अंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस- अध्ययन में गुजरता था बाबा का अंतिम वक्त
नई दिल्ली( विवेक शुक्ला) अपनी जिंदगी के अंतिम साल बाबा साहब अंबेडकर ने राजधानी के 26 अलीपुर रोड में अपनी पत्नी सविता जी के साथ गुजारे थे। उन्होंने पंडित नेहरु की कैबिनेट से 31 अक्तूबर,1951 को इस्तीफा दे दिया था और अगले ही दिन वे इस बंगले में आ गए थे।
सन 2000 के आसपास देशभर के अंबेडकवादी मांग करने लगे कि 26 अलीपुर रोड के बंगले को बाबा साहब के स्थायी स्मारक के रूप में विकसित किया जाए। मांग ने जोर पकड़ा। तब सरकार भी हरकत में आई। उसने जिंदल परिवार से बंगले को लिया। बदले में उसे बंगले के बराबर जमीन उसी क्षेत्र में दी।
देश को समर्पित
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2 दिसंबर,2003 को इस बंगले को देश को समर्पित किया बाबा साहब के स्मारक के रूप में। हालांकि जानकार कहते हैं कि जिंदल परिवार ने पूरी कोशिश की थी कि उसे अपना बंगला नहीं देना पड़े।
26 अलीपुर रोड खास जगह तो है। बंगले की हालत भी उम्दा है। 2003 से पहले तो बहुत ही कम लोगों को मालूम था कि इस बंगले का बाबा साहब से कितना करीबी संबंध रहा है। 26 अलीपुर रोड अब खास जगह हो गई है। बंगले की हालत भी उम्दा है। 2003 से पहले तो किसी को मालूम ही नहीं था कि इसका बाबा साहब से कितना करीबी संबंध है। हालांकि कुछ लोगों को लगता है कि 26 अलीपुर रोड को सिर्फ सांकेतिक रूप से बाबा साहेब का स्मारक बनाना काफी नहीं होगा। यहां पर उनके जीवन से जुड़ी अहम चीजों को स्थापित करना भी होगा।
सांकेतिक रेंट देते थे
26 अलीपुर रोड पर आने के बाद वे 6 दिसंबर,1956 तक यानी अपनी मृत्यु तक यहां पर ही रहे। दरअसल उन्हें सांकेतिक रेंट पर इस बंगले में रहने का आग्रह किया था राजस्थान के सिरोही के राजा ने। उनके आग्रह पर वे इधर आ गए। बाबा साहब पर लगातार अध्ययन कर रहे सुधीर हिलसायन ने बताया कि बाबा साहब ने 26 अलीपुर रोड पर रहते हुए ही बुद्धा एंड हिज धम्मा नाम से अपनी बेहद कालजयी पुस्तक लिखी।
अध्ययन में गुजरता था वक्त
बाबा साहेब का उस दौर में ज्यादातर वक्त अध्ययन और लेखन कार्यों में ही गुजरता था। उनके पीए नानक चन्द्र रत्तू आमतौर पर उनके पास रहते थे।
आप जैसे ही 26 अलीपुर रोड के अंदर पहुंचते हैं तो आपको कहीं ना कहीं लगता है कि बाबा साहेब यहां पर ही कहीं होंगे। वे कभी भी कहीं से आपके सामने खड़े हो जाएंगे। बेशक, जिस जगह पर बाबा साहेब जैसी शिखर हस्ती ने अपने जीवन के कुछ बरस बिताए वह जगह अपने आप में खास तो है। अलीपुर रोड के इस बंगले में बहुत से कमरे हैं। बंगले के आगे एक सुंदर सा बगीचा भी है। कहते हैं कि उनके घर के दरवाजे सबके लिए हमेशा खुले रहते थे। कोई भी उनसे कभी मिलने के लिए आ सकता था। वे सबको पर्याप्त वक्त देते थे।
‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान' भी शामिल है
बाबा साहब के लेखन का लंबे समय से अध्ययन कर रहे सुधीर हिलसायन ने बताया कि 26 अलीपुर रोड प्रवास के दौरान उनसे तमाम चिंतक, छात्र, पत्रकार, अध्यापक, दलित एक्टिविस्ट वगैरह उनकी पुस्तकों पर बात करने के लिए भी आते थे जिनमे ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान' भी शामिल है, जिसमें उन्होंने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना की। इसके अलावा उनकी वॉट काँग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स, और ‘हू वर द शुद्राज़?'( शुद्र कौन थे?) पर भी लंबी बैठकें होती थीं। वे बीच-बीच में देश के विभिन्न भागों में लोगों से मिलने-जुलने के लिए जाते थे।
बंगले को स्टील व्यवसायी जिंदल परिवार को बेच दिया
बाबा साहब की मृत्यु के बाद सविता जी करीब 3 सालों तक इसी बंगले में रही। उसके बाद सिरोही के राजा ने बंगले को किसी मदन लाल जैन नाम के स्थानीय व्यापारी को बेच दिया। जैन ने आगे चलकर बंगले को स्टील व्यवसायी जिंदल परिवार को बेच दिया। फिर जिंदल परिवार इसमें रहने लगा। उसने बंगले में कुछ बदलाव भी किए।
दरअसल अलीपुर रोड को आप राजधानी का एलिट इलाका मान सकते हैं। इसे अंग्रेजों करे दौर में ही विकसित कर दिया गया था। इससे सटे है फ्लैग स्टाफ रोड,राजपुर रोड,माल रोड,कमला नगर वगैरह। इसी क्षेत्र में दिल्ली विधान सभा और दिल्ली विश्वविद्लायल भी है। सुबह से शाम तक यह सारा क्षेत्र गुलजार रहता है। जगह-जगह पर बड़े-बड़े बगीचे हैं। कुल मिलाकर बेहद शानदार इलाका है यह क्षेत्र।