
Women Farmers Natural Farming की दिशा में कर रहीं क्रांति, 60 लाख महिलाएं महिलाएं जुड़ेंगी !
Women Farmers Natural Farming की दिशा में उल्लेखनीय तरीकों से काम कर रही हैं। आंध्र प्रदेश समुदाय प्रबंधित प्राकृतिक खेती (APCNF) को रायथू साधिका संस्था (RySS) की ओर से कार्यान्वित किया जाता है। ये एक गैर-लाभकारी किसान सशक्तिकरण समूह है। इसकी मदद से प्राकृतिक खेती की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव देखे जा सकते हैं।

करीब 60 लाख किसानों ने आंध्र प्रदेश में 2031 तक प्राकृतिक खेती पर शिफ्ट करने का फैसला किया है। दरअसल, भले ही भारत में खेती वाले जमीनों के मालिक पुरुष होते हैं लेकिन खेती के काम में महिलाएं पुरुषों के अनुपात में अधिक बढ़ चढ़कर भाग लेती हैं। साल 2015-16 में हुई कृषि जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाओं के मालिकाना हक वाली 20.4 मिलियन खेती योग्य जमीन में 12.6 फीसद आंध्र प्रदेश में है। जबकि देश के। 12 राज्यों में महिलाओं के स्वामित्व वाली कृषि भूमि 92% है।
महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक
यह भी दिलचस्प है कि 55 प्रसिद्ध प्रतिशत पुरुष ग्रामीण भारत में कृषि कार्य में लगे हैं, जबकि 4 में से 3 से अधिक महिलाएं खेती के काम में लगी होती हैं। इसका मतलब साफ है कि खेत में काम करने वाली महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक है।
40 साल की मैरी पति मनोहर
ऐसी ही एक महिला हैं वाईएसआर जिले में (पहले कडपा जिला) में रहने वाली मैरी। नीम के पेड़ की छाया में अपने एक कमरे के घर के सामने, मैरी अपने छह महीने के जुड़वां पोते-पोतियों के साथ रहती हैं। गर्मी कम होने और हवा तेज होने के साथ ही 40 साल की मैरी पति मनोहर और सबसे छोटी बेटी श्रीलेखा के साथ, घर के बगल की एक एकड़ जमीन पर चली जाती हैं। कुछ हफ्ते पहले उन्होंने केले के पौधे लगाए थे।
रोपाई से पहले बीज अमृतम से उपचार
इस खेत में लगी ड्रिप इरिगेशन पद्धति सिंचाई वाली पाइप के किनारे किनारे टमाटर और मिर्ची के बीच के रोपाई की गई है। लंबी कतारों में रोपे गए इन बीजों को बीज अमृतम से उपचारित किया जाता है। अमृतम का मतलब बीज के लिए अमृत है। इसमें मिट्टी के अलावा गाय का गोबर, गोमूत्र और चूने का मिश्रण इस्तेमाल किया जाता है।
पहले खेती में रासायनिक उत्पादों की मदद
2019 के बाद से मैरी और उनके परिवार ने प्राकृतिक खेती करनी शुरू कर दी है। लगभग 25 से अधिक वर्षों से खेती कर रही मैरी बताती हैं कि प्राकृतिक खेती के प्रभाव से उनके खेत की मिट्टी पहले से अधिक मुलायम हो गई है। यहां पैदा होने वाले उत्पाद लंबे समय तक टिके रहने के अलावा स्वास्थ्य के लिए भी अच्छे होते हैं। प्राकृतिक खेती की शुरुआत से पहले रासायनिक उत्पादों की मदद से और मूंगफली की खेती करते थे। अब प्राकृतिक खेती में कायाबी की मिसाल कायम कर रह हैं।
लागत से 15% अधिक पैसा कमाया
व्यक्तिगत स्तर पर प्राकृतिक तरीकों से खेती की गई उपज के लिए सफलतापूर्वक बाजार बनाने का एक उदाहरण तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम भी है। यहां 2021 में दैनिक जरुरतों के लिए प्राकृतिक कृषि उपज की खरीद शुरू की गई थी। 300 से अधिक अन्य मंदिरों ने भी इसका अनुसरण किया। लगभग 2,000 हेक्टेयर प्राकृतिक रूप से खेती की गई भूमि मंदिर से जुड़ी हुई थी, जिस पर 1,500 टन का उत्पादन और खरीद की गई थी। किसानों ने रासायनिक खेती से तैयार उत्पादों की लागत से 15% अधिक पैसा कमाया।
प्राकृतिक खेती वाली उपज के उपभोक्ता कौन ?
2022-23 में APCNF का अनुमान है कि यह खरीद के लिए लगभग 15,000 टन में उगाई गईं 12 फसलों के साथ 25,000 हेक्टेयर खेत जुड़ेंगे। समावेशी खेती के केंद्र सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर पैरोकार रामंजनेलु ने कहा, उम्मीद यह है कि यह मॉडल धीरे-धीरे विकसित होगा और आंगनबाड़ियों और सरकार द्वारा संचालित अन्य संस्थानों को भी प्राकृतिक खेती वाली उपज के उपभोक्ता के रूप में शामिल करेगा।
प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए ...
फिलहाल मैरी अपने खेत में केले की फसल की प्रतीक्षा कर रही हैं। प्राकृतिक खेती जारी रखने और अपने खेत में कई फ़सलें उगाने की उम्मीद रखने वाली मैरी कहती हैं कि वह अन्य महिलाओं को भी कम से कम छोटे स्तर औऱ तरीके से प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेंगी।
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