Motivatinoal Story: डेढ़ साल की उम्र में पांव ने दिया जवाब, अपनी लगन से पाया ये मुकाम
शिक्षक ब्यास की उम्र 35 साल है, उनके संघर्ष की कहानी दूसरे शिक्षकों के लिए प्रेरणात्मक है। ग्रामीणों का कहना है कि गिद्धौर निवासी ब्यास को खुद के लिए प्रेरणा स्रोत मानते हुए काफी इज़्ज़त देते हैं।
जमुई, 13 अगस्त 2022। जूनून और जज्बा हो तो इंसान हर मुश्किलों का सामना करते हुए कामयाब हो ही जाता है। कुछ ऐसी ही कहान जमुई जिले के एक सरकारी विद्यालय के शिक्षक व्यास की है। ब्यास डेढ़ साल की उम्र में पोलियोग्रस्त हो गए थे। उनके मां-बाप काफी इलाज करवाया लेकिन व्यास को पोलियो से मुक्ति नहीं मिली। ब्यास की ज़िद थी कि उन्हें पोलियो से लड़ते हुए खुद को कामयाब बनाना है। वह अपने पांव पर तो खड़े नहीं हो सके लेकि उन्होंने खुद को कामयाब बनाया। अब वह एक कामयाब शिक्षक के तौर पर जमुई जिले के ही सेवा गांव के हाई स्कूल (गिद्धौर प्रखंड) में कार्यरत हैं।
बच्चे भी अपने शिक्षक को करते हैं बहुत पसंद
ब्यास के पोलियोग्रस्त होने के बावजूद शिक्षक होने से ज़्यदा ग्रामीण उनके पढ़ाने के अंदाज़ से काफी प्रभावित हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बिहार में तो सरकारी स्कूल के शिक्षक अच्छे शरीर के बावजूद बच्चों को सही तालीम नहीं दे पाते हैं। आए दिन शिक्षा की गुणवत्ता सवालों के घेरे में रहती है। वहीं पोलियोग्रस्त होने के बावजूद ब्यास बच्चों को बहुत ही सरल ढंग से पढ़ाते हैं। उनके पढ़ाने के बीच में कहीं से भी अपंगता आड़े नहीं आती है। इतना ही नहीं वह बैसाखी के सहारे वह बच्चों के साथ प्रार्थना से लेकर खेलकूद तक में साथ देते हैं। उनके सरल स्वभाव की वजह से बच्चे उन्हें बहुत ज्यादा पंसद करते हैं।
मेरे संकल्प के आगे पोलियो भी हार गया- ब्यास
शिक्षक ब्यास की उम्र 35 साल है, उनके संघर्ष की कहानी दूसरे शिक्षकों के लिए प्रेरणात्मक है। ग्रामीणों का कहना है कि गिद्धौर निवासी ब्यास को खुद के लिए प्रेरणा स्रोत मानते हुए काफी इज़्ज़त देते हैं। डेढ़ साल की उम्र मे ही पैर बेजान हो जाने से कई बच्चे अपने हौसले को तोड़ देते हैं। बच्चे मायूस हो जाते हैं और जीवन का लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाते हैं, लेकिन ब्यास ने के हौसले के आगे पोलियो ने भी घुटने टेक दिए। शिक्षक ब्यास ने मीडिया से मुखातिब होते हुए बताया की पोलियो की वजह से मुश्किलें तो ज़रूर आईं लेकिन मेरे संकल्प के आगे पोलियो भी हार गया।
ग्रामीण हुए शिक्षक ब्यास के मुरीद
अपने जूनून और जज्बे के साथ उन्होंने बोर्ड की परीक्षा में कामयाबी हासिल की उसके बाद इकोनॉमिक्स से पढ़ाई की और बतौर शिक्षक सरकारी स्कूल में नियुक्त भी हुए। ब्यास ने बताया कि उन्हें सिर्फ नौकरी नहीं करनी थी। वह एक मिसाल बनाना चाहते थे, इसलिए अपंगता को चुनौती देते हुए वह शिक्षक बने। स्थानीय लोग बताते हैं कि शिक्षक ब्यास बैशाखी के सहारे खड़े होकर बच्चों को लगातार पढ़ाते हैं। ऐसा नहीं है कि वह पोलियोग्रस्त होने का बहाना कर कक्षा में कुर्सी पर बैठ जाते हैं, बल्कि वह बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ कई खेलकूद में भी बच्चों का साथ देते है। ऐसे शिक्षक बहुत कम मिलते हैं, ब्यास के इस हौसले के पूरे ग्रामीण मुरीद हैं और उनकी तारीफ़ करते नहीं थकते हैं।
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