CAA विरोधी हिंसा को साजिश बताकर यूपी के बड़े मुस्लिम संगठन ने की मांग- फौरन लागू हो NRC
नई दिल्ली- उत्तर प्रदेश का एक बड़ा मुस्लिम संगठन खुलकर एनआरसी के समर्थन में कूद पड़ा है। यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने खुलकर एनआरसी लागू करने की वकालत की है और इसका विरोध करने वाली पार्टियों पर जमकर हमला बोला है। बोर्ड के चीफ वसीम रिजवी ने कहा है कि सिर्फ भारतीय मुसलमान ही हिंदुस्तानी हैं और बाकी सारे घुसपैठिये हैं, जिन्हें देश छोड़ देना चाहिए। शिया वक्फ बोर्ड के चीफ ने नागरिकता संशोधन का कानून के विरोध को भी साजिश का हिस्सा बताया है और कुछ विपक्षी पार्टियों का नाम लेकर उन्हें घुसपैठियों को वोट बैंक बनाने के लिए उनका हमदर्द बताया है।
एनआरसी लागू हो- यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड
नागरिकता संशोधन कानून और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर के विरोध के बीच यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने खुलकर एनआरसी लागू करने की मांग कर दी है। शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने गुरुवार को साफ किया है कि भारतीय मुसलमानों को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स से कोई खतरा नहीं है। बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने कहा है,"हिंदूस्तानी मुसलमानों को एनआरसी से कोई खतरा नहीं है। देश में इसे लागू किया जाना चाहिए। रिजवी ने साफ कहा है कि हिंदू तो उत्पीड़न की वजह से भारत में आते हैं, लेकिन मुसलमान "अपने निजी फायदे या भारत को नुकसान" पहुंचाने के मकसद से आए हैं।असल मुद्दा घुसपैठियों की पहचान करना है, जो कि देश के लिए असली खतरा हैं।" उनका ये बयान ऐसे समय में आया है जब एनआरसी और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ भारी विरोध हो रहा है।
सिर्फ भारतीय मुसलमान ही हिंदुस्तानी- बोर्ड
सबसे बड़ी बात है कि शिया वक्फ बोर्ड ने एनआरसी के विरोध को लेकर विपक्षी पार्टियों पर बहुत गंभीर आरोप लगाए हैं और कहा है कि ये पार्टियां इसलिए डर रही हैं कि एनआरसी लागू होने के बाद इनका असली चेहरा सामने आ जाएगा। रिजवी ने कहा है, "घुसपैठिये टीएमसी और एसपी के वोट बैंक हैं। कांग्रेस बांग्लादेशी, पाकिस्तानी और अफगानिस्तानी घुसपैठियों की मतदाता पहचान पत्र बना रही है। अगर एनआरसी लागू हो जाएगा तो इनका असली चेहरा सबके सामने आ जाएगा।" शिया बोर्ड के चीफ ने जोर देकर दो टूक कहा है कि सिर्फ भारतीय मुलमान ही हिंदुस्तानी हैं और बाकी जो भी हैं वे घुसपैठिये हैं और उन्हें देश छोड़ देना चाहिए।
'सीएए विरोधी हिंसा साजिश का हिस्सा'
सबसे बड़ी बात ये है कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हाल में हुई हिंसा को उन्होंने 'साजिश' का एक हिस्सा बताया है। बता दें कि असम में जो एनआरसी किया गया था उसका मकसद 24 मार्च, 1971 या उससे पहले वहां रह रहे भारतीय नागरिकों और गैरकानूनी बांग्लादेशी घुसपैठियों की भी पहचान करना था। 30 अगस्त, 2019 को जारी हुए एनआरसी की फाइनल लिस्ट में 3.3 करोड़ आवेदनों में से 19 लाख लोगों को एनआरसी से बाहर रखा गया था।
देशभर में सीएए और एनआरसी का विरोध
गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देशभर में विरोध का दौर जारी है। इसी दौरान केंद्र सरकार ने जो नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर को जनगणना के सिलसिले में अपडेट करने का फैसला किया है उसके बाद से यह विवाद और गहरा चुका है। विपक्षी पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि एनपीआर के जरिए असल में मोदी सरकार नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स का ही काम करना चाहती है। जबकि, सरकार की ओर से गृहमंत्री अमित शाह साफ कर चुके हैं कि एनपीआर का एनआरसी से कोई लेना-देना नहीं है। उधर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि एनआरसी लागू करने को लेकर सरकार ने अभी कोई फैसला नहीं लिया है।
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