Haldwani Land Encroachment: हल्द्वानी में टुकड़े टुकड़े गैंग का दूसरा शाहीन बाग
वोट बैंक बनाने के लालच में भ्रष्ट नेताओं ने अन्य राज्यों के लोगों को हल्द्वानी लाकर वहां रेलवे एवं अन्य सरकारी जमीनों पर कब्जा करने दिया। अब न्यायालय द्वारा अवैध कब्जे हटाने के आदेश पर दुनिया भर में झूठ फैलाया जा रहा है।
Haldwani Land Encroachment: आज सुबह मुझे वाशिंगटन से एक ईमेल आया| ईमेल इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउन्सिल का है। वाशिंगटन में मुख्यालय वाली यह संस्था भारत में होने वाली घटनाओं को मुस्लिम एंगल से उठाकर दुनिया भर में भारत को बदनाम करने के लिए उनका इस्तेमाल करती है| भारतीय मुसलमानों की पैरवी करने वाले इस ताज़ा ईमेल में कहा गया है कि भारत के सुप्रीमकोर्ट को उत्तराखंड में मुसलमानों की मल्कियत वाले 4000 से ज्यादा मकानों को तोड़ने से हर हालत में रोकना चाहिए|
असल में चार जनवरी को ही उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ यह मामला दुबारा सुप्रीमकोर्ट में पहुंचा है। हाईकोर्ट का अवैध निर्माण हटाने का पहला आदेश 2016 में आया था| हाईकोर्ट के फैसले खिलाफ 2017 में भी यह मामला सुप्रीमकोर्ट पहुंचा था, तब सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट को दुबारा सुनवाई के लिए कहा था| इधर भारत में भी रवीश कुमार जैसे पत्रकार यह मुहिम चला रहे हैं कि अवैध कब्जा क्योंकि बेचारे मुसलमानों ने किया है, इसलिए उसे न तोड़ा जाए|
हैरानी तब हुई, जब वाशिंगटन से आई मुस्लिम संगठन की ईमेल में कहा गया कि हल्द्वानी में बने ये मकान मुस्लिमानों की मल्कियत हैं, यानि उनकी वैध प्रापर्टी है| आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि यह टूलकिट गैंग किस तरह काम करता है| अमेरिका समेत दुनिया भर में यह संदेश दिया जा रहा कि भारत में मुसलमानों के उनके खरीदे हुए मकानों को ढहाया जा रहा है| फिर भारत के खिलाफ एक मुहिम चलेगी कि यहां की सरकार अल्पसंख्यकों के घरों पर बुलडोजर चला कर उन पर अत्याचार कर रही है|
दुनिया भर के इन मुस्लिम संगठनों ने इसी टूलकिट मीडिया के सहयोग से रामजन्मभूमि मंदिर पर भी यही खेल किया था और सत्तर साल तक हाईकोर्ट सुप्रीमकोर्ट खेलते रहे थे| सवाल यह है कि क्या इस मुद्दे पर भी सुप्रीमकोर्ट इस भारत विरोधी कम्युनिस्ट टूलकिट गैंग के हाथों में खेलेगा?
चलिए इस मुद्दे को सही से समझते हैं। उत्तराखंड की हाईकोर्ट ने दुबारा सुनवाई के बाद पिछले महीने 20 दिसंबर को आदेश दिया था कि रेलवे और स्थानीय प्रशासन एक हफ्ते का नोटिस देकर हल्द्वानी की गफूर बस्ती में रेलवे की जमीन पर कब्जा कर के बनाए गए अवैध निर्माण को हटा दे| हाईकोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा था कि यह रेलवे की प्रापर्टी है, यह नजूल की प्रापर्टी नहीं है, जैसा कि अवैध निर्माण करने वालों ने दावा किया था|
यहां यह बताना जरूरी है कि अवैध कब्जा करने वाले अंग्रेजों के जमाने का 17 मई 1907 का नगरपालिका का कोई कागज उठा लाए थे, जिसमें कब्जे वाली जमीन को नजूल भूमि कहा गया था| अब आप को बताते चलें कि नजूल जमीन क्या होती है। यह एक उर्दू का शब्द है, जिसका मतलब है, वह भूमि जिसे 1857 के विद्रोह के कारण उसके मालिकों ने छोड़ दिया था, तब इस जमीन को अंग्रेजों ने ब्रिटिश रानी के नाम कर दिया| लेकिन हल्द्वानी में 1857 का विद्रोह हुआ ही नहीं, इसलिए यह जमीन नजूल की भूमि हो ही नहीं सकती| इसका जिक्र हाईकोर्ट के फैसले में भी किया गया है|
हाईकोर्ट ने अपने 176 पेज के आदेश में कहा कि यह दस्तावेज न तो सरकारी आदेश है और न ही अवैध कब्जे का अधिकार देता है| बल्कि नगर पालिका का यह दस्तावेज खुद नजूल भूमि की बिक्री या पट्टे पर देने को भी रोकता है| नजूल नियमों के नियम 59 का उल्लेख करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि रेलवे स्टेशन से लगती नजूल भूमि को बिना रेलवे की मंजूरी के न तो पट्टे पर दिया जा सकता है, न बेचा जा सकता है|
दूसरे राज्यों से आकर बसे इन मुसलमानों ने रेलवे की जमीन पर कब्जा कर के पहले मस्जिद और मदरसे बनाए और फिर घर और दुकानें तक बना कर लगभग 29 एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया| कांग्रेस राज में प्रशासन आंख मूंद कर सोया रहा| देश का दुर्भाग्य यह है कि अदालतें उन रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारियों को ढूंढ कर जेल भेजने का आदेश नहीं देती, जिनके पद पर रहते हुए सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे हुए थे|
यह मामला कोई दस साल से हाईकोर्ट में चल रहा था| पहली बार यह मामला रवि शंकर जोशी की एक जनहित याचिका के माध्यम से 2013 में हाईकोर्ट पहुंचा था| जिसने अवैध माईनिंग के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। याचिका की सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई थी कि कुछ लोगों ने रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा है, वही अवैध माईनिंग कर रहे हैं। इस पर हाईकोर्ट ने 9 नवंबर 2016 को दस हफ्तों के भीतर अवैध निर्माण हटाने के आदेश दिए थे|
यहां मजेदार बात यह है कि तब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी| हरीश रावत मुख्यमंत्री थे, उनके निर्देश पर राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी। आप देखिए कि किस प्रकार कांग्रेस सरकारें खुद सरकारी जमीनों पर एक वर्ग विशेष के अवैध कब्जे करवाती रही और फिर उनका संरक्षण भी करती रहीं| इसका जिक्र हाईकोर्ट ने अपने ताज़ा फैसले में भी किया है| हाईकोर्ट ने 10 जनवरी 2017 में पुनर्विचार याचिका को खारिज करके अपने पहले के आदेश को बरकरार रखा तो राज्य सरकार और अवैध कब्जाधारी सुप्रीमकोर्ट पहुंच गए थे|
सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट से कहा था कि वह मामले की फिर से सुनवाई करे, जिसमें कब्जाधारियों का पक्ष भी सुना जाए| अब पांच साल दुबारा सुनवाई के बाद हाईकोर्ट दस्तावेजों के आधार पर इस नतीजे पर पहुंची है कि कई सालों से अवैध निर्माण होता रहा और प्रशासन गहरी नींद सोया रहा| प्रशासनिक अधिकारियों ने खुद राजनीतिक आकाओं के इशारे पर बिना रेलवे से मंजूरी लिए अवैध पट्टे बनाए, जिनकी कोई कानूनी वैधता नहीं थी, इसलिए ये सारे कब्जे अवैध हैं|
फैसले में उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस आर.सी. खुलबे भी शामिल हैं| हाईकोर्ट ने राजनीतिज्ञों की पोल खोलते हुए अपने आदेश में यह भी कहा है कि सत्ताधारी राजनीतिज्ञों ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए अवैध पट्टे बनवा कर रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जे करवाए और अपने वोट बैंक को बरकरार रखने के लिए हाईकोर्ट के 2016 के आदेश पर पुनर्विचार याचिका लगाई, जिसे 10 जनवरी, 2017 को ही हाईकोर्ट की खंडपीठ ने खारिज कर दिया था|
अदालत ने यह भी कहा कि जिस तरह नजूल की जमीन के प्रशासनिक अधिकारियों ने अवैध पट्टे बनाए, इस परंपरा को तुरंत रोका जाना चाहिए| नजूल की जमीन का सार्वजनिक उपयोग करने के लिए ही इस्तेमाल होना चाहिए| कोई भी निजी आवश्यकता सार्वजनिक जरूरत पर हावी नहीं हो सकती| इसलिए हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को हर हालत में अवैध कब्जे हटाने का स्पष्ट आदेश दिया था|
हाईकोर्ट के इस आदेश के मुताबिक़ 28 दिसंबर को जिनके अवैध निर्माण हटाये जाने थे, उसी वर्ग विशेष ने 25 दिसंबर से ही हल्द्वानी की अवैध गफूर बस्ती को दूसरा शाहीन बाग़ बना दिया है| अर्धसैनिक बल भी अवैध निर्माण हटाने में असमर्थ हो गए हैं| हल्द्वानी को मुस्लिम हिन्दू का विवाद बनाने की अंतरराष्ट्रीय साजिश शुरू हो चुकी है।
शाहीन बाग़ को पर्दे के पीछे से चलाने वाला टुकड़े टुकड़े गैंग हल्द्वानी पहुंच चुका है| धरने को चलाए रखने के लिए मुस्लिम देशों से पैसा भेजना शुरू हो चुका है| अंतरराष्ट्रीय प्रचार की जिम्मेदारी अल जजीरा न्यूज चैनल ने संभाल ली है|
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सुप्रीमकोर्ट का रूख भी किया गया है, जिस पर दबाव बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार किया जा रहा है| खतरा यह है कि सुप्रीमकोर्ट ने शाहीन बाग़ का सड़क पर धरना खत्म करने के आदेश भी नहीं दिए थे, और किसानों का सड़कों पर कब्जा हटाने के आदेश भी नहीं दिए थे|
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)