यमुना के दिल्ली खंड के लिए ई-फ्लो बढ़ने से आ सकती है 'पर्यावरण आपदा': हरियाणा सरकार
नई दिल्ली। हरियाणा सरकार ने यमुना के दिल्ली खंड में न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह (ई-फ्लो) की मात्रा बढ़ाने के सुझावों के साथ "पूरी तरह से असहमति" प्रकट की है।
नई दिल्ली। हरियाणा सरकार ने यमुना के दिल्ली खंड में न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह (ई-फ्लो) की मात्रा बढ़ाने के सुझावों के साथ "पूरी तरह से असहमति" प्रकट की है। सरकार का कहना है कि, ऐसा करने से राज्य में "पर्यावरणीय आपदा" आ सकती है।
प्रकृति
के
संरक्षण
के
क्षेत्र
में
कार्य
करने
वाले
अंतर्राष्ट्रीय
संघ
के
अनुसार,
पर्यावरणीय
प्रवाह
(ई-फ्लो)
पारिस्थितिक
तंत्र
और
उनके
लाभ
को
बनाए
रखने
के
लिए
नदी,
आर्द्रभूमि
या
तटीय
क्षेत्र
के
लिए
प्रदान
किया
जाने
वाला
पानी
है।
मालूम
हो
कि
नेशनल
इंस्टीट्यूट
ऑफ
हाइड्रोलॉजी
(NIH),
रुड़की
ने
हाल
ही
में
किए
गए
एक
अध्ययन
के
आधार
पर
सिफारिश
की
थी
कि
नीचे
की
ओर
पारिस्थितिक
तंत्र
को
बनाए
रखने
के
लिए
हरियाणा
के
यमुनानगर
जिले
के
हथनीकुंड
बैराज
से
पिछले
साल
जनवरी
और
फरवरी
में
छोड़े
गए
10
क्यूमेक्स
पानी
की
बजाय
नदी
में
23
क्यूबिक
मीटर
प्रति
सेकंड
(क्यूमेक)
पानी
छोड़ा
जाना
चाहिए।
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गौरतलब है कि हथिनीकुंड बैराज क्रमशः पश्चिमी यमुना नहर (WYC) और पूर्वी यमुना नहर (EYC) के माध्यम से हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सिंचाई के लिए नदी के प्रवाह को नियंत्रित करता है और दिल्ली नगरपालिका को पानी की आपूर्ति करता है।
इसके बाद हरियाणा सरकार ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को हाल ही में दिए गए जवाब में कहा, "राज्य 1994 के एमओयू के अनुसार हथिनीकुंड बैराज से यमुना के 10 क्यूसेक पानी को दैनिक आधार पर पहले ही जारी कर रहा है और यदि कोई साझीदार राज्य चाहता है तो आगे भी इस एमओयू को 2025 के बाद फिर से जारी किया जा सकता है।
राज्य ने एनआईएच द्वारा ई-प्रवाह की मात्रा बढ़ाने के लिए की गई सिफारिशों पर पूरी तरह असमति प्रकट करते हुए कहा है कि इसके कार्यान्वयन से हरियाणा में "पर्यावरणीय आपदा" हो सकती है। हरियाणा सरकार ने जल शक्ति मंत्रालय (MoJS) के साथ भी इस मामले को उठाया है और "इस संबंध में NIH रिपोर्ट को स्वीकार न करने का आग्रह किया है।
रिपोर्ट के आधार पर, एनजीटी द्वारा नियुक्त यमुना निगरानी समिति ने पिछले साल उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के बीच 1994 में जल प्रवाह समझौते को फिर से जारी करने की सिफारिश की थी ताकि वर्ष भर नदी में पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित हो सके। NIH की रिपोर्ट में कहा गया था कि 26 क्यूमेक्स, 29 क्यूमेक्स, 34 क्यूमेक्स और 44 क्यूमेक्स पानी क्रमशः मार्च, अप्रैल, मई और जून में नदी में छोड़ा जाना चाहिए।
वर्तमान में 10 क्यूमेक्स पानी नदी में मार्च, अप्रैल और मई में और 18 क्यूमेक्स जून में छोड़ा जा रहा है। रिपोर्ट में 275 क्यूसेक, 298 क्यूमेक्स और 160 क्यूमेक्स के बजाय जुलाई, अगस्त और सितंबर में 158 क्यूमेक्स, 220 क्यूमेक्स और 149 क्यूमेक्स न्यूनतम पानी रिलीज करने की सिफारिश की गई है।
NIH की रिपोर्ट के आधार पर, पैनल ने कहा था कि जल शक्ति मंत्रालय, ऊपरी यमुना रिवर बोर्ड और तटीय राज्यों को अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में बैराज से क्रमशः 44 क्यूमेक्स, 27 क्यूमेक्स और 24 क्यूमेक्स पानी नदी में छोड़ना सुनिश्चित करना चाहिए। एनआईएच ने अपनी रिपोर्ट में अधिकार क्षेत्रों में सिंचाई दक्षता में वृद्धि करके डब्ल्यूवाईसी और ईवाईसी की विविधता में कमी लाने की सिफारिश की थी।