अखिलेश ने जयंत को राज्यसभा भेजकर निभाया गठबंधन धर्म, जानिए डिंपल यादव के टिकट कटने की INSIDE STORY
लखनऊ, 27 मई: उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की 11 सीटों के लिए नामांकन चल रहा है। 10 जून को मतदान होना है। अभी तक कपिल सिब्बल समेत दो लोगों ने नामांकन किया है। अटकलें लगाई जा रहीं थीं कि अखिलेश यादव अपनी पत्नी डिंपल यादव को राज्यसभा भेज सकते हैं लेकिन उन्होंने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए आरएलडी के चीफ जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का फैसला किया है। राजनीतिक पंडितों की माने तो अखलेश के इस फैसले का असर दूर तलक होने की उम्मीद है।

डिंपल की जगह जयंत को अखिलेश ने क्यों दी तरजीह
अखिलेश यादव ने विधानसभा के चुनाव के दौरान ही जब आरएलडी के चीफ जयंत के साथ समझौता किया था तब ये वादा किया था कि चुनाव के बाद वो जयंत को राज्यसभा भेजेंगे। जयंत ने भी गठबंधन धर्म का पालन करते हुए विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव का समर्थन किया था। हालाकि उस समय बीजेपी की तरफ से इस गठबंधन में दरार डालने की भरपूर कोशिश हुई थी लेकिन जयंत ने बड़े सधे हुए अंदाज में उन बातों का जवाब दिया था। जयंत ने चुनाव के दौरान बार बार यह बयान दिया था की वह अखिलेश का साथ नहीं छोड़ेगे। इसका काफी असर हुआ था। जयंत से मिल रहे सहयोग को देखते हुए अखिलेश ने अब उनको राज्यसभा भेजने का एलान किया है।
मुलायम सिंह की सलाह के बाद कटा डिंपल का नाम
दरअसल, राज्यसभा चुनाव को लेकर कपिल सिब्बल और जावेद अली के नामांकन के बाद अटकलें लगाई जा रहीं थीं की अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी और पूर्व सांसद डिंपल यादव को राज्यसभा भेजेंगे। बताया जा रहा था कि अखिलेश ने जयंत के सामने सपा के सिंबल पर राज्यसभा जाने की शर्त रखी थी जिसे मानने के लिए जयंत तैयार नहीं थे। आखिरकार यह बात मुलायम तक पहुंची और उन्होंने अखिलेश को बुलाकर राजनीति का पाठ पढ़ाया और जयंत को भेजने की बात कही। जिसे अखिलेश ने स्वीकार कर लिया।
डिंपल को भेजते तो 2024 से पहले गठबंधन में पड़ जाती दरार
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला था। चुनाव के दौरान ही बीजेपी ने जयंत को साधने की कोशिश की थी लेकिन वो नहीं टूटे। अखिलेश को भी इस बात का एहसास था की यदि जयंत के साथ वादा खिलाफी हुई तो वो बीजेपी खेमे का रुख कर सकते हैं जो अखिलेश के लिए फायदेमंद नहीं होता। यदि जयंत बीजेपी के साथ नहीं भी जाते तो भी गठबंधन टूटने का खतरा बना हुआ था। इन सारी परिस्थितियों को भांपते हुए अखिलेश ने गठबंधन को बचाने के लिए पत्नी मोह त्यागकर जयंत को भेजने का निर्णय लिया।
2024 की लड़ाई के लिए सपा को जयंत की जरूरत
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिल गया था और सपा को सहयोगियों के साथ मिलाकर 125 सीटें मिलीं थीं। जयंत चौधरी के साथ की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को काफी मदद मिली थी। सपा को भी पता है की पश्चिम में उनके लिए जयंत की क्या अहमियत है। जयंत पश्चिम में जाटों के बीच काफी लोकप्रिय हैं और उनकी अपनी पकड़ भी है। बीजेपी से 2024 में मुकाबले के लिए समाजवादी पार्टी को जयंत का साथ बेहद जरीरी हैं क्योंकि मायावती के कमजोर होने से दलित समुदाय का झुकाव बीजेपी की तरफ हो रहा है। इससे बीजेपी की पकड़ मजबूत हो रही है। मायावती पर ये भी आरोप लग रहे हैं की बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए ही उन्होंने उम्मीदवारों का चयन किया था।
राजभर के के बेटे को एमएलसी का तोहफा दे सकते हैं अखिलेश
जयंत के अलावा विधानसभा चुनाव में अखिलेश के सहयोगी रहे ओम प्रकाश राजभर भी आजकल अखिलेश से नाराज चल रह हैं। पिछले दिनों राजभर ने अखिलेश को एसी कमरे से बाहर निकलकर राजनीति करने की सलाह दी थी। तब ये मान की वो अखिलेश पर राज्यसभा जन के लिए दबाव बनवाने के लिए इस तरह का बयान दे रहे हैं। लेकिन अब इस तरह की अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि अखिलेश यादव राजभर को खुश करने के लिए उनके बेटे अरविंद राजभर को MLC बनाकर विधान परिषद में भेज सकती है।
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अखिलेश के लिए जितने जरूरी जयंत उतने राजभर भी !
दरअसल चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 2 सीटों रामपुर और आजमगढ़ के चुनाव के साथ ही एमएलसी की सीटों पर भी चुनाव कराने का एलान किया है। चुनाव 23 जून को होंगे। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी को 4 सीटें मिलने का अनुमान है। लिहाजा अखिलेश के पास भी राजभर को खुश करने का मौका होगा। राजनीतिक पंडितों की माने तो 2024 के चुनाव में अखिलेश के लिए जितने महत्वपूर्ण जयंत हैं उतने ही महत्वपूर्ण राजभर भी हैं क्योंकि पूर्वांचल की जंग जीतने के लिए राजभर समुदाय को साधना भी बेहद जरूरी है।