यूपी: हाईकोर्ट ने कहा अस्पताल में कोई VIP नहीं सभी बराबर, सरकार से मांगा जवाब
इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा है कि अस्पतालों में वीआईपी कल्चर खत्म करने के लिए सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं। कोर्ट ने यहां साफ किया है कि अस्पताल में आने वाला हर मरीज बराबर होता है। अस्पताल प्रशासन द्वारा एक वीआईपी और एक आदमी के बीच कोई अंतर नहीं किया जाना चाहिए। दरअसल 6 महीने पहले ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अस्पतालों में वीआईपी कल्चर खत्म करने के तहत बड़ा आदेश सुनाया था और कहा था कि अस्पताल में किसी भी अधिकारी या राजनेता को उसी तरह का इलाज दिया जाए जैसा कि आम मरीजों को सुविधा में दिया जाता है, उन्हें किसी वीआईपी की तरह ट्रीट ना किया जाए।
आदेश लागू होने पर बदल जाएगी व्यवस्था
इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 6 महीने पहले अस्पतालों में वीआईपी कल्चर को खत्म करने का आदेश दिया गया था। अगर कोर्ट का आदेश पूर्णताः लागू होता है तो सरकारी अस्पताल की दिशा और दशा सब कुछ बदल जाएगी। क्योंकि हाईकोर्ट ने यह साफ किया था कि सरकारी कर्मचारियों का इलाज सरकारी अस्पतालों में ही होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को सिर्फ उस दशा में प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने की अनुमति दी जाएगी, जब कोई ऐसी बीमारी है जिसका इलाज सरकारी अस्पताल में ना हो।
आदेश
लागू
होने
से
पहले
ही
लगी
रोक
हालांकि
यह
मामला
क्रियान्वयन
होने
से
पहले
ही
अधर
में
लटक
गया।
इलाहाबाद
मेडिकल
कॉलेज
के
प्राचार्य
डॉक्टर
एसपी
सिंह
की
एक
याचिका
पर
सुनवाई
करते
हुए
सुप्रीम
कोर्ट
ने
इस
मामले
पर
रोक
लाग
दी।
रोक
लगाने
के
कारण
यह
पूरा
आदेश
क्रियान्वित
नहीं
किया
जा
सका।
जबकि
सुप्रीम
कोर्ट
ने
सिर्फ
प्राचार्य
डॉक्टर
एसपी
सिंह
को
ही
राहत
दी
थी
और
उनके
विरुद्ध
आपराधिक
कार्यवाही
शुरू
करने
पर
रोक
लगाई
थी।
ये
है
पुराना
मामला
सरकारी
अस्पतालों
में
आमजनों
की
सुविधा
बढ़ाने
व
वीआईपी
कल्चर
खत्म
करने
के
साथ
सरकारी
कर्मचारियों
का
इलाज
सरकारी
अस्पताल
में
ही
कराने
को
लेकर
स्नेहलता
सिंह
व
कई
अन्य
ने
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
में
याचिका
दाखिल
की
थी।
जिस
पर
मुख्य
न्यायमूर्ति
डीवी
भोसले
व
न्यायमूर्ति
यशवंत
वर्मा
की
पीठ
ने
सुनवाई
की
थी।
इस
मामले
में
9
मार्च
2018
को
हाईकोर्ट
की
डबल
बेंच
ने
आदेश
दिया
था
और
कहा
था
कि
चिकित्सा
व्यवस्था
सुधारने
और
मरीजों
की
सहूलियत
का
मानक
सरकार
तय
करें।
हाईकोर्ट
ने
अपने
आदेश
में
साफ
कर
दिया
था
कि
किसी
राजनेता
को
सरकारी
अस्पताल
में
सामान्य
मरीजों
की
तरह
ही
ट्रीट
किया
जाएगा
और
उन्हें
कोई
विशेष
सुविधा
नहीं
दी
जाएगी।