राजस्थान: बाड़मेर के छात्र ने साबित कर दिखाया UPSC में भाषा नहीं है बाधा, हिन्दी मीडियम में किया टॉप
नई दिल्ली। बाड़मेर जिले के छोटे से गांव के रहने वाले और किसान के बेटे गंगा सिंह राजपुरोहित ने एक बार फिर साबित कर दिखाया है कि यूपीएससी की परीक्षा में लैंग्वेज कोई बाधा नहीं है। जी हां, गंगा सिंह जो इस बार सिविल सेवा परीक्षा के हिंदी माध्यम से सैकेंड टॉपर है और ऑवर ऑल इनकी 33वीं रैंक हैं।
मात्र 23 साल की उम्र में आईएएस बनने वाले गंगा सिंह बताते हैं कि प्लान के अकॉर्डिंग और लिमिटेड सोर्सेज़ को ध्यान में रखकर अगर तैयारी की जाए तो आसानी के साथ यूपीएससी परीक्षा को निकाला जा सकता है।
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अपने दूसरे ही प्रयास में हिंदी माध्यम से सफल हुए गंगा सिंह ने वनइंडिया हिन्दी को बताया कि 'हिंदी माध्यम के लड़को में सिर्फ भय का महौल बनाया गया है और जबरदस्ती का भौकाल बनाया गया है कि अंग्रेजी वालों के नंबर हिंदी वालों से ज्यादा आते हैं या वे ज्यादा इंटेलिजैंट होते हैं लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं'।
गंगा सिंह ने अपनी पूरी शिक्षा सरकारी संस्थानों से ही प्राप्त की है और वे हमेशा अपने स्कूल और कॉलेज के टॉपर रहे हैं। वनइंडिया हिन्दी से बातचीत के दौरान गंगा सिंह बताते हैं कि 'जब मैं मेरे ब्लॉक या जिले में किसी नए अफसर को आते देखता था तब मैने जाना कि लोगों की कितनी आकांक्षाएं और उम्मीदें होती है एक प्रशासक से। साथ ही एक लंबी और बेहतरीन पारी खेलने के बाद जब एक अफसर विदा (तबादला) होता था तब लोगों के लिए वो पारी हमेशा के लिए यादगार बन जाती थी। यहीं से मुझे लगा कि वास्तव में अगर आपको जन सेवा करनी है तो यही सिविल सेवा ही एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म हो सकता है'।
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डॉ. कलाम हैं रोल मॉडल
डॉ. कलाम को अपना रोल मॉडल मानने वाले गंगा सिंह ने अपने आईएएस बनने की यात्रा तो जोधपुर में रहते ग्रेजुएशन के दौरान ही शुरू कर ली थी लेकिन जेएनयू में प्रवेश के बाद उनकी इस यात्रा में नई जान आयी, जहां उन्हें पढ़ने का बेहतर माहौल तो मिला ही लेकिन साथ में देश के अलग-अलग कौने से ऐसे दोस्त मिले जो उनके इरादों को और मजबूत करते गए।
Jnu नहीं होता तो कहां होता!
जेएनयू के बारे में गंगा सिंह बताते हैं कि 'मैं कभी-कभी सोचता हूं कि अगर में यहां नहीं होता तो कहां होता और मैं क्या होता। मेरी इस सफलता के लिए इस यूनिवर्सिटी ने बहुत बड़ा रोल प्ले किया है। गंगा सिंह बताते हैं कि जेएनयू वाकय में बेहद खास है क्योंकि यह यूनिवर्सिटी ना सिर्फ एक बेहतर इंसान बनाती है बल्कि आपको धरातल से जोड़े रखती हैं'।
नियमित 5-7 घंटे की पढ़ाई
अपनी यूपीएससी की तैयारी के बारे में गंगा सिंह बताते है कि 'मैं नियमित 5 से 7 घंटे पढ़ता था और वो भी लिमिटेड बुक्स और नोट्स के साथ। लेकिन मैंने जो भी पढ़ा वो अच्छा और बेहतर ढंग से पढ़ा। मैं ज्यादा किताबों में उलझा नहीं रहा और सब-कुछ एक प्लान के अकोर्डिंग किया'।
उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं
नि:संदेह गंगा सिंह राजपुरोहित उन सभी के लिए रोल मॉडल हैं जो हिंदी और भारत के रूरल बैकग्राउंड से आते हैं और जिन्हें लगता है यूपीएससी परीक्षा हमारे लिए टफ है। छोटी से उम्र में इतनी बड़ी सफ़लता काबिल-ए-तारीफ है। गंगा सिंह को वनइंडिया हिन्दी की ओर से उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं।