क्या सरस्वती की तरह विलुप्त हो रही है यमुना ? 1965 के बाद सबसे कम जल स्तर
नई दिल्ली, 30 जून: कुछ समय पहले हरियाणा सरकार ने विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी का पता लगाने के लिए बड़ा अभियान छेड़ा था। इसमें कुछ सफलता भी हाथ लगी थी। राजधानी दिल्ली में यमुना नदी की जो हालत बना दी गई है, उससे हो सकता है कि आने वाले कुछ सौ वर्षों बाद इसके लिए भी वैसा ही अभियान चलाना पड़ जाए! क्योंकि, यमुना का जल स्तर 1965 के बाद 29 जून को सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था। यह देखते हुए दिल्ली जल बोर्ड को दिल्लीवासियों को त्राहिमाम संदेश जारी करना पड़ा और उन इलाकों के नाम बताने पड़े जहां, पानी की सप्लाई में रुकावट आने की आशंका है।
यमुना नदी का जल स्तर 57 साल में सबसे नीचे
दिल्ली जल बोर्ड ने गुरुवार के लिए एक दिन पहले ही यह चेतावनी जारी की थी कि राजधानी के कई इलाकों में पानी की सप्लाई बाधित हो सकती है। इसके मुताबिक यमुना नदी का जल स्तर 57 साल के सबसे निचले स्तर पर आ चुका है। वजीराबाद पॉन्ड में जल स्तर 666.8 फीट पर रिकॉर्ड किया गया, जो कि 1965 के बाद सबसे कम है। जबकि, इसका सामान्य जल स्तर 674.5 फीट है। दिल्ली जल बोर्ड ने जल स्तर घटने की वजह हरियाणा से कम मात्रा में पानी छोड़ना बताया है।
दिल्ली जल बोर्ड ने पानी की सप्लाई को लेकर जारी की चेतावनी
दिल्ली जल बोर्ड के मुताबिक कैरियर लाइन कनाल और दिल्ली सब ब्रांच के माध्यम से कम पानी छोड़ने के हरियाणा के फैसले की वजह से वजीरावाबाद और चंद्रावल वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के ऑपरेशन पर असर पड़ा है। बुधवार को जारी चेतावनी में बोर्ड ने इसकी वजह से उत्तरी, मध्य, पश्चिमी और दक्षिणी दिल्ली के अलावा नई दिल्ली और दिल्ली छावनी इलाकों में पानी सप्लाई को लेकर आगाह किया था। इसमें बताया गया कि हालात बेहतर होने तक पानी का पर्याप्त स्टॉक बरकरार रखें।
तय क्षमता के हिसाब से पानी सप्लाई में नाकामी
इस महीने के शुरू में वजीराबाद प्लांट में यमुना का जल स्तर गिरकर 667.6 फीट तक पहुंच गया था। जबकि, इस साल की शुरुआत में यहां से पानी सप्लाई की क्षमता बढ़ाकर प्रतिदिन 99 करोड़ गैलन कर दिया गया था। हालांकि, दिल्ली जल बोर्ड एक महीने से ज्यादा इस क्षमता के हिसाब से पानी देने में नाकाम रहा। अधिकारियों के मुताबिक इसका मुख्य कारण हरियाणा से कम पानी रिलीज होना था।
भूमिगत जल स्तर भी खतरनाक स्थिति में
राजधानी दिल्ली में यमुना के जल स्तर की यह स्थिति खतरनाक भविष्य की चेतावनी है। प्राचीन इतिहास गवाह है कि किस तरह से सरस्वती नदी विलुप्त हो चुकी है, जिसके नाम पर आज भी प्रयागराज को गंगा-यमुना और सरस्वती को मिलाकर त्रिवेणी होने की मान्यता है। हरियाणा सरकार के प्रयासों से सरस्वती के प्रमाण भी मिलने की बातें सामने आई हैं। दिल्ली में पानी संकट पर पहले ऐसी रिपोर्ट आ चुकी हैं कि राजधानी में भूमिगत जल का किस कदर बेजा इस्तेमाल हुआ है। भूमिगत जल का स्तर गिरना भी नदी जल स्तर में गिरावट की एक वजह हो सकती है। क्योंकि, यह दोनों ही जल स्रोत एक-दूसरे के पूरक हैं। केंद्रीय भूमिगत जल प्राधिकरण ने इसी वजह से अंडरग्राउंड वाटर निकालने की अनुमति के लिए 30 जून, 2022 की ही तारीख सुनिश्चित कर रखी है।
दिल्ली के भूमिगत जल संकट पर शोध के नतीजे भी भयावह
कुछ समय पहले दिल्ली-एनसीआर इलाके में भूमिगत जल के संकट को लेकर एक स्टडी की गई थी, जिसके नतीजे बहुत ही भयावह थे। इसके मुताबिक यहां इतना ज्यादा भूमिगत जल निकाला जा चुका है और यह प्रक्रिया लगातार जारी है कि लगभग 100 किलोमीटर का इलाका कभी भी धंस सकता है। यह शोध कैंब्रिज यूनिवर्सिटी, आईआईटी बॉम्बे और अमेरिका की साउदर्न मेथोडिस्ट यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने किए थे। शोधार्थियों के मुताबिक जमीन का यह धंसाव कभी-कभी बहुत ही धीमा होता है, जो पता भी नहीं चलता। इसीलिए इसे हाई रिस्क जोन में रखा गया है।(तस्वीरें-आज की नहीं हैं)
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इन इलाकों में जल आपूर्ति बाधित रहने की चेतावनी
दिल्ली जल बोर्ड ने मौजूदा संकट की वजह से पानी की सप्लाई बाधित होने वाले इलाकों की एक लिस्ट भी ट्वीट किया है। गौरतलब है कि राजधानी दिल्ली को उत्तर प्रदेश से रोजाना अपर गंगा कनाल के माध्यम से 25.3 करोड़ गैलन पानी की सप्लाई भी मिलती है। बाकी की जरूरतें भूमिगत जल से ही पूरी होती रही हैं, जो पहले से ही भयानक स्तर तक कम हो चुके हैं। वैसे राहत की बात ये है कि गुरुवार से दिल्ली-एनसीआर में मानसून की बारिश शुरू हो चुकी है। इससे भूमिगत जल और नदी के भी रिचार्ज होने की उम्मीद है। लेकिन, यह राहत आने वाले संकट के मुकाबले कुछ भी नहीं है।