'वायु प्रदूषण पर 15 लाख का मुआवजा और 25 लाख का इंश्योरेंस', मांग लेकर पहुंचे LLM छात्र को कोर्ट ने लगाई फटकार
नई दिल्ली, 06 सितंबर। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक एलएलएम छात्र की तरफ से दायर एक याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका के जरिए छात्र ने राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण के कारण केंद्र और दिल्ली सरकार से 15 लाख रुपए का मुआवजा और 25 लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा मांगा था। याचिका में छात्र ने कहा था कि दिल्ली में वायु प्रदूषण बहुत ज्यादा है, इसके लिए चलते खतरनाक बीमारियां जैसे लंग कैंसर आदि हो सकता है। न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता शिवम पांडे के पास दिखाने के लिए कोई चिकित्सकीय सबूत नहीं है।
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सीवी बनाने के लिए कोर्ट का समय खराब न करें
याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा, "अदालत एक गंभीर जगह है और अदालत में याचिका दायर करके आप इसका प्रयोग रेज़्यूमे या सीवी दिखाने के लिए नहीं कर सकते हैं। ऐसे में ये याचिका गलत है और तदनुसार खारिज की जाती है। साथ ही अदालन ने छात्र से कहा कि अगर कोई गंभीर मुद्दा आपको अगली बार मिले तो याचिका दायर कर सकते हैं। इसके लिए अदालत में आपका स्वागत है।
दलीले सुनने के बाद कोर्ट ने सुनवाई से किया इनकार
वहीं, इससे पहले याचिकाकर्ता की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा, 'मैं प्रदूषण और इसके दुष्प्रभावों के विषय पर सामान्य चर्चा नहीं चाहता। मैं अगर आपको व्यक्तिगत हानि हुई तो आप यहां पर मेडिकल रिपोर्ट, कोई मेडिकल सबूत, उस डॉक्टर की जांच जिसने प्रदूषण के कारण आपकी बीमारी को ठीक किया है। साथ ही बात भी कही हो कि दिल्ली में प्रदूषण की वजह से आपको ये बीमारी हुई है।
याचिकाकर्ता ने कहा बुढ़ापे में दिखेगा असर, इसलिए दें मुआवजा
हालांकि, अदालत के इस सवाल पर याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। इसका उन पर अभी नहीं दिख रहा है, लेकिन 70 या 75 साल की उम्र में यानि कि बुढ़ापे में यह दिखाई देगी। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि प्रदूषण विभिन्न बीमारियों का मूल कारण है क्योंकि यह मानव स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
याचिका में इन बातों का भी किया गया था जिक्र
याचिका में कहा गया था कि वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसके चलते सिरदर्द, आंख और त्वचा में जलन, सांस की समस्या के साथ-साथ कई अन्य बीमारियां भी होती हैं। वहीं, याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी जिक्र किया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत "स्वच्छ प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के अधिकार" को मौलिक अधिकार के शामिल किया जाए।