लोकसभा उपचुनाव: आजमगढ़ में योगी व दो पूर्व मुख्यमंत्रियों की साख दांव पर, जानिए कांग्रेस ने क्यों बनाई दूरी
लखनऊ, 08 जून: उत्तर प्रदेश में इस समय लोकसभा की 2 सीटों रामपुर और आजमगढ़ में उपचुनाव होना है। दोनों सीटों में से आजमगढ़ में इस बार सियासी संग्राम होना है। बीएसपी पहली बार किसी उपचुनाव में मैदान में है। बीएसपी के मैदान में आने के बाद अब यहां का मुकाबला काफी रोचक हो गया है। आजमगढ़ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ही दो पूर्व मुख्यमंत्रियों मायावती और अखिलेश यादव की किस्मत भी दाव पर होगी। बीएसपी के लिए यह चुनाव एक तरह से लिटमस टेस्ट साबित होने वाला है। हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस के लिए खास कुछ बचा नहीं था इसीलिए कांग्रेस ने रामपुर और आजमगढ़ में दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं।
पूर्व सीएम मायावती ने खेला है मुस्लिम कार्ड
बीएसपी की मुखिया मायावती पहली बार किसी उपचुनाव में मैदान में उतरी हैं। पहले का ट्रेंड यह रहा है है की वो किसी भी विधानसभा के उपचुनाव या लोकसभा के उपचुनाव में हिस्सा नहीं लेती हैं लेकिन पहली बार मायावती ने अखिलेश को घेरने के लिए आजमगढ़ में अपना उम्मीदवार उतारा है। बीएसपी ने वहां से गुड्डू जमाली को मैदान में उतारा है। जमाली उस समय भी लोकसभा का चुनाव लड़ेथे जब 2014 में मुलायम सिंह यादव वहां से चुनाव लड़े थे। हालाकि उस समय मुलायम सिंह यादव ने जमाली को भारी अंतर से चुनाव हराया था। लेकिन इस बार आजमगढ़ की चुनावी परिस्थियां बदली हुई हैं। इन परिस्थितियों में मायावती को उम्मीद है की पार्टी बेहतर परिणाम दे सकती है।
योगी के सियासी कौशल की होगी परीक्षा
सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए भी आजमगढ़ और रामपुर का उपचुनाव काफी अहम है। खासतौर से आजमगढ़ में अखिलेश की रणनीति या विपक्ष की रणनीति के आगे खुद को साबित करने की चुनौती रहेगी। यादव बेल्ट होने की वजह से समाजवादी पार्टी की तरह बीजेपी ने भी भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को टिकट दिया है। 2019 के चुनाव में भी बीजेपी ने अखिलेश यादव के सामने निरहुआ को उतारा था लेकिन वो चूक हार गए थे। बीजेपी ने एकबार फिर उन्हीं पर दांव लगाया है। योगी आदित्यनाथ के3 सामने चुनौती दोनो सीटों पर बीजेपी को जिताने की होगी। योगी की इमेज के दम पर यूपी में लगातार दूसरी बार बीजेपी की सरकार बनी है। इस वजह से उम्मीद जताई जा रही है कि उनकी इमेज कर मोदी सरकार के कामकाज का फायदा मिलेगा।
अखिलेश के सामने गढ़ बचाने की चुनौती
उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ में होने वाले उपचुनाव में सबसे अधिक कड़ा इम्तिहान अखिलेश यादव का ही है। चूंकि आजमगढ़ हमेशा से समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है। इसलिए अखिलेश यादव के सामने समाजवादी पार्टी की साख को बचाए रखने की चुनौती है। अखिलेश ने इस सीट पर अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को चुनाव में उतारा है। यानी एक बार फिर आजमगढ़ में सैफई परिवार के सदस्य की प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी। 2019 के चुनाव में धर्मेंद्र यादव बदायूं से चुनाव लड़े थे उस समय भी चुनाव हार गए थे। अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि जो अपने गढ़ में नहीं जीत पाया वो आजमगढ़ में कैसे जीतेगा। हालाकि अखिलेश ने आजमगढ़ उपचुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
मायावती का दलित- मुस्लिम कार्ड V/S अखिलेश का यादव-मुस्लिम कार्ड
उपचुनाव में पहली बार अपनी किस्मत आजमा रही बीएसपी ने अखिलेश यादव को घेरने की पूरी रणनीति तैयार कर ली है। आजमगढ़ में इस बार सही मायने में मुकाबला सपा और बसपा के बीच ही होना है। इस उपचुनाव में मायावती के मुस्लिम कार्ड और अखिलेश के यादव कार्ड का इम्तिहान होगा। मायावती ने भी लिटमस टेस्ट के तौर पर एक कार्ड खेला है और यदि ये दांव चल गया तो आने वाले आम चुनाव में वो इस समीकरण के सहारे आगे बढ़ सकती हैं। वही ंदूसरी ओर अखिलेश के लिए यह परीक्षा की घड़ी है क्योंकि अब तक आजमगढ़ में हुए चुनाव में 12 बार यादव समाज का उम्मीदवार ही जीता है। इसलिए यदि अखिलेश का यादव मुस्लिम कार्ड चल गया तो वो इसी समीकरण को लेकर आगे बढ़ सकते हैं।
अखिलेश के यादव वोट बैंक में सेंध लगाएगी बीजेपी
आजमगढ़ के उपचुनाव में मायावती के मुस्लिम कार्ड और अखिलेश के यादव कार्ड के बीच बीजेपी ने भी अपना दांव चल दिया है। हालांकि आजमगढ़ बीजेपी के लिहाज से कभी सही नही रहा लेकिन बीजेपी के रणनीतिकारों की कोशिश है कि अखिलेश के यादव वोट बैंक और गैर यादव हिंदू वोटरों के सहारे चुनावी लड़ाई को रोचक बनाया जाए। बीजेपी के पास आजमगढ़ में खोने के लिए कुछ नहीं है लिहाजा अगर वह मायावती और अखिलेश की लड़ाई के बीच जीत जाती है तो उसके लिए यह एक अभिनव प्रयोग साबित हो सकता है।