बाल मजदूरी को लेकर गुजरात व राजस्थान के मुख्य सचिव तलब
नई दिल्ली, 31 मार्च (आईएएनएस)। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने बुधवार को गुजरात और राजस्थान के मुख्य सचिवों को उनके राज्यों में कपास उत्पादन क्षेत्र में बढ़ रही बाल मजदूरी के मामले में तलब किया है।
नई दिल्ली, 31 मार्च (आईएएनएस)। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने बुधवार को गुजरात और राजस्थान के मुख्य सचिवों को उनके राज्यों में कपास उत्पादन क्षेत्र में बढ़ रही बाल मजदूरी के मामले में तलब किया है।
आयोग का कहना है कि गुजरात, राजस्थान और कुछ अन्य राज्यों में कपास उत्पादन में देश के जनजातीय समुदाय के बच्चों का जबर्दस्त शोषण हो रहा है।
आयोग की अध्यक्ष शांता सिन्हा के अनुसार, "हम दोनों राज्यों के सचिवों के साथ मासूम बच्चों के साथ हो रहे शोषण को रोकने हेतु नई योजना को कार्यरूप देंगे।"
एक अनुमान के अनुसार देश में कपास उत्पादन में 300,000 से भी अधिक बच्चे अमानवीय स्थितियों में काम कर रहे हैं।
सन 2001 की गणना के अनुसार भारत में विश्व में सबसे बड़ी संख्या में बाल मजदूर हैं। 5 से 14 वर्ष की आयु के बाल मजदूरों की संख्या 1.2 करोड़ से अधिक आंकी गई है।
इसके विपरीत, बाल अधिकार कर्मी यह संख्या करीब छह करोड़ बताते हैं। देश में 0 से 18 आयु वर्ग के बच्चों की संख्या 42 करोड़ हैं।
आयोग के अनुसार गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में देश का करीब 95 प्रतिशत कपास उत्पादित होता है और अनेक राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कम्पनियां स्थानीय एजेंटों के जरिए दक्षिणी राजस्थान से जनजातीय समुदाय के बच्चों को सस्ते श्रमिक के तौर गुजरात ले आती हैं।
आयोग का कहना है कि अभिभावकों को उनके बच्चों के बेहतर भविष्य का सपना दिखाकर उन्हें कुछ पैसा दे दिया जाता है और उन बच्चों को अवैध रूप से मजदूरी में लगा दिया जाता है।
समाजशास्त्री नीरा बूरा, जिन्होंने हाल ही में आयोग के समक्ष अपनी विस्तृत रिपोर्ट रखी थी, का कहना है कि बाल मजदूरी (रोकथाम एवं विनियम) धारा, 1986 हरेक प्रकार की बाल मजदूरी को रोकने में समर्थ नहीं है और इसी कारण अनगिनत बच्चों को बाल मजदूरी में झोंका जा रहा है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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