पंजाब दी गल: क्या AAP के पास नहीं था कोई विकल्प, मालवा क्षेत्र का क्यों है सियासत में इतना दबदबा ?
पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर सभी सियासी पार्टियां चुनावी मोड में एक्वटिव बो चुकी हैं। वहीं सियासी गतलियारों में राजनीति पर चर्चा भी जारी है
चंडीगढ़,
20
जनवरी
2022।
पंजाब
विधानसभा
चुनाव
को
लेकर
सभी
सियासी
पार्टियां
चुनावी
मोड
में
एक्वटिव
बो
चुकी
हैं।
वहीं
सियासी
गतलियारों
में
राजनीति
पर
चर्चा
भी
जारी
है,
पंजाब
दी
गल
में
आज
हम
आपको
कुछ
ऐसी
सियासी
ख़बरों
से
रूबरू
करवाने
जा
रहे
हैं,
जिससे
ज़रिए
आप
पंजाब
की
राजनीतिक
स्थितीयों
का
ज़ायज़ा
ले
पाएंगे।
आज
हम
बात
करेंगे
आम
आदमी
पार्टी
ने
किन
हालातों
में
भगवंत
मान
को
मुख्यमंत्री
का
चेहरा
घोषित
किया
है,
क्या
अरविंद
केजरीवाल
के
पास
कोई
और
विकल्प
नहीं
था
?
इसके
अलावा
भगवंत
मान
का
क्या
चरणजीत
सिंह
चन्नी
की
काट
कर
पाएंगे,
इस
मुद्दे
पर
भी
रौशनी
डालेंगे
वहीं
मालवा
क्षेत्र
का
पंजाब
की
सियासत
में
हमेशा
से
दबदबा
रहा
है,
इसके
पीछे
की
वजह
क्या
है
?
क्या AAP के पास नहीं था विकल्प ?
आम आदमी पार्टी पंजाब में सत्ता पर क़ाबिज़ होने के लिए यह कोशिश कर रही थी की किसी बड़ा चेहरा को सीएम का दावेदार घोषित करे। इसमें कोई दो राय नहीं है कि आम आदमी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा अरविंद केजरीवाल खुद हैं लेकिन पंजाब के लोग सिख स्टेट होने की वजह से बाहरी चेहरा की बतौर सीएम कबूल नहीं करते। इसलिए अरविंद केजरीवाल की यह मजबूरी बन चुकी थी कि किसी लोकल चेहरे को ही सीएम उम्मीदवार घोषित करें। इस बाबत आम आदमी पार्टी बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद, दुबई के होटल कारोबारी एसपीएस ओबेरॉय, नवजोत सिंह सिद्धू और किसान नेता बलबीर राजेवाल पर दांव खेला लेकिन बात नहीं बन पाई। किसान आंदोलन स्थगित होने के बाद आम आदमी पार्टी की नज़र किसान नेता बलबीर राजेवाल पर टिकी थी लेकिन उनके साथ भी बात नहीं बन पाई। किसी बड़े चेहरे की तलाश में पूरी जोड़तोड़ करने के बाद भी आखिर में सांसद भगवंत मान ही आम आदमी के सीएम उम्मीदवार बने। हालांकि केजरीवाल ने रायशुमारी के बहाने सीएम के चयन की जिम्मेदारी पंजाब की जनता पर डाल दी ताकि चयन निष्पक्ष लगे।
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चरणजीत सिंह चन्नी बनाम भगवंत मान
पंजाब के चुनावी रण में इस बार आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी ही रेस में दिख रही है। वहीं सियासी ऐतबार से चुनावी रण में शिरोमणि अकाली दल और गठबंधन के साथी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और गठबंधन के साथी के साथ-साथ किसानों की पार्टी भी मुक़ाबले में है। अब बात की जाए तो भगवंत मान और चरणजीत सिंह चन्नी में कौन बेहतर है तो आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता पहले के मुक़ाबले कम हुई है। क्योंकि पिछली बार चुनाव में आम आदमी पार्टी को 36 लाख लोगों ने वोट किया था लेकिन भगवंत मान को सीएम उम्मीदवार घोषित करने के बाद सिर्फ़ 21 लाख लोगों ने ही वोट डाले। क़रीब 15 लाख मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी से दूरी बना ली है। इसके पीछे की भगवंत मान की नशेड़ी छवि बताई जा रही है। वहीं चरणजीत सिंह चन्नी की बात की जाए तो उन्होंने 111 दिन के अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में ख़ुद को सफल सीएम के तौर निखारा है। पंजाब की जनता भगवंत मान से ज़्यादा चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब के सीएम के तौर पर देखना चाहती है।
पंजाब की सियासत में मालवा क्षेत्र का दबदबा
पंजाब की सियासत में मालवा क्षेत्र का दबदबा हमेशा से रहा है। चाहे वह विधानसभा सीटों के मामले में हो या फिर मुख्यमंत्री देने वाले क्षेत्र की बात हो। ग़ौरतलब है कि 55 सालों से पंजाब के मुख्यमंत्री इसी क्षेत्र से ताल्लुक रखते आ रहे हैं और इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा विधानसभा की 69 सीटें हैं। पंजाब के चुनावी रण में उतर चुकी सियासी पार्टियों के मुख्यमंत्री पद के सभी प्रमुख दावेदारों का मालवा से ही ताल्लुक रहा है। 1967 में किला रयपुर से गुरनाम सिंह, 1967 में ही धर्मकोट से लक्ष्मण सिंह गिल, 1969 में किला रायपुर से फिर गुरनाम सिंह, 1970 में गिद्दड़बाहा से प्रकाश सिंह बादल, 1972 में श्री आनंदपुर साहिब से ज्ञानी जैल सिंह, 1977 में फिर से गिद्दबाहा से प्रकाश सिंह बादल, 1980 में नकोदर से दरबारा सिंह, 1985 में बरनाला से सुरजीत सिंह, 1992 में बेअंत सिंह जालंधर कैंट से जीते ( लुधियाना के पायल के रहने वाले थे), 1995 में श्री मुक्तसर साहिब से हरचरण सिंह बराड़, 1996 में लेहरा से रजिंदर कौर भट्ठल, 1997 में लांबी से प्रकाश सिंह बादल, 2002 में पटियाला से कैप्टन अमरिंदर सिंह, 2007 में लांबी से प्रकाश सिंह बादल, 2012 में लांबी से प्रकाश सिंह बादल, 2017 में पटियाला से कैप्टन अमरिंदर सिंह औऱ 2021 में चमकौर साहिब से चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बने। इस तरह देखा जाए तो मालवा क्षेत्र से अभी तक 17 सीएम रह चुके हैं। क़यास यह भी लगाया जा रहा है आगामी चुनाव के बाद भी इसी क्षेत्र से सीएम होगा। यही वजह है कि पंजाब की सियासत में मालवा क्षेत्र का शुरू से ही दबदबा रहा है।
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