इलाहाबाद HC ने कहा- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं, श्रीराम के बिना भारत अधूरा
लखनऊ, 9 अक्टूबर: भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण के खिलाफ अश्लील टिप्पणी के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। जिसमें आरोपी की जमानत याचिका तो मंजूर कर ली गई, लेकिन कोर्ट ने उसकी दलीलों पर तल्ख टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने साफ किया कि कोई भी शख्स धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचा सकता है। जिस देश में हम रह रहे हैं उस देश के महापुरुषों और संस्कृति का सम्मान करना जरूरी है। अगर कोई चाहे तो वो पूरी तरह से नास्तिक रह सकता है, लेकिन उसे भगवान का अपमान करने का हक नहीं है।
दरअसल एक शख्स ने 28 नवंबर 2019 को फेसबुक पर भगवान राम और श्रीकृष्ण के खिलाफ अश्लील टिप्पणी की थी। कोर्ट में उसने तर्क दिया कि संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी है। ऐसे में उसकी टिप्पणी को अपराध नहीं माना जा सकता है। इस पर सरकारी वकील ने बताया कि आरोपी अहमदाबाद अपने मामा के यहां गया था। वहां पर उसने मामा के लड़के के फोन में अपना सिम डाला और टिप्पणी की। बाद में जब FIR दर्ज हुई, तो उसने अपना सिम तोड़कर फेंक दिया। आरोपी का कहना है कि जिस आईडी से पोस्ट हुआ, वो फर्जी है।
इस पर खंडपीठ ने कहा कि आरोपी पिछले 10 महीने से जेल में बंद है और अभी जल्द ट्रायल पूरा होने की संभावना नहीं है। ऐसे में उसे सशर्त जमानत दी जा सकती है, लेकिन उसकी अभिव्यक्ति की आजादी वाली दलील गलत है। अभिव्यक्ति की आजादी की स्वतंत्रता असीमित नहीं है। कोई भी शख्स दूसरे की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचा सकता है। भगवान राम के बिना भारत अधूरा है। जिस देश में हम रह रहे, वहां के महापुरुषों और संस्कृति का सम्मान करना जरूरी है।
खंडपीट ने आगे कहा कि हमारा संविधान बहुत ही उदार है। जहां धर्म को ना मानने वाले नास्तिक हो सकते हैं, लेकिन किसी दूसरी की आस्था को ठेस पहुंचाने का अधिकार किसी के पास नहीं है। हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम् की रही है। हम 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत' की कामना करने वाले लोग हैं। कोर्ट ने साफ किया कि जमानत तो मंजूर कर ली गई है, लेकिन आरोपी दोबारा ऐसा अपराध ना करे।