'विदेशी कंपनियों के दबाव में रेलवे ने नहीं अपनाया टक्कर रोधी यंत्र'
नई दिल्ली, 13 अगस्त (आईएएनएस)। रेलवे की शीर्ष शोध संस्था 'रिसर्च डिजाइन्स एण्ड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन' को टक्कर रोधी उपकरण (एसीडी) को मान्यता दिए आठ साल हो चुके हैं लेकिन अभी तक रेलवे ने इन उपकरणों को लगाने के प्रस्ताव का कार्यान्वयन नहीं किया है।
इस सुरक्षा उपकरण को विकसित करने वाले कोंकण रेलवे के तत्कालीन कार्यकारी निदेशक बी. राजाराम ने आईएएनएस को दिए एक साक्षात्कार में कहा, "वर्ष 2002 के बाद से रेलवे बोर्ड ने इस उपकरण को लगाने में लगातार बाधाएं खड़ी की हैं, नियमों में लगातार बदलाव किए गए, महीनों तक लगातार परीक्षण किए गए जो आज तक जारी हैं।"
उन्होंने कहा, "बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रतिनिधियों द्वारा इस उपकरण के खिलाफ लॉबिंग की गई और वरिष्ठ अधिकारियों ने सुझावों को अनसुना किया। हर दो साल में रेलवे बोर्ड के सदस्य बदले गए और नए सदस्यों को टक्कर रोधी उपकरण की सच्चाई समझने में एक साल लगा।"
राजाराम ने कहा, "यह टक्कर रोधी उपकरण (एसीडी), यूरोपीय कंपनी के ट्रेन प्रोटेक्शन एण्ड वार्निग सिस्टम से न सिर्फ दस गुना सस्ता है बल्कि इस सिस्टम से कहीं ज्यादा दक्ष है।"
इस उपकरण को आरडीएसओ और ब्रिटेन के लायड्स रजिस्टर रेल से मान्यता मिलने के बाद रेलवे मंत्रालय ने इसे कोंकण रेलवे और उत्तर-पूर्वी रेलवे में लगाने की मंजूरी दी थी।
राजाराम ने कहा कि रेलवे अब यूरोपीय उपकरण खरीदने पर विचार कर रहा है।
राजाराम ने कहा, "मैनें इस उपकरण के विकास के लिए केवल एक पृष्ठ का सिद्धांत लिखकर रेलवे बोर्ड को और रेलवे सुरक्षा समिति के सदस्य एस. एम. वैश्य को दिया था तब वैश्य ने कहा कि आप इस सिद्धांत को कोंकण रेलवे में उपयोग के लिए विकसित कीजिए।"
राजाराम ने कहा, "मैं इस सिद्धांत को और विकसित करने में जुट गया, रेलवे के कार्यभार के बाद दिन में छह घंटे मैं इस परियोजना पर काम करता था। मेरे साथी कर्मचारियों को ऐसे उपकरण के निर्माण पर संदेह था लेकिन मैंने इस उपकरण का प्रारूप बनाने में सफलता प्राप्त की।"
उन्होंने कहा, "प्रारूप तैयार करने के लिए मैंने अलग तरीका अपनाया, मैंने मोटोरोला, टाटा यूनिसिस और कर्नेक्स माइक्रोसिस्टम्स की मदद ली।"
वर्ष 2002 में रेल मंत्री ममता बनर्जी की मौजूदगी में उस प्रारूप का सफल परीक्षण किया गया। इसके जरिए समान पटरी पर आ रही रेल को रोकने में मदद मिली।
इस साल अब तक 13 रेल दुर्घटनाओं में 250 लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों घायल हुए हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।