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जब भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के बराबर था और कई देशों की आधिकारिक मुद्रा थी

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नई दिल्ली। मौजूदा समय में भारतीय मुद्रा रुपया एक डॉलर के मुकाबले बहुत कमजोर है, यहां तक कि एक यूएस डॉलर के लिए आपको 75 रुपए से अधिक का भुगतान करना पड़ता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि भारतीय रुपया हमेशा से ही इतना कमजोर था, एक समय था जब भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के बराबर था और इसके लिए आपको 75 रुपए नहीं देने पड़ते थे। एक समय था जब इटली में दुकानदार पाउंड स्टर्लिंग की बजाय भारतीय रुपए की मांग करते थे। वर्ष 1952 की बात करें तो उस वक्त लोग पाउंड की बजाए रुपए लेना पसंद करते थे, अहम बात यह है कि उस वक्त यूएस डॉलर को कोई पूछता भी नहीं था। यह वक्त ऐसा था जब स्विट्जरलैंड में स्विस बैंक में रुपए को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी जाती थी और एक रुपया, एक स्विस फ्रैंक के बराबर था।

अंग्रेजों के एक फैसले ने रुपए को बर्बाद कर दिया

अंग्रेजों के एक फैसले ने रुपए को बर्बाद कर दिया

देश को आजादी मिलने के बाद रुपया अमेरिकी डॉलर के बराबर था, उस वक्त एक रुपया एक डॉलर के बराबर था। लेकिन ब्रिटिश सरकार के एक फैसले ने देश के रुपए को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। दरअसल ब्रिटिश सरकार ने रुपए को स्टर्लिंग से जोड़ दिया। 24 सितंबर 1931 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय रुपए को गोल्ड से अलग करके इसे स्टर्लिंग से जोड़ दिया। ब्रिटिश सरकार के इस कदम ने रुपए को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया क्योंकि स्टर्लिग की हालत काफी खस्ता थी और उसे रुपए से जोड़ दिया।

1300 मिलिलयन स्टर्लिंग पाउंड का कर्ज विरासत में मिला

1300 मिलिलयन स्टर्लिंग पाउंड का कर्ज विरासत में मिला

देश जब आजाद हुआ था तो उस वक्त भारत को 1300 मिलियन पाउंड स्टर्लिंग का कर्ज विरासत के रुप में मिला। आजादी के वक्त भी भारतीय मुद्रा काफी मजबूत थी और उसे दूसरे देश से कर्ज लेने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ा। लेकिन आजाद भारत उस वक्त पूर्व की ब्रिटिश सरकार द्वारा लिए गए कर्ज का जरूर देनदार था, भारत सरकार, ब्रिटिश सरकार की विरासत से बंधी हुई थी। हालांकि उस वक्त भारत सरकार ने ब्रिटिश सरकार से इस बात की गुजारिश की थी कि वह स्टर्लिंग को कीमत को खत्म ना करे। ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि अगर भारत ने उस वक्त स्टर्लिंग के कर्ज को अमेरिकी डॉलर से बदल दिया होता तो क्या आज भारतीय रुपए की यह हालत होती। लेकिन ऐसा नहीं करने की वजह से हमे इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ा।

ब्रिटिश सरकार की नीतियों ने कमजोर किया रुपए को

ब्रिटिश सरकार की नीतियों ने कमजोर किया रुपए को

भारत को उस वक्त एक बड़ा झटका लगा जब ब्रिटिश सरकार ने पाउंड स्टर्लिंग का अवमूल्यन कर दिया। भारत लगातार इस बात की कोशिश कर रहा था कि ब्रिटिश सरकार ऐसा नहीं करे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका और ब्रिटिश सरकार के फैसले के बाद एक स्टर्लिंग पाउंड की कीमत 2.8 यूएस डॉलर के बराबर हो गई और भारतीय रुपए के मुकाबले 4.03 रुपए। यानि एक डॉलर 4.65 रुपए के बराबर हो गया। इसका सीधा असर हमारे खजाने पर पड़ा क्योंकि अधिकतर खरीददारी यूएस डॉलर में हुई, उस वक्त मुश्किल से ही कोई देश स्टर्लिंग पाउंड को स्वीकार करता था। लेकिन बावजूद इसके रुपए ने अपनी ताकत को नहीं खोया।

कई देशों की आधिकारिक मुद्रा थी भारतीय रुपया

कई देशों की आधिकारिक मुद्रा थी भारतीय रुपया

बहुत ही कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि भारतीय रुपया एक समय कतर, ओमान, कुवैत, बहरीन और यूएई में शामिल तमाम देशों की आधिकारिक मुद्रा थी। भारतीय रुपए का इस्तेमाल भारत और इन तमाम देशों में होता था। लेकिन जब गोल्ड की तस्करी दुबई से भारत में होने लगी तो इसका भुगतान रुपए में होता था। इसी के चलते रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 1959 में गल्फ देशों के लिए एक अलग रुपए की शुरुआत की ताकि तस्करों से निपटा जा सके। उस वक्त गल्फ रुपया भारतीय रुपए के बराबर था, लेकिन 1970 में भारतीय रुपया मिडल ईस्ट में कमजोर होने लगा, जिसके बाद भारत को कच्चा तेल यूएस डॉलर से खरीदने के लिए करना पड़ा। भारतीय रूपए का गिरना उस वक्त शुरू हुआ जब भारत ने कर्ज लेना शुरू किया।

उदारवाद ने बदली स्थिति

उदारवाद ने बदली स्थिति

1990 तक भारत को गंभीर कर्ज और लोन की समस्या से गुजरना पड़ रहा था, जिसकी वजह से भारत को गोल्ड को गिरवी रखकर कर्ज लेने पर मजबूर होना पड़ा। 1991 में भारत विश्व बैंक के दबाव से उभरा। देश उस वक्त किसी भी तरह का कर्ज लेने के लिए अर्ह नहीं था। विश्व बैंक की इच्छा के चलते भारतीय रूपए का और अवमूल्यन किया गया, जिसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारवाद की शुरुआत हुई। उस वक्त हमे सीधे बाजार जाना चाहिए था। भारत उस वक्त खुले बाजार में 40 रुपए पर था, जबकि डॉलर के मुकाबले 21.00 था।

सरकार के पास है एक मौका

सरकार के पास है एक मौका

रुपए की हालत बिगड़ने में एक बड़ा योगदान आजादी के बाद लगातार महंगाी की रही। 1961, 1965, 1871 की जंग ने रुपए को और कमजोर किया। विशेषज्ञों का मानना है कि 1960 से 2020 तक भारत में औसत महंगाई दर 7.44 फीसदी रही जोकि भारत की खरीदने की क्षमता को दर्शाने के लिए काफी है। बहरहाल जब रुपया अपने चरम पर था, उसे एक बार फिर से वापस मजबूत करने के लिए सरकार को मजबूत कदम उठाने की जरूरत है। कोरोना संकट में तमाम कंपनियां चीन से बाहर जाना चाहती हैं, ऐसे में भारत इन कंपनियों के लिए नया ठिकाना बन सकता है।

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English summary
When Indian rupees was equal to US dollar and was official currency of many nation.
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