PM मोदी ने म्यांमार दौरे पर आंग सान सू की को तोहफे में क्या दिया, जानिए
शिमला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने म्यांमार दौरे के दौरान वहां की स्टेट काऊंसलर डाव आंग सान सू की से मिले तो उन्हें एक ऐसा नायाब तोहफा दिया जिसका रिश्ता हिमाचल प्रदेश से है। दरअसल म्यांमार की सत्ता संभालने से पहले सू की शिमला में रही हैं। यहां पर उन्होंने अध्यन किया और अपनी पुस्तकें भी लिखीं। प्रधानमंत्री मोदी ने सू की से अपनी मुलाकात के दौरान उन्हें भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला में सू की तरफ से मई, 1986 में प्रस्तुत किया शोध पत्र भेंट किया। इस शोध का शीर्षक दि ग्रोथ एंड डिवैल्पमैंट ऑफ बर्मीस एंड इंडियन इंटैक्चुअल ट्रडिशन्स अंडर कोलोनिएलिज: ए कम्पेरेटिव स्टडी है। जिससे न केवल सू की के जेहन में पुरानी यादें ताजा हो आईं। बल्कि शिमला के लोगों के लिये भी यह पल यादगार बन गया।
शिमला में रहती थीं सू की
बता दें कि आंग सान सू की शिमला स्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में फेलो यानी अध्येता रही हैं। यहीं रहकर उन्होंने अपनी चर्चित पुस्तक बर्मा एंड इंडिया, सम आस्पेकट्स ऑफ इंटेलेक्चुअल लाइफ अंडर कोलोनियललिजम पूरी की। इसका पहला संस्करण वर्ष 1989 में प्रकाशित हुआ। इस किताब की इतनी मांग हुई कि इसका दूसरा संस्करण छापना पड़ा। जब दिल्ली में नेहरू जयंती पर वर्ष 2012 में किताब का दूसरा संस्करण छपा तो आंग सान सू की ने अपने भाषण में करीब पांच मिनट तक शिमला का जिक्र किया और कहा, द बेस्ट पार्ट ऑफ माई लाइफ वाज द टाइम विच आई स्पेंट इन शिमला। यही नहीं, उन्होंने इच्छा जताई थी कि वो फिर से शिमला आना चाहेंगी। किताब के दूसरे संस्करण को प्रकाश में लाने के लिए मेहनत करने वाले संस्थान के पूर्व निदेशक पीटर डिसूजा और जनसंपर्क अधिकारी अशोक शर्मा इस बात के गवाह रहे हैं। अशोक शर्मा के अनुसार सू की संस्थान के वातावरण और वहां की आत्मीयता की कायल थीं।
सू की पति भी यहीं फेलो थे
सू की फरवरी 1987 से लेकर अगस्त 1987 तक यहां अध्येता रहीं। उनके पति माइकल एरिस भी यहां फेलो रहे हैं। तब भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के निदेशक मार्गरेट चटर्जी थे। दरअसल सू की वर्ष 1986 में जापान में अध्ययन कर रही थीं। उनके पति माइकल एरिस यहां फेलो थे। उनकी फैलोशिप ढाई साल की थी, लेकिन सू की छह महीने तक ही यहां फेलो रहीं। उनका आवेदन आने के बाद केंद्र सरकार से अनुमति मिलने में भी काफी देर लगी। अंतत: फरवरी, 1987 में वह यहां आ गईं। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित सू की के संघर्ष और लक्ष्य के प्रति समर्पण की इस समय पूरी दुनिया में तारीफ हो रही है। अपने संघर्ष के दिनों में सू की भारत में भी रही हैं। वह शिमला स्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में अध्येता के तौर पर आईं। उनके पति माइकल एरिस भी यहां अध्येता थे।
सू की ने की लोकतंत्र की साधना
संस्थान के साथ गहराई से जुड़े रहे पूर्व जनसंपर्क अधिकारी अशोक शर्मा के अनुसार सू की अपना अधिकांश समय स्टडी रूम में बिताती थीं। वह यहां लोकतंत्र के मूलभूत तत्वों की साधना में जुटी रहीं। यहां की धरती और वातावरण ने उनके मन में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति संघर्ष का जज्बा और तेज किया। संस्थान में रहते हुए उनकी पुस्तक पूरी हुई। संस्थान के पब्लिकेशन ने ही उनकी पुस्तक को छापा। इसी पुस्तक के दूसरे संस्करण का विमोचन 14 नवंबर, 2012 को दिल्ली में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने किया था। इस अवसर पर सोनिया गांधी और कर्ण सिंह भी मौजूद थे। सू की उसी समय नजरबंदी से रिहा हुई थीं।
PM मोदी पहले भी दे चुके हैं ऐसा गिफ्ट
बता दें कि इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने अमरीका और इजराइल दौरे के दौरान भी हिमाचल प्रदेश से जुड़े उपहार और टोपी को लेकर सुर्खियों में आए थे। अमरीका यात्रा के दौरान मोदी ने हिमाचली उत्पादों को वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी पत्नी मेलानिया ट्रंप को भेंट किया था। इसमें उन्होंने हिमाचली कारीगरों के हाथों से बनी शॉल के साथ यहां पर बनाए गए चांदी के कंगन और कांगड़ा की प्रसिद्ध चाय और शहद को भेंट किया था। इसके बाद नरेंद्र मोदी अपनी इजराइल यात्रा के दौरान वहां के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ जब होलोकॉस्ट संग्रहालय गए तो उस समय वह हिमाचली टोपी में नजर आए। प्रधानमंत्री के इस आचरण का प्रदेश भाजपा के बड़े नेताओं ने स्वागत करके उनकी जमकर तारीफ भी की थी।