डिप्टी CM केशव को हराने के बाद कितना बढ़ा पल्लवी पटेल का कद, अनुप्रिया को दे पाएंगी टक्कर ?
लखनऊ, 19 अप्रैल: उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान सियासी गलियारे में दो बहनों की चर्चा काफी रोचक रही थी। जी हां हम बात कर रहे हैं अपना दल (एस) की नेता और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और उनकी बहन तथा डिप्टी सीएम केशव मौर्य को हराकर यूपी की राजनीति में खलबली मचाने वाली पल्ल्वी पटेल की। पल्लवी पटेल ने अपना दल (कमेरावादी) के टिकट पर सिराथू से केशव मौर्य के खिलाफ न केवल चुनाव लड़ा बल्कि अप्रत्याशित जीत भी हासिल की। सियासत के क्षेत्र में दोनों बहनों की अदावत काफी पुरानी रही है। कई बार परिवार में पड़ी फूट को दूर करने की कोशिश भी हुई लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। अब सवाल ये है कि राजनीति में दमदार इंट्री मारने वाली पल्लवी क्या अनुप्रिया की तरह कामयाब होंगी या उनकी सफलता केवल डिप्टी सीएम को हराने तक रह जाएगी।
'जीरो' से हीरो बनकर सत्ता में आईं अनुप्रिया
अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल की 17 अक्टूबर 2009 को एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु के बाद पार्टी के लिए नए चेहरे की तलाश उनकी तीसरी बेटी अनुप्रिया पटेल के साथ समाप्त हुई। श्रद्धांजलि सभा में अनुप्रिया पटेल के भाषण ने ही उन्हें पार्टी का चेहरा बना दिया था। अनुप्रिया की शादी को अभी एक महीना भी नहीं हुआ था कि उन्हें अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की चुनौती का सामना करना पड़ा। जिस पार्टी का लोकसभा में खाता नहीं खुला वह महज पांच साल में केंद्र की सत्ता में भागीदार बन गई। लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक, एमिटी से एमए और कानपुर विश्वविद्यालय से एमबीए, अनुप्रिया पटेल 2012 के विधानसभा चुनाव में बनारस के रोहिणी से पार्टी की अकेली विधायक बनीं। 2014 में, बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी वाराणसी लोकसभा सीट से चुने गए। इन तीन कारकों के कारण युवा, महिला और जाति भेद, वाराणसी और आसपास के जिलों में अनुप्रिया का समर्थन भाजपा के लिए एक राजनीतिक आवश्यकता बन गया।
दोनों बहनों के बीच कब संघर्ष हुआ?
बीजेपी के गठबंधन के तहत अपना दल को दो सीटें दी गईं और उसने दोनों पर कब्जा कर लिया। अनुप्रिया पटेल 33 साल की उम्र में मिर्जापुर से सांसद बनीं। वह 2016 के कैबिनेट विस्तार में सबसे कम उम्र के चेहरे के रूप में नरेंद्र मोदी टीम में शामिल हुईं। अनुप्रिया पटेल के बढ़ते कद ने परिवार के साथ-साथ विपक्ष में भी असहज स्थिति पैदा कर दी। मां और पार्टी अध्यक्ष कृष्णा पटेल ने अनुप्रिया की बड़ी बहन पल्लवी पटेल को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया।
लगातार बढ़ता जा रहा है अनुप्रिया का कद
हालांकि जानने वाले बताते हैं कि अनुप्रिया ने इसका विरोध किया और पार्टी के बंटवारे में झगड़ा खत्म हो गया। 2016 में अनुप्रिया ने अपना दल (सोनेलाल) का गठन किया। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन में मिली 11 सीटों में से 9 सीटें जीतकर अनुप्रिया का कद बढ़ गया था. सरकार में अपना दल के कोटे से एक विधायक मंत्री बना। उनके पति आशीष सिंह पटेल अप्रैल 2018 में एमएलसी बने। अपना दल ने 2019 में फिर से दो लोकसभा सीटें जीतीं, लेकिन इस बार अनुप्रिया को केंद्र में मंत्री नहीं बनाया गया। अब जबकि यूपी में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं तो एक बार फिर अनुप्रिया पटेल की सक्रियता को केंद्र और राज्य सरकार में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए दबाव की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। अनुप्रिया यह भी जानती हैं कि 2022 के लिए लड़ने के लिए भाजपा के लिए उनका समर्थन अभी भी महत्वपूर्ण है।
कुर्मी समुदाय को वोट बैंक बनाने की होड़
यूपी की राजनीति में पिछड़े और खासकर कुर्मी समुदाय के बड़े नेता रहे सोनेलाल पटेल की दूसरी बेटी पल्लवी पटेल विज्ञान की छात्रा रही हैं। इस समय वह राजनीति की प्रयोगशाला में चुनाव के समीकरणों को समझ रही हैं। बायो-टेक्नोलॉजी में पीजी पल्लवी अपनी बहन अनुप्रिया पटेल से एक साल बड़ी हैं। हाल ही में उन्होंने वेजिटेबल एंड फ्रूट फंगस में डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी की है। इसके साथ ही वह मां कृष्णा पटेल के नेतृत्व में अपनी पार्टी की राह में आ रही बाधाओं को दूर करने में भी लगी हुई हैं। पल्लवी अपना दल कामेरावादी की राष्ट्रीय कार्यवाहक हैं। पिता सोनेलाल पटेल के साथ उनका पार्टी के कार्यक्रमों में आना-जाना लगा रहता है। वह 2008 से राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गईं। 2009 में जब सोनेलाल पटेल की मृत्यु हुई, तो उनकी पत्नी कृष्णा पटेल अपना दल की अध्यक्ष बनीं और अनुप्रिया को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया।
अनुप्रिया की तरह पल्लवी को नहीं मिला एक्सपोजर ?
कृष्णा पटेल गुट के लोगों का कहना है कि पल्लवी भी संगठन में सक्रिय थीं लेकिन अनुप्रिया पटेल की तरह उनका एक्सपोजर नहीं था। 2014 में कृष्णा पटेल ने पल्लवी पटेल को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया तो अनुप्रिया ने इसका विरोध किया। 2016 में पार्टी के कब्जे और बंटवारे को लेकर विवाद चुनाव आयोग तक पहुंच गया था। पल्लवी पटेल ने अपनी मां के नेतृत्व में पार्टी के राजनीतिक प्रबंधन को आगे बढ़ाया। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी 59 सीटों पर उम्मीदवार खड़े हुए थे, लेकिन सफलता नहीं मिली।
सिराथू में केशव को हराकर पल्लवी ने बढ़ाया अपना कद
इस बीच, 2018 में, सोनेलाल पटेल के नाम पर कार्यक्रम आयोजित करने के बहाने पल्लवी ने विभिन्न राजनीतिक दलों और मतदाताओं के बीच पार्टी का आधार बढ़ाने के अपने प्रयास जारी रखे। 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन के तौर पर कांग्रेस के टिकट पर तीन उम्मीदवार खड़े हुए थे, जिसमें गोंडा से कृष्णा पटेल और फूलपुर से पल्लवी के पति पंकज निरंजन उम्मीदवार थे, लेकिन कांग्रेस के तौर पर उनका प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा। अब 2022 के विधानसभा चुनाव से से पहले उन्होंने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की थी और उसके बाद उन्हें सिराथू से टिकट दिया गया। सिराथू को डिप्टभ् सीएम केशव का गढ़ माना जाता है लेकिन वहां भी पल्लवी ने सपा के सहारे मिलकर केशव को करारी हार का स्वाद चखा दिया।