कोरोना पर भारतीय वैज्ञानिक दंपती का बड़ा दावा, वुहान के सीफूड बाजार से नहीं लैब में बना है वायरस
पुणे, जून 06: दुनिया इस वक्त एक ऐसे अदृश्य दुश्मन कोरोना वायरस से लड़ रहा है, जो चीन के वुहान शहर से निकलकर पूरे विश्व में फैल चुका है। कोरोना वायरस का आतंक लगातार जारी है। इस वायरस से सबसे ज्यादा अमेरिका, भारत, ब्राजिल और फ्रांस जैसे बड़े देशों को नुकसान झेलना पड़ रहा है और अभी भी इस वायरस के अलग-अलग वैरिएंट देशों की चिंता बढ़ा रहे हैं। भारत में कोरोना की दूसरी लहर ने भयानक रूप दिखाते हुए जमकर अपना तांडव मचाया था। हालांकि पहले की तुलना में अब वायरस के संक्रमण की रफ्तार थोड़ी कम हो गई है। ऐसे में अब भारतीय वैज्ञानिक दंपती ने एक दावा करते हुए अहम जानकारी साझा की है, जिसमें बताया गया है कि कोविड-19 की उत्पत्ति वुहान लैब से ही हुई है।
वुहान की लैब से हुई वायरस की उत्पत्ति!
हालांकि इस चीनी वायरस को लेकर दुनियाभर में कई दावे किए गए है, जिसमें से एक यह भी है कि इस वायरस की उत्पत्ति वुहान की लैब से हुई है,जिसके सपोर्ट में अब ग्लोबल लेबल पर कई तथ्य भी पेश किए जा रहे हैं। इस बीच अब महाराष्ट्र के पुणे में रहने वाले एक वैज्ञानिक दंपती ने इसे लेकर कुछ तथ्य जुटाए हैं, जिससे साफ होता है कि कोविड -19 वायरस की उत्पत्ति वुहान की एक प्रयोगशाला में हुई थी, न कि सीफूड बाजार में। दरअसल, चीन कोरोना वायरस की उत्पत्ति सीफूड बाजार से होने का लगातार दावा करता आया है।
वायरस को 2012 की चीन की घटना से जोड़ा
पुणे की वैज्ञानिक दंपति की ओर से समीक्षा किए गए दस्तावेज हाल ही में कोविड -19 की उत्पत्ति के विवाद के केंद्र में हैं। दंपति ने खुलासा किया कि उन्हें 2012 की चीन की घटना की जांच करने के लिए प्रेरित किया, जिसे अब Sars-CoV-2 से जोड़ा जा रहा है। डॉ. मोनाली रहलकर और डॉ. राहुल बाहुलीकर के अनुसार यह दुनिया भर के लोगों की पीड़ा थी, जिसने उन्हें कोरोना वायरस की उत्पत्ति की लेकर गहराई में जाने के लिए प्रेरित किया। अपने रिचर्स को लेकर वैज्ञानिकों ने कहा कि उन्हें दक्षिण चीन के मोजियांग में एक तांबे की खदान से संबंधित दस्तावेज मिले। वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार 2012 में माइनशाफ्ट को साफ करने के लिए छह खनिकों को लगाया गया था, जो चमगादड़ की बूंदों (चमगादड़ के मल) से भरा था।
कोरोना के जैसे थे लक्षण
डॉ. राहलकर ने समझाया की चमगादड़ की बूंदें टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं और छूने पर धूल में बदल जाती हैं। जब कोई उस पर चलता है, तो सूखे छर्रे फट जाते हैं और आसपास के वातावरण में मिल जाते हैं, जिससे सांस लेने पर हवा में एलर्जी हो जाती है। खदान में काम करने के बाद सभी छह लोग बहुत बीमार हो गए थे। उनमें बुखार, खांसी और खून के थक्के जैसे लक्षण दिखाई दे रहे थे, जो आमतौर पर कोविड -19 रोगियों में देखे जाते हैं। थकान, इसके बाद फेफड़ों में निमोनिया जैसे लक्षण भी थे।
वैज्ञानिक दंपति ने किया यह दावा
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ. रहलकर ने कहा कि दुनिया भर में कोविड -19 रोगियों की रेडियोलॉजिकल रिपोर्ट मोजियांग के छह लोगों के समान है। उनके सीटी स्कैन में ग्राउंड-ग्लास अपारदर्शिता थी, जो परिधीय थे और कोविड -19 रोगियों के स्कैन की विशेषताओं से मेल खाते थे। डॉ. मोनाली रहलकर ने बतााया कि हमें यह भी पता चला कि सार्स का अगला कजिन मोजियांग खदान से एकत्र किया गया था और हमने मई 2020 (इस संबंध में) में एक छोटा सा पेपर भी प्रकाशित किया था। वैज्ञानिक दंपति ने चीन के कोरोना डॉक्टर के नाम से जाने जाने वाले पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. झोंग नानशान का भी जिक्र किया। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से खदान के 6 लोगों के मामलों को देखने के बाद डॉ नानशान ने निष्कर्ष निकाला था कि उनकी स्थिति एक वायरल संक्रमण का परिणाम थी।
वायरस पर रिचर्स कर रही थी लैब
उनके मुताबिक वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और वुहान में अन्य प्रयोगशालाएं वायरस पर प्रयोग कर रही हैं, और एक संदेह है कि उन्होंने वायरस के जीनोम में कुछ बदलाव किए हैं और यह संभव हो सकता है कि वर्तमान वायरस का आविष्कार इस प्रक्रिया में किया गया हो। अपने शोध के बारे में बात करते हुए डॉ. रहलकर ने कहा कि वे नहीं जानते कि क्या वायरस लीक हुआ था, लेकिन यह एक मजबूत परिकल्पना है क्योंकि हमारा शोध एक संभावित प्रयोगशाला रिसाव की ओर इशारा करता है।
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