Bhojshala: बसंत उत्सव को तरसती भोजशाला की सरस्वती
मध्य प्रदेश के धार में स्थित भोजशाला को बीते कुछ सालों से एक विवादित स्थल बना दिया गया है। मुस्लिम पक्ष यहां नमाज पढ़ने की जिद करता है और हिन्दू पक्ष हनुमान चालीसा। लेकिन भोजशाला के इस सरस्वती मंदिर का महत्व कुछ और ही है
Bhojshala: कहा जाता है कि चक्रवर्ती सम्राट राजा भोज ने जिस भोजशाला का निर्माण करवाया था, उसी में मां सरस्वती ने उन्हें साक्षात दर्शन दिये थे। इसलिए स्वयं राजा भोज ने ही मां सरस्वती की प्रतिमा वहां प्रतिष्ठित की थी। तभी से भोजशाला मां सरस्वती के प्राकट्य स्थल के रूप में पूजनीय है।
भोजशाला का वैभव
परमार राजा भोज ने 1034 में ज्ञान साधना हेतु विद्यादायी देवी मां वाग्देवी की आराधना स्थली के रूप में धार नामक नगर में भोजशाला का निर्माण करवाया था। यहां एक आवासीय संस्कृत विश्वविद्यालय भी बनवाया। भोजशाला परिसर में एक विशाल यज्ञकुंड प्रतिष्ठित करवाया जहां 1035 में वसंत पंचमी के दिन मां वाग्देवी सरस्वती की अप्रतिम सौंदर्य प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हुई।
ऐतिहासिक साक्ष्य यह प्रमाणित करते हैं कि भोजशाला स्थित संस्कृत विश्वविद्यालय में बाणभट्ट, कालिदास, धनपाल, भास्कर भट्ट, भवभूति, माघ जैसे ख्यातिलब्ध विद्वान अध्ययन व अध्यापन कार्य करते थे।
भोजशाला नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों की ही भांति शिक्षा का बड़ा केंद्र था। भोजशाला स्थित भवन के शिखर तथा दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई थीं। अपनी स्थापना से लेकर 271 वर्षों तक भोजशाला ज्ञान के केंद्र के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त करता रहा। स्वयं राजा भोज ने 72 कलाओं तथा 36 प्रकार के आयुध विज्ञान की प्राप्ति की थी। दुःख है कि वर्तमान में भोजशाला खंडहर में बदल चुकी है किन्तु इसके ढांचे की बनावट और कलाकृतियां इसके हिन्दू मंदिर होने के प्रमाण देती है।
भोजशाला पर इस्लामी आक्रमण
1269 में अरब मूल के कमाल मौलाना धार में आये और यहीं बस गये। 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने परमार वंश के अभेद्य किले मालवा पर आक्रमण किया और भोजशाला सहित अन्य हिन्दू धार्मिक स्थलों को नष्ट करना प्रारंभ किया। इस संघर्ष में भोजशाला के 1400 से अधिक प्रकांड विद्वानों ने अपने प्राणों की आहुति दी। धार के तत्कालीन राजा महलक देव और गोगा देव भी वीरगति को प्राप्त हुये।
1514 में मेहमूद शाह खिलजी द्वितीय के मालवा क्षेत्र पर आक्रमण से भोजशाला को मस्जिद में परिवर्तित करने का प्रयास किया गया। खिलजी ने यहीं कमाल मौलाना की मृत्यु के बाद उनकी याद में भोजशाला के बाहर एक मकबरा बनवाया जबकि मौलाना की मृत्यु अहमदाबाद में हुई थी। मुगल काल में भी हिन्दुओं ने अपने पवित्र स्थल को पाने के लिये लगातार संघर्ष किया जिससे क्रुद्ध होकर मुगल आक्रमणकारियों ने मां वाग्देवी की प्रतिमा खंडित कर जमीन में गाड़ दी।
अंग्रेजी शासनकाल से अब तक का संघर्ष
1875 में मेजर किनकैड ने भोजशाला में खुदाई करवाई और अंग्रेज अधिकारी खंडित प्रतिमा को लंदन ले गये जो आज भी ब्रिटिश म्यूजियम ग्रेट रसल स्ट्रीट लंदन में रखी हुई है। 1936 में मुस्लिम समुदाय ने तत्कालीन दीवान नाडकर से भोजशाला में नमाज के लिये जगह मांगी किन्तु हिन्दू समाज के कड़े प्रतिकार के कारण भोजशाला में नमाज नहीं हो सकी। 1942 तक हर वर्ष हिन्दू समाज ने भोजशाला में नमाज न पढ़ने देने के लिए कड़ा संघर्ष किया।
1942 में धार स्टेट के तत्कालीन राजा ने मुस्लिम समुदाय को नमाज पढ़ने के लिये पास ही मस्जिद हेतु स्थान दिया जिसे वर्तमान में रहमत मस्जिद कहा जाता है। 1952-53 में वृहद् हिन्दू समाज ने प्रत्येक वसंत पंचमी पर धार्मिक आयोजन प्रारंभ करके जनजागरण प्रारंभ किया। इसके साथ ही मां वाग्देवी की प्रतिमा को लंदन से लाने के प्रथम प्रयास का भी उद्घोष हुआ। साथ ही सरकार को इस आशय के प्रस्ताव भी सौंपे गये। हालांकि 1972 में षड्यंत्रपूर्वक मुस्लिम समुदाय द्वारा भोजशाला परिसर में ही नमाज पढ़ी गई।
भोजशाला प्रकरण में बड़ा मोड़ तब आया जब 12 मई, 1997 को तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सरकारी आदेश पारित कर भोजशाला में हिन्दुओं के प्रवेश पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया। हिंदुओं को मात्र वसंत पंचमी के दिन ही सशर्त पूजा की अनुमति दी गई जबकि मुस्लिम समुदाय को वर्षभर प्रत्येक शुक्रवार को नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई।
दिग्विजय सिंह के इस निर्णय से अपमानित वृहद् हिन्दू समाज ने भोजशाला के बाहर प्रत्येक मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ प्रारंभ किया जिसे आज भी "सत्याग्रह" के नाम से जाना जाता है। 1998 में केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया।
सन 2000 में हिन्दू जागरण मंच की स्थापना के बाद धार का वृहद् हिन्दू समाज भोजशाला को उसके वैभव को लौटाने हेतु दोगुनी शक्ति से एकजुट हुआ और 2003 में दो लाख से अधिक हिन्दुओं ने 18 फरवरी तक भोजशाला को इस्लामीकरण से मुक्त करने की चेतावनी दे दी। 18 फरवरी को पूजन के लिये एकत्रित हिंदुओं पर पुलिस ने गोली चला दी और भयानक लाठीचार्ज हुआ। 3 हिन्दू इस गोलीकांड में मारे गये और सैकड़ों हिन्दू घायल हुये।
इसके बाद हिन्दू समाज के आक्रोश को देखते हुए 08 अप्रैल, 2003 को हिंदुओं को सशर्त दर्शन और पूजा का अधिकार प्राप्त हुआ। वर्तमान में प्रत्येक मंगलवार को हिन्दू वहां हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं और प्रत्येक शुक्रवार को मुस्लिम समुदाय नमाज पढ़ता है। शेष दिन एक रुपये के शुल्क पर भोजशाला सभी के दर्शनार्थ खुला रहता है। 2013 और 2016 को वसंत पंचमी शुक्रवार को पड़ने के कारण भी यहां विवाद की स्थिति बनी और पुलिस को हवाई फायरिंग करनी पड़ी।
मां वाग्देवी की प्रतिमा लाने का प्रयास
भोजशाला में मां वाग्देवी की प्रतिमा जिसे अंग्रेज लंदन लेकर चले गये थे, को वापस भारत लाकर प्राण-प्रतिष्ठा के साथ भोजशाला में स्थापित करवाने के संकल्प के साथ हिन्दुओं ने कई बार शासन-प्रशासन को ज्ञापन सौंपा है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत अनेक नेताओं को ज्ञापन सौंपे गये हैं। 2019 के आम चुनाव से पूर्व चुनाव प्रचार करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झाबुआ-धार आये थे तो उन्हें भी ज्ञापन प्रेषित किया गया था। 29 अक्तूबर, 2022 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मां वाग्देवी की प्रतिमा लंदन से लाने की मांग दोहराई है।
भोजशाला प्रकरण न्यायालय की शरण में
वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन व विष्णु जैन के माध्यम से हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस नामक संस्था की ओर से याचिका लगाई गई है। याचिका द्वारा मांग की गई है कि भोजशाला मंदिर पर हिन्दू समाज का आधिपत्य हो, अवैध रूप से हो रही नमाज बंद हो, मां वाग्देवी की प्रतिमा को लंदन से लाया जाये, भोजशाला परिसर की फोटो-वीडियोग्राफी हो तथा हिन्दू समाज को वर्षभर पूजा-अर्चना का अधिकार मिले।
इंदौर उच्च न्यायालय में यह प्रकरण चल रहा है जिसकी आगामी सुनवाई फरवरी माह में होनी है। लेकिन इन सब कानूनी दांव पेंच से अलग विद्या की देवी मां सरस्वती उस दिन की प्रतीक्षा कर रही हैं जब भोजशाला अपने मूल स्वरूप में लौटे तथा यहां ज्ञान, विज्ञान तथा साधना का वसंतोत्सव लौट आये।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)