हरियाणा के रत्न लक्ष्मण दास अरोड़ा का राजनीतिक सफर
राजनीतिक गलियारों में बाऊ जी और सिरसा नरेश जैसे उपनामों से पहचाने जाने वाले अरोड़ा पांच बार सिरसा विधानसभा से विधायक रहे और तीन बार कैबीनेट मंत्री भी बने। राज्य गठन के वक्त से करीब तमाम मुख्यमंत्रियों संग उनके संबंध काफी अच्छे रहे। अरोड़ा 1967 में पहली बार सिरसा हलका से विधायक बने। उन्होंने 5067 मतों से विजयी हासिल करते हुए कांग्रेस के एस.राम को पराजित किया।
विधायक बनने से पहले अरोड़ा ने बतौर नगरपार्षद अपना सियासी कॅरियर शुरू किया और नगरपरिषद के अध्यक्ष भी रहे। पड़ोसी राज्य पंजाब के कस्बे सरदूलगढ़ के गांव संघा में 13 अक्तूबर 1932 को माता चानन देवी तथा पिता धीरामल के घर में लछमन दास अरोड़ा का जन्म हुआ। जन्म के कुछ समय उपरांत अंग्रेजी शासन दौरान सरदूलगढ़ क्षेत्र में बढ़ रही लूटपाट की वारदातों के चलते अरोड़ा परिवार सिरसा आ गया था।अरोड़ा की प्रारंभिक शिक्षा गली र्बोंडिंग वाली स्थित राजकीय प्राथमिक पाठशाला से शुरू हुआ।
वर्ष 1948 में श्री अरोड़ा मलोट निवासी ज्ञान चंद कामरा की सपुत्री माया देवी के साथ वैवाहिक बंधन में बंध गये और मायादेवी ने विवाह उपरांत न सिर्फ परिवारिक जीवन बखूबी निभाया, बल्कि राजनीति में भी अरोड़ा का पूरा-पूरा सहयोग दिया। गांवों में लोगों के बीच जाकर उन्हें उनके नाम से पुकारना उनकी खासियत रहा। उनके राजनीतिक कॅरियर का जिक्र करें तो अरोड़ा ने 1967 के बाद 1982 में बतौर आजाद उम्मीदवार सिरसा विधानसभा हलके से जीत हासिल की अरोड़ा ने भाजपा के महावीर प्रसाद रातुसरिया को 1780 के वोटों से पराजित किया।
इसके बाद 1987 में हुए चुनाव में अरोड़ा ने सिरसा हलके से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा पर उन्हें सफलता नहीं मिली। 1991 में अरोड़ा ने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में 33102 वोट हासिल करते हुए भाजपा के गणेशीलाल को 18995 वोटों से हराया। अरोड़ा को कुल 40.23 वोट मिले और यह उनकी जीत का सबसे बड़ा माॢजन रहा। अलबत्ता बरस 1996 के चुनाव में अरोड़ा गणेशीलाल से करीब 4 हजार वोटों के अंतर से पराजित हो गए, पर राजनीति के इस धुरंधर ने एक बार फिर जबरदस्त वापसी दर्ज करते हुए 2000 के विस चुनावों में जीत हासिल की।
इन चुनावों में अरोड़ा ने 40522 वोट हासिल करते हुए भाजपा के जगदीश चोपड़ा को 25431 वोट के अंतर से पराजित किया। 2005 के चुनाव में अरोड़ा ने इनैलो के पदम जैन को 15204 मतों से हराया और वे हुड्डा मंत्रिमंडल में कैबिनेट रैंक के मंत्री भी बने। अरोड़ा का सियासत में एक अपनी तरह का तजुर्बा था। जरूरतमंद की तत्काल सहायता कर देना, घर आए मेहमान को मुंह मीठा कराए बिना न जाने देना, लोगों के दु:ख दर्द में हर वक्त शरीक होना और प्रत्येक सामाजिक कार्यक्रम का हिस्सा बनना जैसे कारण ही थे कि उन्होंने इतने लम्बे अरसे तक सिरसा से प्रतिनिधित्व किया।
कब-कब जीते अरोड़ा?
वर्ष | पार्टी | अंतर |
1967 | जनसंघ | 5067 |
1982 | आजाद | 1780 |
1991 | कांगे्रस | 18995 |
2000 | कांग्रेस | 14091 |
2005 | कांग्रेस | 15204 |