जीतन राम मांझी ने निजी विचार बताते हुए कहा- भगवान श्रीराम काल्पनिक चरित्र, महर्षि वाल्मीकि ज्यादा महान
पटना। बिहार में एनडीए के सहोयगी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने एक बार फिर भगवान श्रीराम को लेकर बड़ा बयान दिया है। बुधवार को दिल्ली में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भगवान वाल्मीकि को श्रद्धांजलि देने के बाद एक बार फिर से कहा कि भगवान राम एक काल्पनिक चरित्र थे। बैठक के दौरान जीतन राम मांझी ने कहा कि महाकाव्य रामायण के लेख महर्षि वाल्मीकि राम से हजारों गुना बड़े थे। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यह मेरा निजी विचार है और मैं किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता।

बता दें कि इससे पहले भी हम पार्टी के सुप्रीमो जीतन राम मांझी रामायण से जुड़ा विवादित बयान दे चुके हैं। पटना में मीडिया ने जब उनसे मध्य प्रदेश की तर्ज पर बिहार के स्कूली पाठ्यक्रम में रामायण को शामिल करने को लेकर सवाल किया था तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा था कि पाठ्यक्रम में रामायण को शामिल करने की जरूरत को है लेकिन रामायण की कहानी सत्य पर आधारित नहीं है। श्रीराम महापुरुष थे, वह इस बात को भी नहीं मानते। उन्होंने रामायण को काल्पनिक ग्रंथ बताया था।
बैठक के दौरान जीतन राम मांझी ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि एक केंद्रीय मंत्री सहित 5 सांसदों को फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों से लोकसभा सदस्य के लिए चुना गया है। मांझी ने आरोप लगाते हुए कहा है कि भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल, भाजपा से सांसद जयसिद्धेशव्र शिवाचार्य महास्वामी, कांग्रेस सांसद मोहम्मद सादिक, टीएमसी सांसद अपरूपा पोद्दार और निर्दलीय सांसद नवनीत रवि राणा जाली प्रमाण पत्र के आधार चुनाव लड़ने के बाद एससी के लिए आरक्षित सीटों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसकी जांच होनी चाहिए।
मजदूरों
की
हत्या
पर
भड़के
मांझी,
कहा-
15
दिन
के
लिए
बिहारियों
को
सौंप
दें
जम्मू-कश्मीर
इसके अलावा उन्होंने कहा कि दलितों की नौकरियों और यहां तक की स्थानीय निकाय चुनावों में मिला 15 से 20 फीसदी कोटा का लाभ भी जाली जाति प्रमाण पत्र के आधार पर दूसरे लोग हड़प रहे हैं। उन्होंने सभी के लिए एक समान स्कूली शिक्षा प्रणाली और दलितों के लिए एक अलग मतदाता सूची बनाने की भी मांग की। मांझी ने कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों के बच्चों के लिए सामान्य स्कूली शिक्षा समानता लगाएगी और फिर आरक्षण की आवश्यकता नहीं होगी। यदि ऐसी शिक्षा प्रणाली 10 वर्षों तक लागू कर दी जाएगी तो सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।