6 दिसंबर: शौर्य दिवस बनाम काला दिवस
अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद से ही छह दिसंबर को हर साल विश्व हिन्दू परिषद और उसके सहयोगी संगठन अयोध्या समेत देश भर में शौर्य दिवस मनाते रहे हैं. वहीं मुस्लिम समाज इसे काला दिवस के रूप में मनाता रहा है, लेकिन अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद क्या इस बार भी ये दोनों पक्ष ऐसा करेंगे, इसे लेकर कोई एकराय नहीं है.
अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद से ही छह दिसंबर को हर साल विश्व हिन्दू परिषद और उसके सहयोगी संगठन अयोध्या समेत देश भर में शौर्य दिवस मनाते रहे हैं.
वहीं मुस्लिम समाज इसे काला दिवस के रूप में मनाता रहा है, लेकिन अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद क्या इस बार भी ये दोनों पक्ष ऐसा करेंगे, इसे लेकर कोई एकराय नहीं है.
अयोध्या में धारा 144 को देखते हुए प्रशासन भी किसी तरह के ऐसे कार्यक्रम को लेकर सतर्क और सख़्त है जिससे सांप्रदायिक सौहार्द को कोई नुक़सान पहुंचे.
प्रशासन ने बिना किसी सूचना के कोई भी कार्यक्रम आयोजित करने पर सख़्त मनाही की है तो दूसरी ओर रामलला की ओर जाने वाले रास्ते की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई है.
विश्व हिन्दू परिषद की तरफ से छह दिसंबर को होने वाले शौर्य दिवस का मुख्य आयोजन अयोध्या में होता है, जबकि अन्य जगहों पर भी इस मौक़े पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
शौर्य दिवस पर एकमत नहीं विश्व हिंदू परिषद
विश्व हिन्दू परिषद की स्थानीय इकाई ने इस बार शौर्य दिवस न मनाने का फ़ैसला किया है लेकिन परिषद की केंद्रीय इकाई ने स्पष्ट तौर पर यह संदेश जारी किया है कि शौर्य दिवस पहले की भांति ही इस बार भी मनाया जाएगा.
विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने बीबीसी को बताया, "हमारे शौर्य दिवस कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं हुआ है. ये संपूर्ण भारत वर्ष में वैसे ही मनाया जाएगा जैसे हर साल मनाया जाता है. इस कार्यक्रम से न तो कभी सौहार्द बिगड़ा है और न ही आगे बिगड़ेगा. रामजन्मभूमि पर निर्णय हर्ष का विषय है लेकिन इसकी वजह से शौर्य दिवस कार्यक्रम स्थगित नहीं होगा."
वहीं विश्व हिन्दू परिषद की स्थानीय इकाई ने साफ़तौर पर शौर्य दिवस न मनाने का फ़ैसला किया है.
विश्व हिन्दू परिषद के प्रदेश प्रवक्ता शरद शर्मा कहते हैं, "संतों के निर्देश पर ही अयोध्या में वीएचपी अपनी कार्ययोजना बनाती है. श्रीराम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष और मणिराम छावनी के महंत नृत्यगोपाल दास ने साफ़ शब्दों में कहा है कि मंदिर के पक्ष में फ़ैसला आने के बाद खुशी और ग़म के कार्यक्रम आयोजित करने का औचित्य नहीं है.''
''इनका आयोजन अब इस साल से बंद होना चाहिए. तो उसी के अनुसार हम इस बार ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं करने जा रहे हैं. हां, घरों, मंदिरों इत्यादि जगहों पर दीप जलाना, पूजा अर्चना जैसे कार्यक्रम किए जा सकते हैं."
यह पूछे जाने पर कि वीएचपी के केंद्रीय नेतृत्व ने तो स्पष्ट रूप से शौर्य दिवस मनाने को कहा है, शरद शर्मा इससे अनभिज्ञता जताते हुए कहते हैं कि केंद्रीय नेतृत्व ने गीता जयंती मनाने की बात कही है और गीता जयंती आठ दिसंबर को है.
गीता जयंती मनाने की बात को विनोद बंसल कुछ इस तरह स्पष्ट करते हैं, "बाबरी मस्जिद जिस दिन ढहाई गई थी उस दिन गीता जयंती थी. उसी उपलक्ष्य में हम शौर्य दिवस गीता जयंती के दिन मनाते हैं. इस बार यह आठ दिसंबर को पड़ रही है लेकिन यह कार्यक्रम छह दिसंबर से शुरू होकर दस दिसंबर तक आयोजित किया जाएंगे."
मुस्लिम पक्ष में भी मतभेद
वहीं मुस्लिम पक्ष भी इस पर एकमत नहीं हैं कि इस बार बाबरी विध्वंस की बरसी पर योमे-ग़म यानी शोक दिवस या काला दिवस के रूप में मनाएं या नहीं.
अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद में मुख्य पक्षकार रहे इक़बाल हाशिम अंसारी कहते हैं कि अब जबकि फ़ैसला आ चुका है और विवाद क़ानूनी तौर पर भी ख़त्म हो चुका है तो इसे मनाने का कोई औचित्य नहीं है. लेकिन एक अन्य पक्षकार हाजी महबूब कहते हैं कि हर बार की तरह इस बार भी योमे-ग़म मनाया जाएगा.
हाजी महबूब कहते हैं, "बाबरी मस्जिद का गिराया जाना हमारे लिए एक काला दिन था और हम उसी तरह से इस दिन शोक मनाएंगे जैसे कि पिछले 27 साल से मनाते चले आ रहे हैं. जहां तक धारा 144 का सवाल है तो यह कार्यक्रम हमारे घर में होता है और इस बार भी वहीं होगा. इसलिए धारा 144 का इस पर कोई असर नहीं होगा. जुलूस वग़ैरह तो हम लोग वैसे भी नहीं निकालते हैं."
बाबरी विध्वंस की बरसी
वहीं बाबरी विध्वंस की बरसी को लेकर अयोध्या में प्रशासन ने सख़्ती बरतना शुरू कर दिया है. धारा 144 तो यहां पिछले महीने यानी नवंबर से ही लागू है.
अयोध्या के ज़िलाधिकारी अनुज कुमार झा कहते हैं, "अयोध्या मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए प्रशासन पूरी सख़्ती से क़ानून व्यवस्था बनाए रखेगा. सार्वजनिक कार्यक्रमों को बिना अनुमति के आयोजित करने की छूट नहीं है. छह दिसंबर को रामलला की ओर जाने वाले सभी मार्गों पर बैरीकेडिंग रहेगी. सुरक्षा के पर्याप्त इंतज़ाम किए गए हैं और निषेधाज्ञा का कड़ाई से पालन किया जाएगा."
शौर्य दिवस मनाने या न मनाने की दुविधा पर वरिष्ठ पत्रकार अमिता वर्मा कहती हैं, "आरएसएस या वीएचपी का कोई भी कार्यक्रम बिना बीजेपी की सहमति से सफल नहीं हो सकता क्योंकि बीजेपी का कार्यकर्ता उसमें शामिल होता है और संख्या बढ़ाता है.
''बीजेपी इसमें शामिल नहीं होगी क्योंकि एक तो फ़ैसला मंदिर के पक्ष में आया है और दूसरे सरकार उनकी है. किसी भी तरह से क़ानून-व्यवस्था पर आंच आती है तो दोष बीजेपी पर ही जाएगा, इसलिए वो इसमें नहीं कूदेगी.''
''जहां तक वीएचपी के केंद्रीय नेतृत्व का सवाल है तो वो ये संदेश देना चाहती है कि जितना महत्वपूर्ण उसके लिए मंदिर निर्माण है, बाबरी विध्वंस की ख़ुशी भी उससे कम महत्वपूर्ण नहीं है."
बीजेपी सांसद के मुंह से शौर्य दिवस का ज़िक्र
बीजेपी की ओर से इस बारे में तो कोई बयान नहीं आया है लेकिन उन्नाव से बीजेपी सांसद साक्षी महराज ने शिवसेना को चुनौती देने के बहाने शौर्य दिवस का ज़िक्र छेड़ ही दिया.
उन्नाव में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "शिवसेना हर साल 6 दिसंबर को शौर्य दिवस मनाया करती थी. देखना है कि इस बार शिवसेना शौर्य दिवस मनाएगी या काला दिवस."
ख़ुद साक्षी महराज शौर्य दिवस मनाएंगे या नहीं, इस बारे में कुछ भी कहने से उन्होंने साफ़तौर पर मना कर दिया. वहीं शिवसेना के प्रदेश सचिव मांगेराम का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला सभी ने स्वीकार किया है, इसलिए इस बार शिवसेना विजय दिवस नहीं मनाएगी.
अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया गया था.
हिन्दू संगठन इस दिन शौर्य दिवस तो मुस्लिम संगठन काला दिवस मनाते हैं. ऐसे आयोजनों के चलते कई बार दोनों पक्ष आमने-सामने भी आ चुके हैं.