंने बताया, कानून में यह उल्लेख किया गया है कि एक हिंदू नाबालिग लड़के या अविवाहित लड़की का प्राकृतिक संरक्षक पिता है और उसके बाद ही मां है। उन्होंने सवाल किया कि क्या ऐसा लिखना लैंगिक अन्याय नहीं है ? हमारे देश में पितृसत्ता की हदें ऐसी ही हैं। एसआई विनयाा ने कहा कि व्यवस्था को बदलने की जरूरत पर जागरूकता फैलाने में उनके निजी प्रयासों के अलावा उनके द्वारा स्थापित संगठन Wings का भी योगदान है। उन्होंने कहा कि Wings के माध्यम से कुछ समान विचारधारा वाले लोगों के माध्यम से ये मुहिम जारी रहेगी।

विनया की याचिका और हाईकोर्ट का फैसला
केरल हाईकोर्ट के समक्ष विनया ने दलील दी कि सरकारी फॉर्म में केवल पिता का नाम पूछना महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण है। उन्होंने कहा कि महिला अधिकारियों के लिए गृह मामलों के विभाग द्वारा 'महिला कॉन्स्टेबल' का उपयोग किया जाता है जबकि पुरुषों के लिए केवल 'कॉन्स्टेबल' का उपयोग किया जाता है। विनया की दलीलों के बाद 2001 में केरल हाईकोर्ट का फैसला आया। हाईकोर्ट ने कहा, सरकारी फॉर्म लैंगिक रूप से तटस्थ यानी gender-neutral होने चाहिए। दोनों लिंगों का विकल्प प्रदान करें। अदालत निर्देश देती है कि... फॉर्म के दोबारा प्रकाशन के समय उपयुक्त रूप से संशोधन करें, ताकि...लिंग भेदभाव की शिकायत उत्पन्न न हो।