अखिलेश के वर्चस्व के आगे खत्म हुई मुलायम-शिवपाल की सपा
सपा के कोहराम के बीच अखिलेश यादव पार्टी के नए मुखिया के तौर पर उभरे हैं, निष्कासन के रद्द होने के बाद पार्टी की पूरी ताकत अखिलेश के हाथों में
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के भीतर पिछले 24 घंटे में तमाम बदलते सियासी समीकरण के बीच अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव की सपा में फिर से वापसी हो गई है। सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने इस बात का ऐलान करते हुए कहा कि नेताजी के निर्देश के बाद रामगोपाल यादव और अखिलेश यादव का निष्कासन तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाता है। यही नहीं उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए पूरा परिवार एकजुट है और हम एक बार फिर से 2017 में सरकार बनाएंगे। टिकटों के बंटवारे पर विवाद पर उन्होंने कहा कि हम एक बार फिर से बैठकर इस बात पर बात करेंगे और सबकुछ फिर से ठीक हो जाएगा।
समाजवादी पार्टी अखिलेश के हाथो में
शुक्रवार शाम को अखिलेश यादव व रामगोपाल यादव को मुलायम सिंह यादव ने यह कहते हुए निष्कासित किया था का इन लोगों ने अनुशासन तोड़ा है, वह नए मुख्यमंत्री का ऐलान करेंगे। लेकिन जिस तरह से आज अखिलेश यादव ने अपने आवास पर शक्ति प्रदर्शन किया उसने ना सिर्फ मुलायम सिंह बल्कि शिवपाल यादव के तमाम दावों की हवा निकाल दी। अखिलेश की बैठक में 217 विधायक जमा हुए वहीं मुलायम सिंह की बैठक में मुश्किल से 15 विधायक जमा हो सके। अपने साथ विधायकों का समर्थन देखकर शिवपाल यादव को अपनी जमीनी ताकत का अंदाजा हो गया था, यही नहीं मुलायम सिंह के सामने भी यह बात सामने आ चुकी थी कि अब सपा उनके हाथ में नहीं बल्कि उनके युवा बेटे अखिलेश यादव के हाथ में जा चुकी है।
शिवपाल
और
मुलायम
ने
डाले
हथियार
यहां
यह
बात
भी
समझने
वाली
बात
है
कि
अखिलेश
यादव
व
रामगोपाल
यादव
को
पार्टी
से
निष्कासित
किए
जाने
के
बाद
अखिलेश
यादव
ने
आज
विधायकों
की
जो
बैठक
बुलाई
थी
उसे
शिवपाल
यादव
ने
अवैध
करार
देते
हुए
कहा
था
कि
जो
भी
इस
बैठक
में
जाएगा
और
किसी
भी
तरह
के
कागज
पर
हस्ताक्षर
करेगा
उसके
खिलाफ
कार्रवाई
की
जाएगी।
लेकिन
बावजूद
इसके
200
से
अधिक
विधायक
इस
बैठक
में
पहुंचे
और
किसी
के
भी
खिलाफ
कोई
कार्रवाई
नहीं
की
गई
और
इस
बैठक
को
वैद्यता
देते
हुए
इसको
स्वीकार
किया
गया।
यही
नहीं
इस
बैठक
में
अखिलेश
की
ताकत
के
आगे
शिवपाल
और
मुलायम
को
झुकना
पड़ा
और
अखिलेश
यादव
को
मजबूरन
पार्टी
में
वापस
लिया
गया।
इसे भी पढ़े- यूपी में हार भी गए तो 2019 के लिए मोदी के मुकाबले खड़े होंगे अखिलेश
चाचा
को
भतीजे
को
बताई
उनकी
जमीनी
हकीकत
इस
पूरे
घटनाक्रम
के
बीच
अखिलेश
यादव
ने
मीडिया
से
पूरी
दूरी
बनाए
रखी
और
किसी
भी
तरह
का
बयान
ना
देकर
खुद
को
एक
परिपक्व
नेता
के
तौर
पर
लोगों
के
सामने
पेश
किया।
अखिलेश
के
बढ़ते
प्रभाव
और
जनमत
को
देखते
हुए
मुलायम
सिंह
यादव
व
शिवपाल
यादव
ने
अपने
हथियार
डालना
ही
बेहतर
विकल्प
समझा।
इन
निष्कासन
को
रद्द
किया
जाना
एक
सामान्य
सी
खबर
नहीं
है,
बल्कि
इस
फैसले
के
बाद
समाजवादी
पार्टी
का
भविष्य
आने
वाले
समय
में
पूरी
तरह
से
बदलेगा।
जिस
तरह
से
शिवपाल
और
मुलायम
सिंह
ने
कई
मौकों
पर
अखिलेश
यादव
की
अनदेखी
करते
हुए
उन्हें
दरकिना
किया,
वह
अब
फिर
से
दोहरा
पाना
मुश्किल
होगा।
खत्म
हुआ
मुलायम
और
शिवपाल
का
वर्चस्व
पिछले
दो
दिनों
के
घटनाक्रम
के
बाद
अखिलेश
यादव
सपा
के
सबसे
बड़े
नेता
के
तौर
पर
उभरे
हैं,
यही
नहीं
अब
सपा
के
भीतर
फैसले
लेने
की
पूरी
ताकत
भी
अखिलेश
यादव
के
हाथ
में
आ
गई
है।
हालांकि
मुलायम
सिंह
यादव
पार्टी
के
राष्ट्रीय
अध्यक्ष
हैं
लेकिन
अब
अखिलेश
यादव
के
फैसलों
के
खिलाफ
बोलना
या
कोई
कार्रवाई
करना
पार्टी
के
किसी
भी
नेता
के
लिए
आसान
नहीं
होगा,
फिर
वह
शिवपाल
यादव
हों
या
फिर
मुलायम
सिंह
यादव।
ऐसे
में
अब
यह
बात
साफ
हो
गई
है
कि
समाजवादी
पार्टी
पर
अपरोक्ष
रूप
से
पूरा
अधिकार
अखिलेश
यादव
का
है,
जबकि
मुलायम
सिंह
यादव
सिर्फ
नाम
के
अध्यक्ष
रह
गए
हैं।
इसे
भी
पढ़े-
अखिलेश
हुए
बागी,
मुलायम
हुए
कठोर,
समाजवादी
कुनबे
को
फायदा
या
नुकसान?
इस
पूरे
घटनाक्रम
के
बाद
यह
देखना
दिलचस्प
होगा
कि
अब
टिकट
बंटवारे
पर
नए
सिरे
से
किस
तरह
से
मंथन
होगा,
क्योंकि
शिवपाल
सिंह
यादव
और
मुलायम
सिंह
के
पास
अखिलेश
की
बात
मानने
के
अलावा
कोई
दूसरा
विकल्प
नहीं
है।
दोनों
ही
नेताओं
ने
अखिलेश
को
दरकिनार
करके
अपनी
ताकत
को
देख
लिया
है,
जिसकी
जमीनी
हकीकत
कुछ
नहीं
है,
ऐसे
में
इन
दोनों
ही
नेताओं
के
पास
अखिलेश
के
फैसलों
को
मानने
के
अलावा
कोई
दूसरा
विकल्प
शेष
नहीं
रहता
है।