Terror Funding: चीन, पाक और अफगानिस्तान नहीं रोकेंगे आतंकियों को फंडिंग
भारत ने जब अस्सी के दशक में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का सामना करना शुरू किया था, तब सारी दुनिया लंबी तान कर सो रही थी। अमेरिका में जब तक 9/11 नहीं हुआ था, तब तक दुनिया लंबी तान कर सोई ही रही।
आतंकवादियों को हो रही फंडिंग इस समय दुनिया के लिए सबसे ज्यादा चिंता का विषय है। भारत इस अवैध नकदी प्रवाह को रोकने में तेजी से अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
आतंकवादियों को फंडिंग के रास्ते रोकने के उपाय करने की पहल 2018 में फ्रांस ने की थी, जब आतंकवाद को हो रही फंडिग पर रोक लगाने के लिए फ्रांस में पहली अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस बुलाई गई। 2019 में दूसरी कांफ्रेंस आस्ट्रेलिया में हुई। तीसरी कांफ्रेंस करवाए जाने की पेशकश भारत ने की थी, लेकिन कोरोना के कारण 2020 और 2021 में कांफ्रेंस नहीं हो सकी।
दो साल के अंतराल के बाद अब तीसरी कांफ्रेंस 18-19 नवंबर को भारत में हो रही है, जिस में 73 देश हिस्सा ले रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भारतीय टीम का नेतृत्व करेंगे, क्योंकि कांफ्रेंस का आयोजक गृह मंत्रालय है।
कांफ्रेंस
में
23
देशों
के
गृह
या
रक्षा
मंत्री
हिस्सा
ले
रहे
हैं।
लेकिन
आतंकवादियों
को
फंडिंग
रोकने
के
लिए
होने
वाली
इस
अंतरराष्ट्रीय
कांफ्रेंस
में
न
पाकिस्तान
आ
रहा
है,
न
अफगानिस्तान।
ये
दोनों
देश
आंतकवादियों
की
शरण
स्थली
बने
हुए
हैं।
इतना
ही
नहीं
संयुक्त
राष्ट्र
में
भारत
विरोधी
आतंकवादियों
पर
प्रतिबन्ध
लगाने
और
आतंकवादियों
की
फंडिंग
रोकने
के
लिए
भारत
के
प्रस्ताव
पर
अनेकों
बार
वीटो
लगाने
वाला
चीन
भी
इस
कांफ्रेंस
में
शामिल
नहीं
हो
रहा।
चाहे
वह
भारत
और
अमेरिका
का
लश्कर-ए-तोइबा
के
आतंकी
शाहिद
महमूद
को
अंतरराष्ट्रीय
आतंकी
घोषित
करने
का
प्रस्ताव
हो,
या
साजिद
मीर
और
मसूद
अजहर
को
अंतरराष्ट्रीय
आतंकवादी
घोषित
करने
का
प्रस्ताव
हो।
पाकिस्तान के आतंकवाद को भारत ने इस्लामी आतंकवाद के रूप में देखा और झेला है, क्योंकि भारत के खिलाफ पाकिस्तान के आतंकवाद का आधार ही मुस्लिम बहुल कश्मीर है। अभी अफगानिस्तान में तालिबान शासन आने के बाद तालिबानियों ने भी कश्मीर का मुद्दा उठा कर वहां आतंकी भेजने की बात कही थी।
दुनिया के अन्य देशों में हुई आतंकवादी वारदातों में भी किसी न किसी मुस्लिम देश, मुस्लिम देश से फंडिंग या मुस्लिम संगठन का हाथ सामने आया है। अमेरिका सहित कई देशों में हुई वारदातों में पाकिस्तान और अफगानिस्तान का जिक्र ख़ास तौर पर आया है। इसलिए अब अमेरिका, इटली और फ्रांस जैसे कई देश खुल कर इस्लामी आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल भी कर रहे हैं।
आतंकवादियों को विभिन्न माध्यमों से हो रही फंडिंग को रोकना दुनिया के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। पिछले महीने हुई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-रोधी समिति की बैठक में भी क्रिप्टोकरंसी के माध्यम से आतंकी फंडिंग और आतंकवादी संगठनों की ओर से इंटरनेट के इस्तेमाल से होने वाले खतरे प्रमुख चिंताओं में शामिल थे।
बैठक में अपनाई गई दिल्ली घोषणा ने सदस्य राज्यों को "प्रीपेड कार्ड, वर्चुअल एसेट्स और क्राउड फंडिंग प्लेटफॉर्म से जुड़े जोखिमों पर विचार करने की बात कह कर आगाह किया था। इस संबंध में वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) की "आवश्यक" भूमिका को स्वीकार किया गया और सदस्य राज्यों से वित्तीय लेनदेन की पता लगाने की क्षमता और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कहा गया। भारत ने एफएटीएफ (Financial Action Task Force) जैसे उपाय करने के सुझाव भी दिए थे।
एनएमएफटी (No Money for Terror) की तीसरी बैठक में भारत आतंकवाद को फंडिंग में एनजीओ की भूमिका, वेस्टर्न यूनियन, इसी तरह के अन्य प्लेटफार्मों और हवाला नेटवर्क पर भी चर्चा करेगा। क्योंकि जम्मू कश्मीर में एनआईए ने आतंकवादियों को अंतरराष्ट्रीय फंडिंग का जो भंडाफोड़ किया था, उसमें इन सभी रास्तों का इस्तेमाल पाया गया था।
आतंकी वित्तपोषण अपराधों की जांच के दौरान जांच एजेंसियों के सामने आने वाली चुनौतियों, वित्तीय खुफिया इकाइयों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान और मनी लॉन्ड्रिंग भी चर्चा के मुख्य बिन्दु रहेंगे।
वैश्विक स्तर पर कई देश कई सालों से आतंकवाद और उग्रवाद से प्रभावित रहे हैं। भारत ने तीन दशकों से भी अधिक समय में कई प्रकार के आतंकवाद और इसको मुस्लिम देशों से हो रही फंडिंग का सामना किया है। इसलिए भारत समान रूप से प्रभावित राष्ट्रों के दर्द और आघात को समझता है।
शांतिप्रिय देशों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने और आतंकवादी वित्तपोषण का मुकाबला करने पर निरंतर सहयोग के लिए एक पुल बनाने में मदद करने के लिए, भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
अक्टूबर में भारत ने दो वैश्विक कार्यक्रमों की मेजबानी की। दिल्ली में इंटरपोल की वार्षिक आम सभा हुई और संयुक्त राष्ट्र की काउंटर टेररिज्म कमेटी का मुम्बई और दिल्ली में विशेष सत्र हुआ। विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने मुंबई के उसी ताज होटल में प्रतिनिधियों को संबोधित किया, जहां पाकिस्तानी आतंकवादियों ने समुद्र के रास्ते घुसपैठ करके सबसे बड़ी आतंकी वारदात की थी, और 166 लोगों की हत्या की गई थी। अब भारत एनएमएफटी (नो मनी फॉर टेरोरिज्म) सम्मेलन आयोजित कर रहा है।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)