उर्दू के अख़बारों की अटकलें...
उर्दू अख़बार तथाकथित हिंदू चरमपंथियों के ख़िलाफ़ की जा रही जांच में शामिल अधिकारियों की मृत्यु के बारे में कई तरह के सवाल उठा रहे हैं.
हैदराबाद से छपने वाले मुंसिफ़ के संपादकीय का हेडलाइन है, 'हेमंत करकरे के बाद ?'
इस अख़बार ने हेमंत करकरे की मृत्यु के पीछे षड़यंत्र की बात कही है और लिखा है कि उनकी और उनके साथियों की हत्या का दोष पाकिस्तानी चरमपंथियों के ऊपर डालना मुश्किल है.
अख़बार इस बात पर भी चिंता जता रहा है कि करकरे के मरने के बाद '' संघ परिवार के आतंकवाद के काले कारनामों की जाँच पर अचानक रोक लग गई है.''
मुंसिफ़ लिखता है कि 26/11 के हमले का कारण संघ परिवार के विरुद्ध जारी तहक़ीक़ात का रुख मोड़ना और जनता का इस पर से ध्यान हटाना भी हो सकता है.
संपादकीय ये मांग करता है कि करकरे की जगह नए अफसरों को लगाया जाए और ये भी सुनिश्चित किया जाए कि वो जाँच 'श्रीकृष्ण कमीशन' की जाँच रिपोर्ट की तरह ही न हो जाए.
राजनीतिक कसरत
इस आलेख में केन्द्र सरकार के ऊपर 'संघ परिवार के आतंकवाद' पर नरमी बरतने का आरोप भी लगाया गया है.
दिल्ली से छपने वाले उर्दू अख़बार राष्ट्रीय सहारा में संपादक अज़ीज़ बरनी ने इन हमलों के ऊपर एक विशेष आलेखों की श्रृंखला चला रखी है.
मंगलवार को उनके आलेख का शीर्षक है - पाँच अलग अलग स्थान पर 60 घंटे तक तबाही और केवल दस चरमपंथी बात कुछ हजम नहीं हुई.
बरनी कई सवाल उठा रहे हैं जिनमें से एक सवाल ये भी है कि भाजपा के गोधरा से सांसद भी ताज होटल में ठहरे हुए थे और वो वहां कब से ठहरे हुए थे और उनके रुकने का क्या कारण था ?
वो ये भी सवाल उठ रहे हैं कि किस तरह एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे और उनके साथियों को घेर कर मारा गया और उनकी पहचान किसने कराई ?
पर मुंबई से छपने वाला उर्दू का अखबार इंक़लाब अब तक इस तरह के षडयंत्र को लेकर अटकलें लगाने से दूर है.
मुंबई से छपने वाले अखबार इंकलाब की सुर्खी है, 'चेहरे बदलने की राजनीतिक कसरत.'
अख़बार मुंबई में हमलों के बाद शुरू हुए इस्तीफ़ों के बारे में कहता है कि ये बहुत पहले हो जाने चाहिए थे.
शिवराज पाटिल पर सख़्त टिपण्णी करने के बाद अखबार ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख और गृह मंत्री आरआर पाटिल के इस्तीफ़ों के बारे में भी कड़ी टिपण्णी की है.
अख़बार ने देशमुख और पाटिल के उन शुरूआती बयानों पर कड़ी आपति जताई है जिनमें इस्तीफे़ के सवाल पर उन्होंने कहा था कि संसद और अक्षरधाम पर हमले के बाद तत्कालीन गृह मंत्री और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस्तीफे़ नहीं दिए थे.
अख़बार सवाल करता है कि क्या भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के लिए कोई मापदंड है.
अख़बार इन इस्तीफ़ों के बारे में कह रहा है कि इनसे मूल बातें वहीं रहेंगी और पूरी व्यवस्था बदलने की ज़रूरत है.