ईओडब्ल्यू में दिग्विजय सिंह ने खुद को पाक साफ बताया
भोपाल।
वर्ष
2004
में
मिले
दस्तावेज
से
लगा
कि
आर.के.डी.एफ.
एजूकेशन
सोसायटी
में
विद्यार्थियों
को
अनाधिकृत
प्रवेश
देकर
भारी
मात्रा
में
धन
अर्जित
किया।
इतना
ही
नहीं
संस्था
ने
शासकीय
अधिकारियों
एवं
लोक
सेवकों
से
मिलीभगत
कर
जाली
हस्ताक्षर
से
पत्र
जारी
किये।
आर.के.डी.एफ. एजूकेशन सोसायटी की सूक्ष्म हेतु वर्ष 2004 सितम्बर में महानिदेशक राज्य आर्थिक अपराध अनवेशन ब्यूरो को शिकायत की। 2004 से 2015 तक ब्यूरो ने कुछ भी कार्यवाही नहीं की। तब पुन: 19 मार्च 2015 को पुलिस अधीक्षक राज्य आर्थिक अपराध अनवेशन ब्यूरो को पुन: पत्र के माध्यम से याद दिलाया।
पढ़ें- मध्य प्रदेश की खबरें
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व मंत्री राजा पटेरिया के नाम होने के कारण ब्यूरो ने कार्यवाही करना उचित नहीं समझा तब कोर्ट की शरण ली। 2002 से संचालक तकनीकी शिक्षा विभाग में आर.के.डी.एफ. की नस्ती चली परन्तु जिस दिनांक को तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के हस्ताक्षर हुये उस दिन आर.के.डी.एफ. एवं सत्य सांई इंस्टीट्यूट ऑफ सांईस दो संस्थाएं हो गई। जुर्माना 24 लाख के स्थान पर 5 लाख आर.के.डी.एफ. के साथ सत्य सांई और जुड़ गया। 5 लाख का जुर्माना अब दो संस्था पर हो गया। सत्य सांई की अनियमितता की जांच होनी चाहिए।
शिकायतकर्ता राधावल्लभ शारदा के एडवोकेट यावर खान ने बताया कि दिग्विजय सिंह ने मीडिया को अधिक जानकारी दी है। तत्कालीन सचिव आर.परशुराम, उपसचिव बी.आर.विश्वकर्मा, तकनीकी संचालक डा.एस.एस. भाटिया को भी आरोपी बनाये जाने के लिये हमने एक परिवाद पुन: मजिस्ट्रेट श्री अनुभव जैन के न्यायालय में प्रस्तुत किया है। कोर्ट में एक आवेदन भी दिया है कि तकनीकी शिक्षा संचालनालय व ईओडब्ल्यू से मूल दस्तावेज तलब किये जाये। कोर्ट ने दिनांक 28/6/2016 को विचार हेतु पेशी नियत है।
मेरे द्वारा जांच के दायरे में पूर्व में दिग्विजय सिंह, राजा पटेरिया और सुनील कपूर को लिया था। परन्तु अधिकारी वर्ग को जांच दायरे में लिये जाने के लिये पुन: न्यायालय में प्रकरण दर्ज कराया, जिसमें तत्कालीन सचिव आर.परशुराम, उपसचिव वी.आर.विश्वकर्मा, तकनीकी शिक्षा संचालक डॉ.एस.एस.भाटिया शामिल है।
दिग्विजय सिंह ने अपने आप को पाक साफ बताने के लिये मीडिया को बताया कि छात्र हित में निर्णय लिया। जांच का नया बिन्दु जितने विद्यार्थियों को प्रवेश दिया उनके बयान लिये या क्या उनसे ली गई फीस वापिस दी या नहीं।
शिकायत क्या थी
शिकायतकर्ता राधावल्लभ शारदा ने बताया कि उनके द्वारा की गई शिकायत में आर.के.डी.एफ.एजूकेशन सोसायटी जिसका कर्ताधर्ता डॉ. सुनील कपूर है। मप्र की राजधानी भोपाल, इंदौर और रीवा में इंजीनियरिंग कॉलेज, डेंटल कॉलेज, मैनेजमेंट कॉलेज, डायगनोस्टिक सेंटर और भोपाल में सत्य सांई नागरिक सहकारी बैंक चलाती है।
इस आर.के.डी.एफ. एजूकेशन सोसायटी जिसका रिकार्ड पता सैनिक फार्म फ्यूल सेंटर मण्डीदीप जिला रायसेन है, परन्तु संस्था 202, गंगा जमुना काम्पलेक्स बेसमेंट जोन-1, एम.पी.नगर से संचालित होती है। इस संस्था ने शासकीय अधिकारियों एवं लोक सेवकों से मिलीभगत कर जाली हस्ताक्षर से पत्र जारी किये है एवं शासकीय दस्तावेजों में हेराफेरी की हैं।
उदाहरण स्वरूप :-
- समितियों के पंजीयक कार्यालय के रिकार्ड के अनुसार आर.के.डी.एफ. एजूकेशन सोसायटी का पंजीयन 13 अगस्त 1999 को हुआ है। इसके विपरीत आर.के.डी.एफ. इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी 1998-99 के दौरान ही छात्रों को प्रवेश दिया जा चुका था। बिना पंजीयन के गतिविधि प्रारंभ करना ही नियम विरुद्ध है।
-
वर्ष
1998-99
के
दौरान
संस्था
ने
12
विद्यार्थियों
को
अनाधिकृत
रूप
से
प्रवेश
दिया।
यह
संस्था
की
पहली
प्रवेश
त्रुटि
थी,
जिसे
समझौता
शुल्क
लेकर
राज्य
शासन
द्वारा
चेतावनी
जारी
की
गई
थी।
-
वर्ष
2000-01
में
इस
संस्था
ने
एक
कदम
आगे
बढक़र
10
विद्यार्थियों
को
अनाधिकृत
रूप
से
प्रवेश
दिया
और
इन
प्रवेशों
को
नियमित
करने
हेतु
संयुक्त
संचालक
तकनीकी
शिक्षा
की
ओर
से
एक
फर्जी
पत्र
राजीव
गांधी
प्रौद्योगिकी
विश्वविद्यालय
को
लिखा।
-
वर्ष
2001-02
से
संस्था
द्वारा
तीसरी
बार
गलती
दुहराने
पर
संचालक
तकनीक
शिक्षा
ने
इस
संस्था
को
'नो
एडमिशन
स्टेट्स'
पर
रखने
की
अनुशंसा
की।
संचालक
ने
तत्
समय
ही
पूर्व
की
गलतियों
के
लिये,
संस्था
से
4
लाख
रुपये
वसूलने
का
प्रस्ताव
किया।
इसमें
2001-2002
में
दिये
गये
अनाधिकृत
प्रवेश
की
राशि
सम्मिलित
नहीं
है।
-
तत्कालीन
उप
सचिव
तकनीक
शिक्षा
ने
सचिव
तकनीकी
शिक्षा
के
माध्यम
से
वसूली
की
अनुशंसा
सहित
यह
प्रकरण
तत्कालीन
मंत्री
जनशक्ति
नियोजन
श्री
राजा
पटेरिया
को
भेजा।
श्री
पटेरिया
ने
प्रवेश
की
गंभीर
त्रुटि
को
सामान्य
मानकर
प्रकरण
को
समाप्त
करने
की
अनुशंसा
कर
दी।
-
मंत्री
श्री
पटेरिया
के
आदेश
पर
जब
संचालनालय
ने
स्पष्ट
निर्देश
समझौता
राशि
बावत्
चाहे
तो
मामले
को
सघन
जांच
हुई।
तत्कालीन
सचिव
जनशक्ति
नियोजन
श्री
आर.परशुराम
द्वारा
पुन:
नस्ती
तत्कालीन
मंत्री
श्री
राजा
पटेरिया
को
भेजी
गई
जो
उन्होंने
अपने
निर्णय
की
अंतिम
पंक्ति
में
जो
आदेश
11.11.02
को
लिखा
उसे
लोक
सेवकों
की
मदद
से
शासकीय
अधिकारियों
की
मिलीभगत
से
बदल
दिया
गया
और
उसे
बदल
कर
5
लाख
रुपये
दंड
और
भविष्य
के
लिये
चेतावनी
की
अनुशंसा
कर
दी
गई।
-
नस्ती
तत्कालीन
मुख्य
सचिव
श्री
आदित्य
सिंह
के
माध्यम
से
तत्कालीन
मुख्यमंत्री
दिग्विजय
सिंह
के
पास
पहुंची।
श्री
दिग्विजय
सिंह
के
पास
नस्ती
भेजने
के
पूर्व
तत्कालीन
मुख्य
सचिव
ने
अतिरिक्त
संचालक
के
जाली
हस्ताक्षर
का
मामला
अंकित
किया
और
24
लाख
रुपये
की
जुर्माने
की
राशि
को
उचित
बताया।
- तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय ने प्रकरण में मंत्री श्री राजा पटेरिया के मत से सहमत होते हुये 5 लाख जुर्माना और चेतावनी की सजा देना उचित समझा।
- इस कारण प्रकरण में अतिरिक्त संचालक तकनीकी शिक्षा के जाली हस्ताक्षर का मामला संचालक से लेकर मुख्य सचिव, मंत्री व मुख्यमंत्री तक के संज्ञान में आया परन्तु किसी ने कोई कार्यवाही प्रस्तावित नहीं की।
- 24 लाख रुपये के जुर्माने को 5 लाख में बिना किसी औचित्य के बदला गया जिससे शासकीय कोष को हानि पहुंची। जबकि इसी प्रकार के अन्य मामलों में राशि पूरी वसूली गई है। शासकीय अभिलेख में स्पष्ट दिखती छेड़छाड़ पर किसी के द्वारा भी संज्ञान नहीं लिया गया। मामला आर्थिक अपराध से संबंधित है जो कि काफी गंभीर है।