Moral Police and Hijab Protests: क्या होती है मोरल पुलिस? क्यों ईरान में इसके विरोध में बढ़ रही है नाराजगी?
Moral Police and Hijab Protests: ईरान में हिजाब विरोधी प्रदर्शनों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब प्रदर्शनकारियों के निशाने पर कट्टरपंथी मौलवी भी आ गए हैं। प्रदर्शनकारियों द्वारा एक मौलवी की पगड़ी उछालने का मामला सामने आया है।
ईरान में 16 सितंबर 2022 को 22 वर्षीय युवती महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में मौत के विरोध में प्रदर्शन शुरू हुए थे। महसा अमीनी को ईरान की 'मॉरल पुलिस' ने कथित तौर पर ठीक से हिजाब न पहनने के आरोप में हिरासत में लिया था और बाद में हिरासत में ही उसकी मौत हो गई।
महसा अमीनी अपने भाई से मिलने तेहरान आई थी और ढंग से हिजाब न पहनने के कारण उसे गिरफ्तार कर लिया गया तथा बुरी तरह पीटा गया। पुलिस की हिरासत में वह कोमा में चली गई और उसकी मौत हो गई।
आरोप है कि उसकी मृत्यु का कारण मोरल पुलिस द्वारा उससे हिंसक व्यवहार और मारपीट है। अमीनी की मौत के बाद ईरान में 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' पर प्रतिबंध और महिलाओं के लिए 'धार्मिक आचरण' को मोरल पुलिस द्वारा सख्ती से लागू किए जाने के खिलाफ जनाक्रोश भड़क उठा, जिसमें महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने हिजाब को सरेआम फाड़ दिया और उसको जलाना शुरू कर दिया। कई महिलाओं ने तो अपने सिर के बाल तक काट डाले।
प्रदर्शनकारियों ने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामनेई के खिलाफ नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों को पुलिस और सेना ने कुचलने का प्रयास किया। कहा जाता है कि 129 शहरों में फैले प्रदर्शन में सुरक्षाबलों की कार्रवाई में अब तक 298 लोगों की मौत हो गई है और 14 हज़ार से अधिक की गिरफ्तारी हो चुकी है। मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं हैं।
ईरानी गुप्तचर मंत्रालय ने कहा है कि इन प्रदर्शनकारियों के पीछे विदेशी शक्तियों का हाथ है और ये प्रदर्शन गैरकानूनी हैं, इसलिए इनमें भाग लेने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। ईरान सरकार के संगठन 'पासदारान-ए-इंकलाब' ने देश की न्यायपालिका से मांग की है कि देश में झूठी खबरें और अफवाहें फैलाने वालों के खिलाफ विशेष अदालतों में मुकदमे चलाए जाएं।
मॉरल पुलिस अपने सख्त रवैये के कारण आलोचना का शिकार होती रही है। ईरान में शरीयत के कानूनों को सख्ती से लागू किया जा रहा है। वर्तमान ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी को कट्टरपंथी माना जाता है। पिछले वर्ष राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद उन्होंने देश भर में निगरानी करने वाले कैमरे लगाने के निर्देश दिए थे, ताकि हिजाब न पहनने वाली और अश्लील लिबास पहनने वाली महिलाओं का पता लगाकर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सके।
ईरानी कानून के अनुसार अगर कोई ईरानी महिला हिजाब के कानून के खिलाफ ऑनलाइन सवाल उठाती है या शरीयत कानून के खिलाफ सोशल मीडिया पर कोई सामग्री पोस्ट करती है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधन है, जिसमें कैद और जुर्माना दोनों हैं। इन पाबंदियों के खिलाफ ईरानी जनता भड़क उठी है और सोशल मीडिया पर पश्चिमी लिबास और बिना हिजाब पहने महिलाओं की तस्वीरों को पोस्ट करने की घटनाओं में भारी वृद्धि हुई है।
निष्कासित ईरानी शहंशाह मोहम्मद रजा पहलवी के शासनकाल में ईरानी समाज को मुस्लिम देशों में सबसे खुला समाज माना जाता था। ईरानी महिलाएं पश्चिमी देशों की महिलाओं जैसी लिबास पहनती थीं और वे किसी तरह का पर्दा नहीं करती थीं।
1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद उनके पश्चिमी लिबास और पश्चिमी महिलाओं जैसे जीवन गुजारने पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए। पश्चिमी लिबास पहनने वाली महिलाओं को व्यापक रूप से गिरफ्तार किया गया। सऊदी अरब की तरह शरई तौर तरीकों को लागू करने के लिए 'मॉरल पुलिस' नामक एक विशेष पुलिस शाखा का गठन किया गया और उसे इस्लाम विरुद्ध आचरण करने वाली महिलाओं से निपटने के लिए व्यापक अधिकार दिए गए।
क्या है मॉरल पुलिस?
मॉरल पुलिस के खौफ में 17 देशों की मुस्लिम महिलाएं जी रही हैं। इस्लामिक देशों में मॉरल पुलिस की ऐसी व्यवस्था है, जो शरिया के नियमों का उल्लंघन करने पर संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कठोर कार्रवाई करती है और उन्हें 'सोशल कोड ऑफ़ कंडक्ट्स' का अनुपालन कराती है। यह व्यवस्था उन देशों में है जो शरिया के आधार पर इस्लामिक देश हैं। ईरान में मॉरल पुलिस को 'गश्त-ए-इरशाद' का नाम दिया गया है। इसके अधिकांश सदस्य कट्टरपंथी हैं, जो सख्ती से शरिया नियमों का अनुपालन कराते हैं।
सऊदी अरब में इस तरह की पुलिस 1940 से काम कर रही है और इसे 'कमेटी फॉर द प्रमोशन ऑफ़ वर्चू एंड द प्रिवेंशन ऑफ़ वाइस' का नाम दिया गया है। इसके पुलिसकर्मी 'मुतवीन' कहलाते हैं और वे सख्ती से इस्लामिक शरिया को लागू करते हैं।
सूडान में मॉरल पुलिस का गठन 1993 में तत्कालीन राष्ट्रपति उमर अल-बशीर के शासनकाल में हुआ था और इसे 'पब्लिक आर्डर पुलिस' का नाम दिया गया है। सूडान में भी समाज के एक बड़े हिस्से में इसको लेकर आक्रोश है, लेकिन रूढ़िवादियों को सूडान की यह मॉरल पुलिस खूब पसंद आती है।
मलेशिया में हिजाब और अन्य इस्लामिक वेशभूषा को सख्ती से लागू करने के लिए एक विशेष विभाग 'मलेशियन रिलीजियस एजेंसी- फेडरल टेरिटोरीज ऑफ़ इस्लामिक रिलीजियस डिपार्टमेंट' (जॉवी) की स्थापना की गई है, जो विवाहेत्तर संबंधों, शराब पीना, रमजान में रोजा न रखने और नमाज न पढ़ने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करती है। आरोपियों के खिलाफ मुकदमों की सुनवाई शरीयत कानून के तहत किया जाता है।
नाइजीरिया में इस पुलिस का नाम 'हिस्बा' रखा गया है। कहा जाता है कि इसके सदस्य काफी कम पढ़े-लिखे होते हैं। अफगानिस्तान में तालिबानी शासन में तो क्रूरता के साथ इस्लामिक शरिया कानून को लागू किया गया और उसका उल्लंघन करने वाली महिलाओं को कड़ी सजा दी जाती रही है।