द्रोणनगरी में भगवान शिव के 5 पौराणिक मंदिर, एक गुफा में क्यों टपक रही जल की धारा और कहां रूकी थी शिव बारात
सावन में कीजिए देहरादून के प्राचीन शिव मंदिरों के दर्शन
देहरादून, 25 जुलाई। आज सावन का दूसरा सोमवार है। हर तरफ शिवभक्तों का तांता लगा हुआ है। सभी जगह भोले के जयकारे लग रहे हैं। सावन मास भगवान शिव का सबसे प्रिय मास माना जाता है। ऐसे में सोमवार को शिव मंदिर में शिवभक्त जाकर दर्शन करना नहीं भूलते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं द्रोणनगरी के 5 प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में और उनका पौराणिक महत्व-
टपकेश्वर महादेव: महाभारत काल से जुड़ा है इतिहास
देवभूमि में स्थित भगवान शिव के प्राचीन मंदिर में से टपकेश्वर मंदिर प्रमुख है। टोंस नदी के तट पर स्थित टपकेश्वर मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। टपकेश्वर महादेव मंदिर की पौराणिक मान्यता के अनुसार आदिकाल में भोले शंकर ने यहां देवेश्वर के रूप में दर्शन दिए थे। इस मंदिर की शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं। इसका मुख्य गर्भगृह एक गुफा के अंदर है। इस गुफा में शिवलिंग पर पानी की बूंदे लगातार गिरती रहती हैं। इसी कारण शिवजी के इस मंदिर का नाम टपकेश्वर पड़ा। पौराणिक कथा के अनुसार. यह गुफा द्रोणाचार्य ;महाभारत के समय कौरव और पांडवों के गुरु का निवास स्थान माना जाता है। इस गुफा में उनके बेटे अश्वत्थामा पैदा हुए थे। बेटे के जन्म के बाद उनकी मां दूध नहीं पिला पा रही थी। उन्होंने भोलेनाथ से प्रार्थना की जिसके बाद भगवान शिव ने गुफा की छत पर गऊ थन बना दिए और दूध की धारा शिवलिंग पर बहने लगी। जिसकी वजह से प्रभु शिव का नाम दूधेश्वर पड़ा। कलयुग के समय में इस धारा ने पानी का रूप ले लिया। इस कारण इस मंदिर को टपकेश्वर कहा जाता है। टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर गढ़ी कैंट पर स्थित है।
प्रकाशेश्वर महादेव -यहां नहीं चढ़ता दान
देहरादून -मसूरी रोड पर स्थित प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर का भी देहरादून आने वाले पर्यटक और श्रद्धालु जरुर दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इस मंदिर में किसी भी तरह का दान स्वीकार नहीं किया जाता है। मंदिर परिसर में हर समय रसोई में मिलने वाला प्रसाद और चाय भी खास है जो कि निशुल्क मिलती है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग दुर्लभ पत्थरों और स्फटिक के बने हुए हैं। स्फटिक एक प्रकार का बर्फ का पत्थर है जो लाखों वर्ष बर्फ में दबे होने से बनता है। यह दिखने पारदर्शी और कठोर होता है। प्रकाशेश्वर शिव मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए जाना जाता है। मंदिर के ऊपर लगभग 150 त्रिशूल बने हुए हैं। हालांकि मंदिर को रोजाना फूलों से सजाया जाता है। लेकिन महाशिवरात्रि में यहां विशेष पूजाएं आयोजित की जाती हैं।
भूतनाथ मंदिर -यहां रूकी थी शिव की बारात
ऋषिकेश के स्वर्गाश्रम क्षेत्र में जंगलों के बीच स्थित भगवान शिव का प्राचीन भूतनाथ मंदिर ;है। पौराणकि मान्यता है कि जब भगवान शिव माता सती से विवाह करने बारात लेकर निकले थे तो वह अपनी बारात में शामिल सभी देवताओं और भूत.प्रेतों के साथ इसी मणिकूट पर्वत पर रुके थे। 1952 में स्वामी कैलाशानंद मिशन ट्रस्ट ने इसी स्थान पर भूतनाथ मंदिर का निर्माण कराया। भूतनाथ मंदिर 7 मंजिला है और यह तीन तरफ से राजा जी नेशनल पार्क ;से घिरा हुआ है। मंदिर के हर एक मंजिल में नंदी हनुमान और भगवान शिव से जुड़े देवी.देवताओं को दर्शाया गया है सातवीं मंजिल पर चित्रों के माध्यम से भगवान शिव की भूतों की बारात को भी दर्शाया गया है।
महासू देवता मंदिर- न्याय के देवता महाशिव के अवतार
महासू देवता मंदिर में महासू देवता की पूजा की जाती हैं। जो कि शिवशंकर भगवान के अवतार माने जाते हैं। मिश्रित शैली की स्थापत्य कला को संजोए यह मंदिर बहुत प्राचीन व प्रसिद्ध हैं। महासू देवता एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है और स्थानीय भाषा में महासू शब्द महाशिव का अपभ्रंश है। महासू देवता को न्याय के देवता और मन्दिर को न्यायालय के रूप में माना जाता है। यह बात आज भी रहस्य है। मंदिर में हमेशा एक ज्योति जलती रहती है जो दशकों से जल रही है। मंदिर के गर्भ गृह में पानी की एक धारा भी निकलती है, लेकिन वह कहां जाती है कहां से निकलती है यह अज्ञात है। यह मंदिर 9वीं शताब्दी में बनाया गया था। वर्तमान में यह मंदिर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ;एएसआई के संरक्षण में है। मान्यता भी है कि महासू ने किसी शर्त पर हनोल का यह मंदिर जीता था। यह मंदिर देहरादून से 190 किमी और मसूरी से 156 किमी दूर है। यह मंदिर चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित है।
पृथ्वीनाथ मंदिर- बेल के पेड़ में आते हैं सालभर फल
द्रोणनगरी के बीचोंबीच सहारनपुर चौक के पास पृथ्वीनाथ मंदिर है। मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। मान्यता है कि गुरु द्रोणाचार्य ;ने टपकेश्वर मंदिर के साथ.साथ यहां भी तपस्या की थी। इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग भी है। मंदिर के संचालकों ने बताया कि पृथ्वीनाथ मंदिर का उल्लेख महाभारत के केदारखंड भाग में है। मंदिर परिसर में करीब 200 साल पुराना एक बेल का पेड़ है जिसमें सालभर फल आते हैं। इसके अलावा एक पुराना पीपल का वृक्ष भी इस मंदिर की शोभा बढ़ाता है। साल 2002.03 में यहां खुदाई हुई थी जिसमें एक विशाल हवन कुंड और एक चिमटा मिला था जिसे लोग महाभारत काल से जुड़ा मानते हैं। शिवभक्तों का कहना है कि यहां जो भी मान्यता मांगी जाती है, वह पूरी होती है।