ये है वो जगह जहां वनवास के दौरान रुके थे भगवान राम
इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में सई नदी के किनारे घुइसरनाथ धाम के नाम से विश्व प्रसिद्ध शिवालय है। यहां स्थापित शिवलिंग के बारे में शिव महापुराण में कथा भी वर्णित है और जनश्रुति है कि भगवान राम जब अयोध्या से वनवास के लिए निकले थे तब इस स्थान पर उन्होंने विश्राम किया था। शिवमहापुराण के अनुसार, घुश्मा नाम की ब्राम्हण विदुषी महिला ने शिवलिंग की वर्षो तक तपस्या कर प्रसन्न किया था। भगवान शिव शंकर ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए और घुश्मा के मर चुके पुत्र को जिंदा कर दिया था। जिस स्थान पर शिव प्रकट हुये थे वहां स्वयंभू शिवलिंग उत्पन हो गया जो घुश्मा के नाम से ही घुश्मेश्वर नाथ के नाम से जाना गया। हालांकि अब इसका नाम घुइसरनाथ धाम के नाम से प्रचलित हो गया है।
ऐसा
पड़ा
घुइसरनाथ
धाम
घुश्मेश्वर
नाथ
का
नाम
घुइसरनाथ
धाम
पड़ने
के
पीछे
भी
एक
अलग
किवदंती
यहां
प्रचलित
है।
जिसके
अनुसार
कालांतर
में
यह
शिवलिंग
पृथ्वी
में
समाहित
हो
गया
और
एक
टीले
के
रूप
में
बदल
गया।
यहां
सई
नदी
के
किनारे
तब
एक
इलापुर
(अब
कुम्भापुर)
नामक
गांव
था।
यहां
के
रहने
वाले
घुइसर
यादव
रोज
इसी
शिवलिंग
वाले
टीले
पर
एक
चमकदार
पत्थर
पर
बैठकर
गाय-भैंस
चराते
और
मूंज
खूंदते
हुए
पत्थर
को
लाठी
से
ठोंकते
हुए
समय
व्यतीत
करते।
जनश्रुति
है
कि
एक
दिन
बारिश
के
दौरान
दिव्या
रोशनी
के
साथ
भगवान
शंकर
प्रकट
हुए
और
लाठी
से
रोज
सिर
ठोकने
पर
प्रसन्न
होकर
घुइसर
को
वरदान
दिया
और
तभी
से
इसका
नाम
घुइसरनाथ
धाम
पड़
गया।
यह
भी
मान्यता
दन्त
कथा
के
अनुसार,
भगवान
राम
जब
यहां
विश्राम
के
लिए
रुके
तो
उनके
पसीने
की
बूंद
से
करील
पेड़
का
जन्म
हुआ
और
तब
इस
क्षेत्र
में
यह
पेड
बहुतायत
संख्या
में
फैलते
गए।
कहा
जाता
है
कि
तुलसीदास
के
रामचरितमानस
में
यहां
पाए
जाने
वाले
अनोखे
पेड़
करील
का
वर्णन
है।
इस
अलौकिक
धाम
के
बारे
में
लोगों
का
विश्वास
है
कि
बाबा
घुइसरनाथ
सबकी
मुराद
पूरी
करते
हैं
और
इनके
धाम
से
कोई
भी
खाली
हाथ
नहीं
जाता
है।
घुइसरनाथनाथ
कैसे
पहुंचे
प्रतापगढ़
के
लालगंज
तहसील
में
घुइसरनाथनाथ
धाम
पड़ता
है।
यह
लालगंज
चौराहे
से
9
किलोमीटर
की
दूरी
पर
स्थित
है।
जैसा
कि
पुराणों
में
दर्ज
है
और
जनश्रुति
है
कि
सई
नदी
पहले
बाबा
घुइसरनाथ
धाम
को
स्पर्श
करते
हुए
यानी
उनके
चरणों
के
पास
से
गुजरती
थी
और
लोग
सई
नदी
में
स्नान
के
बाद
बाबा
के
दर्शन
किया
करते
थे।
प्रत्येक
वर्ष
सावन
में
यहां
पूरे
उत्तर
प्रदेश
से
लोगों
का
कावड़
में
जल
लेकर
आने
व
बाबा
को
स्नान
कराने
का
क्रम
चलता
है
और
लाखों
श्रद्धालुओं
को
यह
दिव्य
स्थल
अपनी
ओर
आकर्षित
करता
हैं।