क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

आईएनएस विक्रांत की खरीददारी में नेहरू ने माउंटबेटन को क्यों शामिल किया?

Google Oneindia News

प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 25 जून 1956 को लंदन की यात्रा पर गए भारत के रक्षा सचिव एमके वेलोड़ी को एक पत्र लिखा। यह पत्र ब्रिटिश सरकार से भारत के पहले विमानवाहक जहाज की खरीददारी के सम्बन्ध में था। रक्षा सचिव वेलोड़ी भी इसी सिलसिले में वहां गए हुए थे। ब्रिटिश सरकार और भारत सरकार के बीच दो विमानवाहक जहाजों - एक हरक्यूलिस और दूसरा हर्मेस में से किसी एक की खरीददारी की बातचीत चल रही थी।

Nehru engaged Mountbatten in purchase of INS Vikrant

प्रधानमंत्री नेहरू ने वेलोड़ी को उस पत्र के माध्यम से बताया कि "हर्मेस थोडा अत्याधुनिक है इसलिए वह महंगा भी है और उसकी भारत को सुपुर्दगी में भी अधिक समय लगेगा। अतः हमें हरक्यूलिस को ही खरीदना चाहिए। मेरी लार्ड माउंटबेटन से इस सन्दर्भ में बात हो गयी है और उन्हें भी हरक्यूलिस ही हमारे लिए ठीक लगता है। मैं इसकी बाकी जानकारी माउंटबेटन को भेज दूंगा।"

प्रधानमंत्री नेहरू का भारतीय रक्षा सौदों के लिए माउंटबेटन से सलाह-मशविरा करने का कोई मतलब नहीं था। तब भारत न सिर्फ एक संप्रभु देश बल्कि अपने हितों की रक्षा के लिए स्वतः निर्णय लेने के लिए पूर्णतः सक्षम भी था। माउंटबेटन ब्रिटिश सरकार में कोई प्रतिनिधि भी नहीं थे और भारत से तो उनका सम्बन्ध सालों पहले ही समाप्त हो गया था। फिर भी पता नहीं क्यों भारत विभाजन के दोषी और लाखों निर्दोषों की हत्या एवं करोड़ों नागरिकों पर हुए अत्याचारों के गुनाहगार माउंटबेटन के प्रति लगाव नेहरू के मन से नहीं गया था। क्या यह सिर्फ पुरानी दोस्ती थी या नेहरू को प्रधानमंत्री बनने में मदद करने हेतु मॉउंटबैटन के एहसान का बोझ था? या इतने बड़े रक्षा सौदे में नेहरू की मॉउंटबैटन को कोई 'विशेष लाभ' पहुँचाने की योजना थी?

तत्कालीन रक्षा मंत्री केएन काटजू और मंत्रिमंडल की रक्षा समिति ने भी 30 अप्रैल 1956 को हरक्यूलिस खरीदने पर ही अपनी मुहर लगायी क्योंकि ब्रिटिश नौसेना हर्मेस को 1965 से पहले भारत को बेचने में असमर्थ थी। चूँकि प्रधानमंत्री नेहरू ने भी हरक्यूलिस खरीदने का मन बना लिया था तो अब बारी उसके लेनदेन की रकम पर बातचीत की थी। यहाँ भी प्रधानमंत्री नेहरू ने माउंटबेटन से सुझाव माँगा कि भारत को इस जहाज को खरीदने के लिए कितने पैसे 'टोकन' के तौर पर देने चाहिए? तो माउंटबेटन ने उन्हें बताया कि वह 100,000 पाउण्ड दे सकते है।"

प्रधानमंत्री नेहरू ने 6 जुलाई 1956 को अपनी बहन और ब्रिटेन में भारत की हाई कमिश्नर विजयलक्ष्मी पंडित को पत्र लिखकर कहा कि "हमें 50,000 पाउण्ड 'टोकन' के तौर पर देने चाहिए।" इस पर ब्रिटिश सरकार का कहना था कि हम सौदे के तौर पर आपकी 'टोकन' की राशि को स्वीकार कर लेते है। इस सन्दर्भ में प्रधानमंत्री नेहरू और माउंटबेटन के बीच कितने पत्राचार हुए उसके कुछ गिने-चुने ही पत्र अभी उपलब्ध है। इतना जरुर है कि 'टोकन' की इस राशि के लिए भी प्रधानमंत्री ने माउंटबेटन के माध्यम से ही ब्रिटिश सरकार से बात पक्की की होगी।

वास्तव में यह प्रधानमंत्री नेहरू की कूटनीतिक विफलता का एक स्पष्ट उदाहरण है। यह ठीक है कि एक युद्धक विमानवाहक जहाज को भारतीय सुरक्षा की दृष्टि से खरीदना बहुत महत्वपूर्ण था लेकिन उसके लिए प्रधानमंत्री नेहरू सीधे तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री एन्थनी ईडन से भी संपर्क कर सकते थे। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। वे उनसे सीधे बात करने में न जाने क्यों डर भी महसूस करते थे।

इस तथ्य की प्रमाणिकता प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा एंथनी को 2 जुलाई 1956 को लिखे एक पत्र से हो जाती है। यह पत्र हरक्युलिस की खरीदारी के सन्दर्भ में ही था और वे इसकी शुरुआत में लिखते हैं, "मुझे माफ़ कीजिये कि मैं आपके व्यस्त समय में आपको यह पत्र लिखकर परेशान कर रहा हूँ।" इसी प्रकार पत्र के अंत में उन्होंने लिखा, "इस मामले में आपसे सीधे संपर्क करने के लिए कृपया मुझे क्षमा करें।"

किसी एक देश के प्रधानमंत्री से सम्मान के साथ पेश आना कोई गलत बात नहीं है। मगर यहाँ हालात दूसरे थे। यह सम्मान से ज्यादा लाचारी और डर नजर आता है। ब्रिटेन ने भारत को हरक्यूलिस 'खैरात' में नहीं बेचा था। उसके लिए ब्रिटिश सरकार ने बहुत बड़ी राशि की मांग की और भारत ने भी अपनी क्षमता से परे जाकर इस राशि का भुगतान किया था। ऊपर से जहाज को पुनः विकसित करने के लिए भी बड़ी पूंजी भारत सरकार ने ब्रिटेन को दी थी।

उस दौर में विश्व में गिनती के देशों के पास ही ऐसे जहाज होते थे और अब भारत भी उस श्रेणी का हिस्सा बनने जा रहा था। तो यह भारत के लिए गर्व का विषय था लेकिन दुर्भाग्य ऐसा था कि हमारे प्रधानमंत्री को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री से बात करने में हिचक हो रही थी। जबकि प्रधानमंत्री नेहरू महीनों-महीनों तक यूरोप के अधिकारिक दौरों पर रहते थे लेकिन वे माउंटबेटन से आगे कोई सम्बन्ध ही नहीं बना सके।

अब तीसरा मुद्दा था कि भारत द्वारा जहाज को खरीदने पर उसे विकसित करने की जिम्मेदारी किसे दी जाए? इस पर नेहरू ने फिर से माउंटबेटन की ओर देखा और सुझाव मांगे। दरअसल, एक डच कंपनी ने जहाज को विकसित करने के लिए 4 मिलियन पाउण्ड मांगे जबकि ब्रिटिश सरकार ने इसका खर्चा 10 मिलियन पाउण्ड के आसपास मांगा। इस पर माउंटबेटन ने बताया कि डच कंपनी जहाज को ठीक विकसित नहीं कर पायेगी इसलिए ब्रिटिश सरकार की पेशकश को ही स्वीकार करना चाहिए।

आखिरकार माउंटबैटन के प्रभाव से प्रधानमंत्री नेहरू अधिक कीमत पर हरक्यूलिस को खरीदने और उसे विकसित करने के लिए तैयार हो गए। 4 मार्च 1961 को ब्रिटेन में भारत की हाई कमिश्नर विजय लक्ष्मी पंडित ने बेलफ़ास्ट में इस पहले विमानवाहक पोत को भारतीय नौसेना में कमीशन किया और इस प्रकार आईएनएस विक्रांत अस्तित्व में आया।
इन्ही प्रक्रियाओं के बीच, 13 अप्रैल 1961 को लोकसभा में कांग्रेस के सदस्य और आजमगढ़ से सांसद कालिका सिंह ने रक्षा मंत्री से प्रश्न किया कि यह जो हरक्यूलिस है जिसका नाम अब विक्रांत हो गया है, वह अपनी पूर्ण क्षमता में कितने जंगी विमानों को रख सकता है? इस प्रश्न का जवाब रक्षा राज्य मंत्री रघुरमैय्या ने यह कहते हुए दिया कि "विमानवाहक जहाज की पूरी क्षमता के बारे में खुलासा करना राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में नहीं होगा।"

क्या यह प्रधानमंत्री नेहरू और उनकी सरकार का दोहरा रवैया नहीं था कि एक तरफ वे जहाज से जुडी हर छोटी से छोटी बात व जानकारी माउंटबेटन के साथ साझा कर रहे थे और राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ पूरा समझौता कर चुके थे। दूसरी तरफ भारतीय संसद को जहाज की क्षमता की जानकारी देने में भी असमर्थता व्यक्त कर रहे थे।

अंत में एक बात पर और गौर करना चाहिए कि जब आईएनएस विक्रांत का बम्बई में उद्घाटन किया गया तो प्रधानमंत्री नेहरू के पास उसके लिए पर्याप्त समय भी नहीं था। वे 3 नवम्बर 1961 को उसके स्वागत के लिए बम्बई पहुंचे और एक भाषण दिया और चले गए। वे एक दिन पहले ही यूरोप के एक लम्बे दौरे से लौटे थे। अतः बाकी औपचारिक कार्यक्रमों की जिम्मेदारी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को सौंप दी गयी।

यह भी पढ़ेंः इंडिया गेट से: राष्ट्रवादी मुसलमानों और उदारवादी हिन्दुओं की पार्टी बनाएंगे गुलाम नबी आज़ाद

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

Comments
English summary
Nehru engaged Mountbatten in purchase of INS Vikrant
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X