5 बच्चों की हत्या करने वाली दो बहनों की मौत की सजा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने उम्रकैद में बदला, दिया ये तर्क
बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को दो बहनों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। दोनों बहनों पर 1990 से 1996 के बीच 13 बच्चों को किटनैप करने, उनमें से 5 को मारने का आरोप था।
मुंबई, 18 जनवरी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को दो बहनों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। दोनों बहनों पर 1990 से 1996 के बीच 13 बच्चों को किटनैप करने, उनमें से 5 को मारने और बाकी बच्चे बच्चों से चेन और बटुआ मारने के काम करवाने का आरोप था। बता दें कि साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने कोल्हापुरी की दो सौतेली बहनों रेणुका शिंदे और सीमा गावित को मृत्यु दंड दिया था। राज्य सरकार ने भी कोर्ट के इस फैसले का समर्थन किया था, लेकिन अब 16 साल बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने दोनों बहनों की मौत की सजा को उम्र कैद में बदल दिया।
सात सालों तक दया याचिकाओं पर नहीं हुआ कोई फैसला
जस्टिस नितिन जामदार और जस्टिस सारंग कोतवाल की खंडपीठ ने इसके पीछे उनकी दया याचिकाओं के निपटारे में राष्ट्रपति और अत्यधिक देरी का हवाला दिया। कोर्ट ने राज्य सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि अस्पष्टीकृत, अत्यधिक, लंबी देरी और अधिकारियों के ढुलमल रवैये के कारण लगभग सात साल 10 महीने तक आरोपियों की दया याचिका पर फैसला नहीं लिया जा सका।
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दया याचिका पर निर्णय लेने में देरी जीवन के अधिकार का उल्लंघन
इस प्रकार प्रतिवादी राज्य ने न केवल याचिकाकर्ताओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है, बल्कि गंभीर अपराधों के निर्दोष पीड़ितों को भी विफल बनाया है। वहीं दोषियों की रिहाई की याचिका पर कोर्ट ने कहा कि उसने दोनों दोषियों की सजा कम करने की प्रार्थना को जरूर स्वीकार कर लिया है, लेकिन उन्हें तुरंत रिहा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उन्होंने जो अपराध किया है वह जघन्य है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। अदालत ने मौत की सजा को उम्र कैद में बदलते हुए कहा कि राष्ट्रपति द्वारा दया याचिकाओं पर निर्णय लेने में अत्यधिक देरी यातना के समान है और साथ ही संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।
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