हरीश रावत को छोड़कर कोई भी पूर्व मुख्यमंत्री नहीं दिख रहा चुनावी मैदान में, जानिए कैसे
खंडूडी, निशंक, बहुगुणा, त्रिवेंद्र, तीरथ नहीं लड़ रहे चुनाव
देहरादून, 25 जनवरी। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के लिए सभी सियासी दलों ने अपनी पूरी ताकत झौंक दी है। 14 फरवरी को उत्तराखंड में 70 सीटों के लिए मतदान होना है, 10 मार्च को उत्तराखंड में 5वीं सरकार का गठन होगा। इस बार का चुनाव कई मायने में खास होने जा रहा है। इस बार के चुनाव में जो सबसे खास है, वह है एक मात्र पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का चुनाव मैदान में होना। हरीश रावत कांग्रेस के चुनाव अभियान की कमान संभालने के साथ ही रामनगर सीट से चुनावी मैदान में हैं। लेकिन भाजपा के अब तक के पूर्व मुख्यमंत्री में से कोई भी चुनाव मैदान में नजर नहीं आ रहे हैं। भाजपा की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा, त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत चुनाव में सिर्फ प्रचार-प्रसार और दूसरी जिम्मेदारियों को संभालते हुए नजर आएंगे। पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूडी पहले ही एक्टिव राजनीति से बाहर हैं।
22 साल में 10 मुख्यमंत्री के चेहरे मिल चुके
उत्तराखंड में 22 साल में 10 मुख्यमंत्री के चेहरे मिल चुके हैं। सबसे पहले नित्यानंद स्वामी, भगत सिंह कोश्यारी को भाजपा सरकार चलाने का मौका मिला। नित्यांनद स्वामी का निधन हो चुका है और भगत सिंह कोश्यारी महाराष्ट्र के राज्यपाल की भूमिका में है। इसके बाद 2002 से 2007 तक कांग्रेस की निर्वाचित सरकार में दिवंंगत एनडी तिवारी को 5 साल सरकार चलाने का मौका मिला। 2007 से 2012 में भाजपा की सरकार में बीसी खंडूडी और डॉ रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री रहे। 2012 से 2017 तक कांग्रेस की सरकार में विजय बहुगुणा और हरीश रावत मुख्यमंत्री रहे। विजय बहुगुणा अब भाजपा में हैं। इसके बाद 2017 से 2022 के बीच त्रिवेंद्र सिंह, तीरथ सिंह को भी मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली। लेकिन इस चुनाव में हरीश रावत को छोड़कर कोई भी चुनाव मैदान में नहीं हैं। डॉ रमेश पोखरियाल निशंक भाजपा की घोषणा पत्र तैयार कर रहे टीम को लीड कर रहे हैं, साथ ही वे हरिद्वार से सांसद भी हैं। इसी तरह तीरथ सिंह रावत गढ़वाल सीट से सांसद हैं। विजय बहुगुणा भाजपा की कोर ग्रुप की टीम में है, उनके बेटे सौरभ बहुगुणा सितारगंज से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।
चुनाव से ठीक पहले त्रिवेंद्र हटे
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चुनाव से ठीक पहले मैदान छोड़ दिया। वे डोईवाला से विधायक हैं। लेकिन चुनाव से पहले ही उन्होंने चुनाव न लड़ने की इच्छा जता दी है। माना जा रहा है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत भाजपा में कार्यकारी अध्यक्ष की भूमिका भी निभा सकते हैं। हालांकि त्रिवेंद्र रावत के चुनाव से हटने के पीछे की वजह डोईवाला सीट पर उनकी सर्वे रिपोर्ट में स्थिति बेहतर न होनी मानी जा रही है। ऐसे में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पहले ही विधानसभा चुनाव से किनारा कर दिया है। इस तरह सिर्फ कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ही चुनाव मैदान में नजर आ रहे हैं। हालांकि हरीश रावत के लिए ये चुनाव करो या मरो की स्थिति में है। जब वे चुनाव अभियान को लीड करने के साथ ही सभी 70 सीटों पर चुनाव जीताने की भी जिम्मेदारी हरीश रावत के कंधे पर है। पहले ये माना जा रहा है कि हरीश रावत चुनाव अभियान को लीड कर रहे हैं, ऐसे में चुनाव लड़वाऐंगे लेकिन टिकट बंटवारे से पहले ही उनके रामनगर से दावेदारी की बात सामने आने लगी। 2017 में हरीश रावत दो-दो सीटों से चुनाव हार गए थे।