करीब 55 साल बाद अपने स्कूल को देख यादों में खो गये नीतीश कुमार
लगातार चार विधानसभा चुनाव जीत कर नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री बने हैं। तीन वर्ष बाद वे बिहार में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बना लेंगे। नेता के रूप में तो उन्होंने अनेक उपलब्धियां हासिल की लेकिन एक व्यक्ति के रूप में तकलीफें भी झेलीं। राजनीतिक संघर्ष के अपने तनाव होते हैं । अगर इन तनावों के बीच सुकून के दो पल मिल जाएं तो फिर क्या कहना। नीतीश कुमार करीब 55- 60 साल बाद अपने स्कूल पहुंचे तो पुरानी यादों में खो गये। स्कूल की स्मृतियों ने उन्हें भावुक भी कर दिया।
अपने स्कूल को देख कर भावुक हुए नीतीश
नीतीश कुमार ने बख्तियारपुर के गणेश हाईस्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। इसी स्कूल की पढ़ाई ने उन्हें इंजीनियर बनाया था। इंजीनियरिंग पढ़ने पटना गये तो राजनीति में जाने का रास्ता तैयार हो गया। गणेश हाईस्कूल का छात्र जब मुख्यमंत्री बन कर वहां पहुंचा तो इतिहास के सुनहरे पन्ने फिर फड़फड़ाने लगे। स्कूल पहुंच कर नीतीश कुमार को राजनीतिक तपिश के बीच एक सुकून भरी ठंडक की अनुभूति हुई। उन्होंने पटना के डीएम को स्कूल के सौंदर्यीकरण का आदेश दिया। कुछ पल कैंपस में खड़ा हो कर गौर से इमारतों को निहारा। जैसे वे याद करना चाहते हों कि आज से 60 साल पहले वे कहां खेलते थे, किस क्लास में कैसे बैठेते थे, कौन से शिक्षक कैसे पढ़ाते थे ?
नीतीश को निखारने वाला स्कूल
मिडिल स्कूल तक की पढ़ाई में नीतीश कुमार एक होनहार छात्र के रूप में सामने आ गये थे। गणित से उन्हें विशेष लगाव था। 1963 से 1967 के बीच नीतीश कुमार हाईस्कूल में थे। उस समय गणेश हाईस्कूल में दो प्रतिष्ठित शिक्षक हुआ करते थे आनंदी प्रसाद सिंह और रामजी चौधरी। उन्होंने नीतीश कुमार की प्रतिभा को और निखारा। एक साइंस स्टूडेंट के रूप में वे बेहतर से बेहतर होते गये। मैट्रिक की परीक्षा में नीतीश प्रथम श्रेणी में भी अच्छे नम्बरों से पास हुए। उन्हें कॉलेज में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप मिली। नम्बरों के आधार पर नीतीश का दाखिला बिहार के टॉप कॉलेज, साइंस कॉलेज में हुआ। नीतीश कुमार का साइंस कॉलेज में पहुंचना उनकी जिंदगी का टर्निंग प्वाईंट था। इस कॉलेज में बिहार के सबसे प्रतिभाशाली छात्रों को ही दाखिला मिलता था। इसलिए यहां नीतीश को अपना स्थान बनाने के लिए विशेष रूप से सजग रहना पड़ा।
साइंस कॉलेज रहा टर्निंग प्वाईंट
साइंस कॉलेज में नीतीश का सामना एक से एक तेज लड़कों से हुआ। ये मेहनत काम आयी। उन्हें इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया। बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (अब एनआइटी) में पहुंचने के बाद नीतीश कुमार एक कुशाग्र छात्र से नेता बनने की तरफ अग्रसर हुए। वे इंजीनियरिंग कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गये। जेपी आंदोलन में उनकी बड़ी भागीदारी रही। नीतीश के सामने दो रास्ते थे। एक विद्युत अभियंता के रूप में अपनी खुशहाल जिंदगी शुरू करें या फिर जनता पार्टी की साख पर सवार हो कर राजनीति में किस्मत आजमाएं। नीतीश ने इंजीनियर बनने की बजाय नेता बनना स्वीकर किया। आज वे बिहार के पहले ऐसा राजनेता हैं जो सात बार मुख्यमंत्री बने।
बिहार: नंदकिशोर यादव को स्पीकर ना बनाना क्या भाजपा की बड़ी भूल होगी?
नीतीश को अपने गांव-घर से बहुत लगाव
नीतीश कुमार को अपने गांव-घर से बहुत लगाव है। राजनीतिक व्यस्तताओं के बीच उन्हें जब भी मौका मिलता है वे बख्तियारपुर और अपने पैतृक गांव कल्याण बिगहा जरूर जाते हैं। नीतीश कुमार आज भी कहते हैं कि वे बख्तियारपुर और बाढ़ को कभी भूल नहीं सकते। वे चुनावी सभा कहते भी रहे हैं कि अगर बाढ़-बख्तियारपुर नहीं होता तो नीतीश कुमार को कोई जानता तक नहीं। इन्ही जगहों से मेरी पहचान बनी। बख्तियारपुर पहले बाढ़ लोकसभा का हिस्सा था और नीतीश कुमार यहां से पांच बार सांसद चुने गये थे। बख्तियारपुर से नीतीश के गांव कल्याण बिगहा की दूरी कराब 11 किलोमीटर है। नीतीश कुमार के पिता वैद्य थे। वे अपना दवाखाना चलाने के लिए कल्याण बिगहा से बख्तियारपुर आ गये थे। नीतीश कुमार को अपने पुराने घर से भी बहुत प्रेम था। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद करीब तेरह-चौदह साल तक उनका घर खपड़ैल का ही था। उनके घर और खेतों की देखभाल करने वाले सीताराम ने एक बार नीतीश कुमार से कहा था, कच्चा घर जगह-जगह से टूट-फूट रहा है, इसको बनवा दीजिए साहेब। तब नीतीश ने कुमार ने उन्हें प्यार से झिड़कते हुए कहा था, मेरे माथे पर पूरे बिहार को बनाने का भार है, पहले अपना ही घर बनाने लगें। 2019 में जब नीतीश का पैतृक घर टूट कर खंडहर होने लगा तो उनके गांव के लोगों और शुभचिंतकों ने खुद ही इसे बना दिया।