जयंती: 18 वर्ष की उम्र में झांसी की रानी बनी थीं लक्ष्मीबाई, जो कभी नहीं आईं अंग्रेजों के हाथ
जयंती: 18 वर्ष की उम्र में झांसी की रानी बनी थीं लक्ष्मीबाई, जो कभी नहीं आईं अंग्रेजों के हाथ
नई दिल्ली, 19 नवंबर: झांसी की रानी, रानी लक्ष्मीबाई की 19 नवंबर को देशभर में जयंती मनाई जाती है। हालांकि लक्ष्मीबाई के जन्म की सही तारीख अभी भी बहस का विषय है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को हुआ था। 1857 के विद्रोह में खोए लोगों के सम्मान के लिए झांसी में इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाई जाती है। रानी लक्ष्मीबाई का जन्म एक मराठा ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनका नाम मणिकर्णिका रखा गया था। उन्हें मणिकर्णिका से मनु उपनाम दिया गया था। रानी लक्ष्मीबाई 1857 के विद्रोह की प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थीं। देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम 10 मई 1857 को शुरू हुई थी। रानी लक्ष्मीबाई पूरे भारतीय के लिए ब्रिटिश राज के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ने वाली एक प्रतीक बन गई हैं।
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जानिए रानी लक्ष्मीबाई के बारे में
रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही अपने उम्र की लड़कियों के मुकाबले काफी तेज थीं। रानी लक्ष्मीबाई अपनी उम्र की अन्य लड़कियों की तुलना में अधिक स्वतंत्र थी और उस समय आमतौर पर बेटों के जैसे उनका पालन-पोषण किया गया था। मणिकर्णिका ने चार साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया था और पेशवा के दरबार में सलाहकार के रूप में काम करने वाले उनके पिता ने उनका पालन-पोषण एक अपरंपरागत तरीके से किया था। उनके पिता ने घुड़सवारी, तीरंदाजी, आत्मरक्षा और निशानेबाजी सीखने में उनका साथ दिया था।
मणिकर्णिका कब बनीं रानी लक्ष्मीबाई
मणिकर्णिका यानी लक्ष्मीबाई ने 1842 में महाराजा गंगाधर राव नेवालकर से शादी की थी। जिसके बाद उन्हें रानी लक्ष्मीबाई कहा जाने लगा। शादी के कुछ सालों बाद 1851 में मणिकर्णिका ने एक लड़के को जन्म दिया, लेकिन वह जीवित नहीं रह सका और चार महीने बाद उसकी मृत्यु हो गई थी। फिर लक्ष्मीबाई और गंगाधर राव ने राव के चचेरे भाई के बेटे आनंद राव को गोद लिया, जिसे बाद में दामोदर नाम दिया गया।
आनंद को गोद लेने के तुरंत बाद महाराजा गंगाधर राव की1853 में एक बीमारी के कारण मृत्यु हो गई थीं। पति की मौत के बाद लक्ष्मीबाई झांसी की महारानी बनी थीं। जब लक्ष्मीबाई झांसी की शासक बनीं तो मात्र 18 साल की थीं।
मरते दम तक अंग्रेजों के हाथ नहीं आई थीं रानी लक्ष्मीबाई
ईस्ट इंडिया कंपनी (अंग्रेजों) ने महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु का लाभ उठाया और चूक के सिद्धांत को लागू किया। दामोदर राव को अंग्रेजों ने कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं किया। इस अन्याय से नाराज रानी लक्ष्मीबाई ने लंदन की एक अदालत में भी अपील की थी, जिसने उनके मामले को खारिज कर दिया।
रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी को किसी को नहीं देने का दृढ़ संकल्प किया और इसलिए विद्रोहियों की एक सेना को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई को कई महान योद्धाओं का समर्थन भी मिला। अपनी रक्षा को मजबूत करने के लिए रानी के पास महिलाओं की भी एक सेना भी थी।
ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों और झांसी की सेना में हुए एक भीषण युद्ध के बाद, जब ब्रिटिश सेना ने झांसी में प्रवेश किया, तो रानी लक्ष्मीबाई ने अपने बेटे दामोदर राव को अपनी पीठ पर बांध लिया और अपने दोनों हाथों में तलवारों को लेकर बहादुरी से लड़ीं। जब उन्हें लगा कि वह घायल हो गई हैं और उनका आखिरी वक्त आ गया है तो वह अंग्रेजों के बचकर अपने बेटे को पीठ पर बांधे हुए एक सुरक्षित जगह मंदिर में पहुंचीं। कहा जाता है कि वही रानी लक्ष्मीबाई की मौत हुई थी। भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देते हुए 17 जून 1958 को उनका निधन हो गया।