गुजरात चुनाव में आदिवासी वोटों पर भाजपा-कांग्रेस की नजर, राजस्थान के मानगढ़ धाम से हो रही साधने की कोशिश
गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान जल्द किया जाएगा। गुजरात के अलावा राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है। ऐसे में दोनों राज्यों में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस आदिवासी वोटों पर फोकस कर रही हैं। ताकी विधानसभा चुनाव में इनके वोट्स लिए जा सकें। इसी क्रम में भारतीय जनता पार्टी राजस्थान में 1 नवंबर को 76 प्रतिशत आदिवासी आबादी वाले जिले बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम में एक सार्वजनिक सभा करने जा रही है। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिस्सा लेंगे। इस बात की जानकारी उन्होंने रविवार को अपने मन की बात के प्रसारण में दी। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह आयोजन नवंबर 1913 में अंग्रेजों द्वारा मारे गए आदिवासियों की स्मृति का सम्मान के रूप में मनाया जाएगा।
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गुजरात के अलावा राजस्थान में भी आदिवासी वोटों को भुनाने की हो रही है कोशिश
भारतीय जनता पार्टी इस आयोजन के जरिए आदिवासी वोट का फायदा गुजरात चुनाव के अलावा अब से एक साल बाद राजस्थान में होने वाले चुनावों में लेने की कोशिश कर रही है। क्योंकि बांसवाड़ा का मानगढ़ जिला गुजरात के बॉर्डर पर पड़ता है। ऐसे में पार्टी एक तीर से दो निशाने को साधने की कोशिश कर रही है। हालांकि, कांग्रेस भी इसको लेकर सतर्क हो गई है। आदिवासी वोटों का भाजपा को ज्यादा फायदा न मिल सके, इसलिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा था। इस पत्र के जरिए उन्होंने को मानगढ़ धाम को 'राष्ट्रीय स्मारक' घोषित करने की मांग की थी।
मानगढ़ को आदिवासी मानते हैं पवित्र स्थल
गुजरात, राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश में भी 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन तीनों ही राज्यों में आदिवासियों की संख्या अच्छी खासी है। आदिवासियों के लिए मानगढ़ धाम एक पवित्र स्थल है। 17 नवंबर, 1913 को, ब्रिटिश सेना ने मानगढ़ में अनुमानित 1500 भील आदिवासियों को मार डाला था। यह नरसंहार जलियांवाला बाग से छह साल पहले हुआ था। इस नरसंहार को आदिवासी जलियांवाला बाग कांड कहा जाता है।
कांग्रेस भारतीय ट्राइबल पार्टी के राजनीतिक विरासत की हथियाने की कोशिश कर रही हैं दोनों पार्टियां
इस क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) के राजनीतिक विरासत को हथियाने की कोशिश कर रही हैं। BTP की स्थापना 2017 में सात बार के गुजरात विधायक छोटूभाई वसावा ने की थी। बीटीपी को दक्षिणी राजस्थान के भील आदिवासियों का समर्थन प्राप्त है। बीटीपी की तरफ से एक अलग आदिवासी कानून बनाने की मांग की जा रही है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के सामना के फैसले और आदिवासी क्षेत्र में खनन रोकने की भी मांग की जा रही है।
2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस को नहीं मिला था ज्यादा आदिवासी वोट
परंपरागत रूप से भील कांग्रेस के मतदाता थे, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनावों में संगवारा और चौरासी सीटों से बीटीपी उम्मीदवारों को अपना विधायक चुना। इन दोनों ही विधानसभा सीटों पर 2013 के चुनावों की तुलना में 2018 के चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के वोट शेयर में तेजी से गिरावट आई। जुलाई 2020 में जब राजस्थान में कांग्रेस सचिन पायलट के विद्रोह के बाद संकट में थी, तब बीटीपी ने सत्तारूढ़ दल को अपना समर्थन दिया था। हालांकि, अक्टूबर 2020 में बीटीपी ने कांग्रेस पर डूंगरपुर में जिला प्रमुख चुनावों में भाजपा को तरजीह देने का आरोप लगाया।
बीटीबी का कांग्रेस पर वादा नहीं पूरा करने का भी है आरोप
हाल ही में बीटीपी ने कांग्रेस सरकार पर आदिवासियों से किए गए अपने वादों को पूरा नहीं करने का भी आरोप लगाया था। सरकार को सौंपे गए 17-सूत्रीय ज्ञापन में बीटीपी ने इस साल सितंबर में डूंगरपुर में हिंसा से निपटने को लेकर ढीलाई का भी आरोप लगाया है। ऐसे में भाजापा को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री क्षेत्र के आदिवासियों को संबोधित करते हुए अपने पक्ष में इस असंतोष का फायदा उठाएंगे।