H1B वीजा पर डोनाल्ड ट्रंप का वार, भारतीय आईटी कंपनियों के 44,000 करोड़ बाजार से साफ
अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक के बाद एक करके ऐसे निर्णय कर रहे है कि पूरी दुनिया उससे प्रभावित हो रही है।
वॉशिंगटन। अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक के बाद एक करके ऐसे निर्णय कर रहे है कि पूरी दुनिया उससे प्रभावित हो रही है। पहले सात देशों के मुस्लिमों पर प्रतिबंध लगाया गया और अब हायर अमेरिकन की नीति का लागू करने के लिए H-1B वीजा की शर्तों को सख्त करने के लिए अमेरिकी कांग्रेस में बिल रख दिया है। इस बिल को अमेरिकी कांग्रेस में रखे जाने की खबर के बीच भारत की आईटी कंपनियों के शेयरों को जबरदस्त झटका लगा है और भारतीय आईटी कंपनियों के शेयरों में 9 फीसदी तक की गिरावट आई है जिससे कंपनियों का बाजार से करीब 44,000 करोड़ रुपया गायब हो गया है।
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के दस दिन के भीतर ही अमेरिकी सीनेट के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में H-1B बिल पेश किया है। अगर यह बिल पास हो जाता है तो अब भारतीय आई कंपनियों में काम करने वाले आई प्रोफेशनल का अमेरिकी वीजा पाना कठिन हो जाएगा। अमेरिकी सीनेट के हाउस ऑफ ऑफ रिप्रजेंटेटिव में जैसे ही यह बिल पेश हुआ तो तमाम आईटी कंपनियों के शेयर गिर गए। नए संशोधित बिल में H-1B वीजा के लिए न्यूनतम वेतन की सीमा को दोगुने से ज्यादा बढ़ाते हुए 1,30,000 अमेरिकी डॉलर करने का प्रस्ताव किया गया है। अभी यह सीमा 60,000 अमेरिकी डॉलर है। इस नियम के लागू होने के बाद उन कंपनियों में दिक्कत होगी जो भारतीय आईटी प्रोफेशनल को आउटसोर्स करती हैं। कई विदेशी कंपनियां भारतीय कंपनियों को अपने यहां काम का अनुबंध करती हैं। इसके तहत कई भारतीय आईटी कंपनियां हर साल हजारों लोगों को अमेरिका में काम करने के लिए भेजती हैं।
द हाई स्किल्ड इंटेग्रिटी एंड फेयरनेस कानून 2017 के तहत H-1B वीजा के लिए 1989 से चले आ रहे 60 हजार अमेरिकी डॉलर के न्यूनतम वेतन को दोगुने से ज्यादा बढ़ाने का प्रस्ताव है। इस बिल को कैलिफोर्निया के सीनेटर जोए लोफग्रेन ने अमेरिकी सीनेट के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में पेश किया। सीनेटर ने इस बिल को पेश करते हुए तर्क दिया कि यह बाजार आधारित प्रक्रिया है और उन कंपनियों के लिए अच्छा है जो बाजार में अपने कर्मचारियों को अच्छा वेतन देना चाहती हैं।
जानिए
क्या
है
H-1B
वीजा?
H-1B
वीजा
दूसरे
देशों
के
विशेषज्ञों
को
अमेरिका
जाकर
अपनी
विशेषज्ञता
का
लाभ
देने
के
लिए
जारी
किया
जाता
है।
पिछले
कुछ
सालों
से
इसे
लगातार
महंगा
और
मुश्किल
बनाया
जा
रहा
है।
पर
भारतीय
आईटी
प्रोफेशनल
की
सैलरी
अमेरिकी
आईटी
प्रोफेशनल
की
तुलना
में
इतना
कम
पड़ती
है
कि
अमेरिकी
कंपनियां
अपना
कम
नुकसान
उठाकर
ज्यादा
फायदा
उठाती
हैं।
क्योंकि
अमेरिकी
में
सैलरी
डॉलर
के
हिसाब
से
दी
जाती
है
और
भारत
में
रुपए
के
हिसाब
से
तो
भारतीय
आईटी
कंपनियां
रुपए
के
हिसाब
से
सालाना
सैलरी
का
पैकेज
ऑफर
करती
हैं।
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