क्या ओबीसी की खाली सीटें सामान्य वर्ग को दी जा सकती है: सर्वोच्च न्यायालय
नई दिल्ली, 15 सितम्बर (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को सरकार से पूछा कि क्या केंद्रीय शीर्ष शैक्षणिक संस्थाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित खाली सीटों पर सामान्य श्रेणी के छात्रों का नामांकन किया जा सकता है।
केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं में ओबीसी छात्रों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बारे में स्पष्टीकरण जानने संबंधी एक याचिका पर शीर्ष अदालत ने सरकार को नोटिस जारी कर यह पूछा है।
इस साल 10 अप्रैल को प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय खंडपीठ ने 27 फीसदी आरक्षण का फैसला सुनाया था।
अदालत ने सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा है कि क्या ओबीसी छात्रों के कटऑफ मार्क्स में सामान्य श्रेणी के छात्रों की तुलना में 10 फीसदी से ज्यादा की छूट दी जा सकती है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास के प्रोफेसर पी. वी. इंद्रसेन और देश के अन्य शिक्षाविदें ने मुंबई, बेंगलुरू और कोलकाता उच्च न्यायालयों में इस संबंध में याचिकाएं दाखिल की थीं।
केंद्र सरकार के एक आवेदन पर शीर्ष अदालत ने इन सभी याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित कर लिया था।
न्यायाधीश अरिजीत पसायत, न्यायाधीश सी. के. ठाकुर, न्यायाधीश आर. वी. रवींद्रन और न्यायाधीश दलवीर भंडारी की खंडपीठ ने सालिसीटर जनरल गुलाम ई. वहनावती के कहने पर यह नोटिस जारी किया। सालिसीटर जनरल ने कहा कि सरकार इस मामले में औपचारिक जवाब दाखिल करना चाहती है।
दस अप्रैल के फैसले में संविधान पीठ के पांच में से तीन न्यायाधीशों न्यायाधीश पसायत, न्यायाधीश ठाकुर और न्यायाधीश भंडारी ने ओबीसी कोटे की रिक्त सीटों को सामान्य श्रेणी को देने की वकालत की थी।
अपने संयुक्त फैसले में न्यायाधीश पसायत और न्यायाधीश ठाकुर ने कहा था कि ओबीसी छात्रों के नामांकन के लिए कटऑफ मार्क्स में पांच फीसदी से अधिक की छूट नहीं दी जानी चाहिए, जबकि न्यायाधीश भंडारी ने कटऑफ मार्क्स में 10 प्रतिशत से अधिक छूट नहीं देने की बात कही थी।
याचिका दायरकर्त्ता इंद्रसेन की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ वकील के.के. वेणुगोपाल ने अदालत से कहा कि भारतीय प्रबंधन संस्थान, बेंगलुरू में ओबीसी कोटे की 432 सीटें खाली हैं। उन्होंने कहा कि इन 432 सीटों को भरने के लिए सभी मूलभूत सुविधाएं मौजूद हैं। ऐसे में अदालत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ये संसाधन बेवजह बर्बाद न हों।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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