सीएजी रिपोर्ट में गोमती नदी को संवारने में करोड़ों के गोलमाल का खुलासा
प्रयागराज। उत्तर प्रदेश की पूर्व में रही सपा सरकार के दौरान गोमती नदी को संवारने में करोड़ों रुपये के गोलमाल का खुलासा कैग रिपोर्ट में हुआ है। प्रधान महालेखाकार सरित जफा ने अपनी रिपोर्ट मीडिया के सामने पेश करते हुये बताया कि इस योजना में पैसे पानी की तरह बहाये गये हैं। एक ओर इस परियोजना की लागत को ढाई गुना तक बढ़ा दिया गया, तो दूसरी ओर एक एजेंसी को लाभ पहुंचाने के लिये नियमों का खूब उल्ल्ंघन भी हुआ है। अब इस मामले में पूर्ववर्ती सपा सरकार के मुखिया अखिलेश यादव की मुश्किल एक बार फिर से बढेगी और लोकसभा चुनाव से पहले राजनैतिक घेराव व मुद्दा बनाने में भी पार्टियों कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी।
कैग ने अपनी रिपोर्ट को विधान मण्डल में रखने के बाद बुधवार को प्रयागराज में प्रेस कांफ्रेंस की और बताया कि हमने अपनी ओर से आपत्ति के साथ अफसरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई और सतर्कता आयोग से जांच कराने की संस्तुति की कर दी है। फिलहाल अखिलेश सरकार के दौरान हुई यह गड़बड़ियां कुछ समय पहले ही सामने आ चुकी थी। लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले इसका सार्वजनिक होना अब सियासी भूचाल लाने को तैयार है।
फिलहाल जन सुविधाओं के नाम पर सरकारी खजाने को जमकर लूटने वाले कई विभाग व उनके अफसरों पर बडी कार्रवाई की तैयारी चल रही है। संभावना है कि लोकसभा चुनाव से पहले जांच का विस्तृत रूप भी दिखाई पडने लगे।
टेंडर
में
मनमानी
प्रधान
लेखाकार
सरित
जफा
ने
बताया
कि
गोमती
रिवरफ्रंट
विकास
परियोजना
में
टेंडर
जारी
करने
को
लेकर
नियमों
की
अनदेखी
की
गयी
है।
सारे
नियम
ताक
पर
रखकर
ऐसेी
कंपनी
को
ठेका
दिया
गया,
जिसके
पास
ना
तो
तकनीकी
योग्यता
थी
और
न
ही
विकास
योजना
को
पूरी
करने
के
लायक
निर्धारित
मानदंड
को
वह
पूरा
करते
थे।
इसके
बावजूद
उस
कंपनी
को
लाभ
पहुंचाने
के
लिये
टेंडर
उनके
नाम
ही
किया
गया।
कैग
रिपोर्ट
में
इस
बात
का
भी
जिक्र
किया
गया
है
कि
जो
कंपनी
सभी
मानको
को
पूरा
करती
थी,
उन्हें
मामलू
कारण
बताकर
उनका
टेंडर
अस्वीकृत
कर
दिया
गया।
विधानमंडल में पेश की गयी रिपोर्ट
प्रधान लेखाकार सरित जफा ने बताया कि यूपी के सामान्य व सामाजिक क्षेत्र की सेवाओं में 31 मार्च 2017 तक हुए खर्च की रिपोर्ट सात फरवरी को ही विधानमंडल में रखी जा चुकी है। इसमें 2016-2017 10 योजनाओं पर हुये खर्च आॅडिट किया गया है। लेकिन 455 ईकाईयों में से 108 ने कैग को आवश्यक अभिलेख ही नहीं उपलब्ध कराये। नहीं तो सरकारी धन में गोलमाल का सच और बढी संख्या में सामने आता। कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि गोमती रिवरफ्रंट विकास परियोजना पर 656.58 करोड़ रुपये खर्च का प्रस्ताव तैयार किया गया था, जिसे बढ़ाकर 1513 करोड़ कर दिया गया। परियोजना के अधीक्षण अभियंता ने दावा किया था कि 1188.74 करोड़ रुपये के 24 कार्यों के लिए निविदा का प्रकाशन किया गया। लेकिन कैग की जांच में पता चला कि 662.58 करोड़ रुपये की 23 निविदाओं का कहीं प्रकाशन नहीं कराया गया। यानी बिना अखबार में विज्ञापन छपवाये ही टेंडर की प्रक्रिया पूरी कर ली गई । साफ तौर पर किसी एक कंपनी को ही फायदा देने के लिए ऐसा किया गया था।