एक बड़े अर्थशास्त्री ने नोटबंदी के फैसले पर उठाए 7 बड़े सवाल
मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी पर विख्यात अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस फैसले के बारे में क्या कहा, आप भी जानिए।
नई दिल्ली। 8 नवंबर की आधी रात के बाद से यानी 9 नवंबर से मोदी सरकार की घोषणा के बाद 500 और 1000 के नोट बंद कर दिए गए हैं। जहां एक ओर विपक्षी पार्टियों समेत देश के कई लोग पीएम मोदी के इस फैसले को लागू करने के तरीके को गलत मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर, कुछ लोग इस फैसले को तो सही मान ही रहे हैं, साथ ही लागू करने के तरीके को भी सही मान रहे हैं।
जहां सन् 2000 में कालाधन चर्चा का मुद्दा बन गया, उससे काफी पहले ही एक प्रख्यात अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने 1980 और 1990 के दशक में ही इसका गहन अध्ययन किया था। अरुण कुमार जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग पढ़ा चुके हैं और 1989 में वीपी सिंह का इलेक्शन मेनिफेस्टो भी बनाने में अहम भूमिका निभा चुके हैं।
1999 में उन्होंने 'भारत में काला धन (Black Money in India)' शीर्षक के साथ एक रिपोर्ट भी पब्लिश की थी, जिसे बाद में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा भी उठाया गया था। अरुण कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी के फैसले के बारे में क्या कहा, आप भी जानिए।
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1- अरुण कुमार का मानना है कि मोदी सरकार द्वारा कालेधन या ब्लैकमनी पर लगाम लगाने के उद्देश्य से की गई नोटबंदी बहुत अधिक प्रभावी नहीं है। उनके अनुसार इस फैसले से ब्लैक वेल्थ या इसका कोई हिस्सा अलग थलग पड़ सकता है, लेकिन इकोनॉमी में उसके फ्लो को नहीं रोक सकता है। ब्लैक मनी पर लगाम लगाने के लिए ब्लैक मनी जनरेशन को रोकना होगा। ब्लैकमनी ब्लैकवैल्थ का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा है।
2- 500 और 1000 के कुल नोट 13 लाख करोड़ के हैं, जिनमें से अधिकतर पेट्रोल स्टेशन, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट जैसी जगहों पर होते हैं। जनता के पास महज 5-6 लाख करोड़ रुपए ही हैं। अगर मान लें कि कुल आबादी के 3 प्रतिशत लोगों के पास ब्लैक वेल्थ है, तो यह सिर्फ 1.5 लाख रुपए प्रति व्यक्ति बनती है। इस तरह से 500 और 1000 रुपए के ऐसे ब्लैक मनी के रूप में नोट सिर्फ 2-3 लाख करोड़ रुपए हैं।
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3- अरुण कुमार के अनुसार कालाधन बिजनेस अकाउंट में हेरा-फेरी करके कमाया जाता है। कम पैसों में खरीदी हुई चीज को महंगा दिखाकर ब्लैक मनी जमा की जाती है और फिर उसे किसी न किसी जगह पर निवेश कर दिया जाता है। उनके अनुसार ब्लैक मनी कहीं पर रखी हुई नहीं होती, बल्कि सर्कुलेट होती रहती है। जैसे अगर कालेधन से किसी ने कोई प्रॉपर्टी खरीद ली तो वह प्रॉपर्टी रीयल एस्टेट में एक हाथ से दूसरे हाथ जाती रहती है।
4- जब अरुण से पूछा गया कि जब 500 और 1000 के नोट कालाधन जमा करने में काम आ रहे थे, तो 500 और 2000 रुपए के नोट जारी करने की क्या जरूरत थी? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि भारत में अधिकतर लोग कैश में ट्रांजैक्शन करते हैं, ऐसे में उनकी आदत बदलने में अभी वक्त लगेगा। यही कारण है कि नए नोट जारी करना जरूरी था। वहीं छोटे दुकानदार भी क्रेडिट कार्ड लेने में घबराते हैं, ऐसे में उसके लिए भी पूरी तैयारी करनी पड़ेगी।
5- अरुण के अनुसार जब 1978 में 1000, 5000 और 10000 रुपए के नोट बंद किए गए थे उससे इस बार की स्थिति बहुत अलग है। 1978 में सर्कुलेशन में अधिकतर नोट 10, 20, 50 और 100 के थे, न कि बड़े नोट। वहीं दूसरी ओर, इस बार 500 और 1000 के नोट अधिकतर लोगों की रोजमर्रा का हिस्सा बन गया है। यही कारण है कि लोगों को दिक्कत हो रही है।
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6- उनका मानना है कि जो लोग चालाक हैं वे लोग पैसों को ठिकाने लगाने का इंतजाम कर लेंगे। अगर 1,000 लोग अपने अकाउंट में 10-10 हजार रुपए जमा कर दें तो न तो सरकार इसकी जांच करेगी, ना ही कालाधन रखने वाले को कोई दिक्कत होगी। इसके बाद उन पैसों को कुछ समय बाद निकाला जा सकता है।
7- वहीं दूसरी ओर सरकार के फैसले को लागू करने के तरीके को भी उन्होंने गलत बताया। वे बोले कि इससे लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी काफी हद तक प्रभावित हुई है। यहां तक कि जब सरकार ने पहला नोटिफिकेशन जारी किया, उसके बाद भी कई बड़े बदलाव किए गए। इस तरह अरुण का इशारा सीधे इसी ओर था कि सरकार पूरी तैयारी के बिना ही ये आदेश लेकर आ गई।