यूपी के दंगल में मेजा से भाजपा की जमीनी हकीकत की एक झलक
उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा को टिकट बंटवारा पड़ सकता है महंगा, पार्टी का जमीनी नेताओं को नजरअंदाज पड़ सकता है भारी
इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा अपनी पूरी ताकत झोंक रही है और किसी भी कीमत पर इस चुनाव के जरिए वह यूपी में अपना वनवास खत्म करने की कोशिश में जुटी है। इसके लिए पार्टी ने ना सिर्फ उन तमाम दूसरे दलों के नेताओं को अपनी पार्टी में जगह दे रही है जो कभी भाजपा के धुर विरोधी थे बल्कि उन लोगों को भी टिकट दिया जिनकी पृष्ठभूमि साफ नहीं है। टिकटों के बंटवारे को लेकर पार्टी के भीतर काफी हंगामा और विरोध भी हुआ जिसे किसी तरह से पार्टी दबाने में कुछ हद तक कामयाब हुई है। लेकिन जिस तरह से पार्टी ने तमाम पहलुओं को दरकिनार करते हुए कुछ ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया है जिनका जमीनी स्तर पर विरोध हो सकता है, इन नेताओं की स्थानीय लोगों में छवि भी कुछ खास नहीं है।
मेजा विधानसभा सीट- हत्या आरोपी पति जेल में, पत्नी को मिला टिकट
बात करते है इलाहाबाद के मेजा विधानसभा क्षेत्र की, यहां के स्थानीय निवासी अमित सिंह ने मेजा विधानसभा सीट पर राजनीतिक उठापटक के बारे में कई जानकारी साझा की। भाजपा ने नीलम करवरिया को टिकट दिया है जोकि मूलरूप से यहां की ना तो निवासी हैं और ना ही इनका इस क्षेत्र से कोई लेना-देना है, हालांकि कुछ महीने पहले इन्होंने यहां एक अस्थायी निवास बनाया है, लेकिन बावजूद इसके पार्टी ने इन्हें टिकट सिर्फ इनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि को देखते हुए दिया है। नीलम करवरिया के पति उदयभान करवरिया पूर्व में भाजपा के विधायक रह चुके हैं, लेकिन 2012 का विधानसभा चुनाव और 2014 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद उनकी मुश्किल तब और बढ़ गई जब उन्हें पूर्व सपा विधायक जवाहर लाल पंडित की हत्या के आरोप में जेल जाना पड़ा।
उदयभान पर विधायक की हत्या का आरोप
उदयभान करवरिया पर फूलपुर विधानसभा सीट से सपा विधायक जवाहर लाल पंडित की हत्या का आरोप हैं, इसी आरोप में वह जेल की सलाखों के पीछे हैं। लेकिन जिस तरह से भाजपा ने मेजा रोड के स्थानीय नेताओं की अनदेखी करके नीलम करवरिया को टिकट दिया उससे स्थानीय भाजपा नेताओं में असंतोष है और यह पार्टी के लिए मुश्किल का सबब भी बन सकती है।
सपा की ओर से रेवती रमण की राजनीतिक जुगलबंदी
वहीं मेजा पर दूसरे दलों के उम्मीदवारों पर नजर डालें तो सपा ने यहां से रामसेवक पटेल को टिकट दिया है जोकि सपा के राज्यसभा सांसद रेवती रमण के करीबी माने जाते हैं। मेजा रोड विधानसभा सीट पर पिछड़ी जाति और पटेल समुदाय का दबदबा है और इसी वोट बैंक को अपनी ओर करने के लिए सपा ने रामसेवक पटेल को मैदान में उतारा है। अंदरखाने की माने तो रेवती रमण ने अपने रामसेवक पटेल को टिकट दिलाने में रेवती रमण ने अहम भूमिका निभाई और अपने प्रभाव का भी इस्तेमाल किया।
एक तीर से दो निशाना साधने में जुटे रेवती रमण
यहां गौर करने वाली बात है कि मेजारोड विधानसभा सीट और करछना विधानसभा सीट एक दूसरे के अगल-बगल में हैं और पिछले दो विधानसभा चुनाव में ही इन दोनों को अलग किया गया है, इससे पहले दोनों ही सीटें एक ही विधानसभा थी। ऐसे में रेवती रमण इन दोनों ही सीटों पर अपना दबदबा कायम रखना चाहते थे, लिहाज करछना की सीट से उन्होंने अपने बेटे उज्जवल रमण को मैदान में उतरवाया तो मेजारोड की सीट से उन्होंने अपने करीबी रामसेवक पटेल को मैदान में उतारवाया है। गौर करने वाली बात है कि 2012 के विधानसभा चुनाव में उज्जवल रमण बसपा के दीपक पटेल से 404 वोटों से हार गए थे। ऐसे में उज्जवल रमण पर एक बार फिर से यहां से हार का खतरा मंडरा रहा था लिहाजा इस संकट से पार पाने के लिए रेवती रमण ने रामसेवक पटेल को मैदान में उतारा है ताकि वह पटेल वोटों को साध सके।
बसपा की औपचारिकता
वहीं समाजवादी पार्टी के कांग्रेस से गठबंधन के चलते यहां से कांग्रेस उम्मीदवार सर्वेश कुमार तिवारी को अपनी सीट से संतोष करना पड़ा है और अब उनके पास सपा के उम्मीदवार का समर्थन करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है। जबकि बसपा की ओर से यहां एसके मिश्रा मैदान में है। स्थानीय लोगों का कहना है कि एसके मिश्रा ने पैसों के दम पर बसपा का टिकट हासिल किया है। अब देखने वाली बात यह है कि बाहर के उम्मीदवार के दम पर भाजपा इस सीट पर कैसे जीत हासिल करती है, या फिर इस बार रेवती रमण की राजनीतिक जुगलबंदी काम आएगी।