क्यों मुंबई पुलिस कमिश्नर को हटाकर अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकती उद्धव सरकार
मुंबई: महाराष्ट्र में मुकेश अंबानी के घर के बाहर से बरामद हुई जिलेटिन लदी स्कॉर्पियो और उस स्कॉर्पियो मालिक की हत्या के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सरकार ने मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को लो-प्रोफाइल माने जाने वाले एक पोस्ट पर तबादला कर दिया है। ये दोनों ही केस एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और फिलहाल पहले केस की जांच केंद्रीय जांच एजेंसी एनआईए के हाथों में है और दूसरे की जांच महाराष्ट्र एटीएस कर रही है। दोनों में ही प्रमुख संदिग्ध एक ही है, निलंबित असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाजे, जो 25 तारीख तक एनआईए की रिमांड पर है। खुलासे के बाद से इस मामले में एक से बढ़कर एक जो खुलासे हुए हैं, उसने उद्धव सरकार को शक के घेरे में ला खड़ा किया है।

मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर का दावा
मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर और मशहूर आईपीएस (रिटायर्ड) अधिकारी जूलियो रिबेरो की मानें तो 2008 में जब मुंबई पुलिस के निलंबित असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाजे शिवसेना में शामिल हुआ तो उसने कथित तौर पर पार्टी से अपने लिंक को अपनी गतिविधियों को छिपाने के लिए इस्तेमाल किया। उन्होंने एक आर्टिकल में लिखा है, कहते हैं कि उसी दबदबे के आधार पर उसने तब पुलिस फोर्स से इस्तीफा देकर एक प्राइवेट इंवेस्टिगेटिव एजेंसी खोला, जिस तरह की एजेंसियां बैंकों और वित्तीय संस्थानों की ओर से लोन और बकाए की उगाही के लिए काम करती हैं। यानी रिकवरी एजेंट के तौर पर लोगों को डरा-धमकाकर उनसे पैसों की वसूली करने वाली संस्था। उन्होंने बताया है कि एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बनकर ऐसे निचले ओहदे के पुलिस वाले कैसे अपना रसूख भी बढ़ाते हैं और बेहिसाब संपत्तियां भी जुटा लेते हैं। ऐसे लोगों की छवि ऐसी बन जाती है कि लोग उन्हें हीरो की तरह देखने लगते हैं। रिबेरो के मुताबिक यही वजह है कि वाजे के नाम पर 'रेगे' नाम की एक मराठी फिल्म भी बन चुकी है, जिसमें उनका किरदार मुख्य भूमिका में है। रिबेरो का कहना है कि सच्चाई तो ये है कि ऐसे 'एनकाउंटर स्पेशलिस्ट' असल में समाज के दुश्मन होते हैं और वास्तव में ये 'वर्दी वाले गुंडे' हैं।

विस्फोटक केस में सचिन वाजे का रोल
उद्योगपति मुकेश अंबानी के मुंबई स्थित घर एंटीलिया के बाहर 25 फरवरी को पार्क की गई विस्फटकों वाली स्कॉर्पियो का तार एनआईए की अभी तक की जांच में सीधे तौर पर वाजे से जुड़ रहा है। एजेंसी की ओर से वहां पर उसकी मौजूदगी से लेकर उस कार के उसी के कब्जे में पहले से होने और उसके पीछे चली इनोवा कार में भी उसकी मौजूदगी को लेकर कई तरह के सबूत और डिजिटल एविडेंस होने की बात कही जा रही है। महाराष्ट्र एटीएस उस स्कॉर्पियो के मालिक मनसुख हिरेन की हत्या के मामले की जो जांच कर रही है, और उसमें भी वही प्रमुख संदिग्ध है। इसके अलावा इस केस में एनआईए के पास कई सीसीटीवी कैमरे मिले और वारदात से जुड़े कई सबूत मिटाने की कोशिशों के प्रमाण मौजूद हैं। रिबेरो के मुताबिक अगर इन खुलासों में सच्चाई है तो वाजे इस अपराध में बुरी तरह से फंस चुका है। उन्होंने कहा है कि अभी भी वाजे के लिए यह सही होगा कि इस पूरे मामले में वह अपनी भूमिक को लेकर सच्चाई उगल दे। क्योंकि, इस मामले में अब यही बड़ा खुलासा होना है कि अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक रखने और धमकी भरा खत रखने का मकसद क्या था?

एंटीलिया केस में महाराष्ट्र सरकार की कार्रवाई
महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने सहयोगी दलों के दबाव में अभी तक सिर्फ यह कदम उठाया है कि पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को होम गार्ड डीजी जैसा शंटिंग पोस्ट माने जाने वाली जगह भेज दिया है। हालांकि, शिवसेना इसके लिए आखिर तक तैयार नहीं लग रही थी और वह अप्रैल-मई में होने वाले रुटीन फेरबदल के दौरान ही उन्हें निपटना चाहती थी। लेकिन, एनसीपी के बड़े नेताओं ने सीएम के साथ दो मीटिंग करके परमबीर सिंह को फौरन तबादले के लिए सरकार पर दबाव बना दिया था। नए पुलिस कमिश्नर हेमंत नगराले भी मानते हैं कि वाजे की वजह से मुंबई पुलिस की प्रतिष्ठा को बहुत ज्यादा धक्का लगा है और फोर्स में फिर से विश्वास बहाली के लिए वो कम करेंगे।

पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का दावा
विस्फोटक मामले में वाजे के एनआईए के हत्थे चढ़ने के बाद तक शिवसेना नेता संजय राउत उसकी तारीफ में कसीदे पढ़े जा रहे थे। जो कस्टडी में हत्या के आरोप में 16 साल से निलंबित था, उसे एक होनहार पुलिस अफसर बता रहे थे। लेकिन, अब वह मनसुख हिरेन की हत्या का भी संदिग्ध बन चुका है; और अब शिवसेना के पास बैकफुट के आने के अलावा कोई उपाय नहीं बचा है। यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने यह सवाल उठाना शुरू कर दिया है कि इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि वाजे और परमबीर सिंह जैसे पुलिस अधिकारियों का राजनीतिक संरक्षक कौन है? क्योंकि, वाजे की पुलिस सेवा में बहाली से लेकर एंटीलिया विस्फोटक केस की जांच उसे सौंपने तक में सिंह की ही प्रमुख भूमिका रही है। उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा में यह कहकर सनसनी मचा दी है कि एंटीलिया केस में वाजे और परमबीर सिंह तो बड़ी साजिश के सिर्फ मोहरे भर हैं। उन्होंने यहां तक दावा किया था कि 2018 में जब वह मुख्यमंत्री थे, तब शिवसेना ने वाजे की नौकरी बहाली के लिए पैरवी की थी, लेकिन उन्होंने एडवोकेट जनरल की सलाह पर इसे मानने से इनकार कर दिया था।

क्यों जिम्मेदारियों से बच नहीं सकती उद्धव सरकार ?
एंटीलिया केस में अबतक कुछ बातें स्पष्ट नजर आ रही हैं। सचिन वाजे विस्फोटकों से लदी स्कॉर्पियो पार्क करने और उस गाड़ी के मालिक मनसुख हिरेन की हत्या का मुख्य संदिग्ध है। उसकी दागदार छवि के बावजूद पुलिस में फिर से बहाली और उसे हाई-प्रोफाइल क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट का चीफ बनाने से लेकर एंटीलिया केस की जांच सौंपने तक में पूर्व पुलिस कमिश्नर परमीबर सिंह की सक्रिय भूमिका है। अब कुछ बड़े सवाल ये हैं कि वाजे के दागदार करियर के बाद नौकरी में वापस क्यों लिया गया? उसे इतना संवेदनशील पोस्ट किसके कहने पर दिया गया? इतने जूनियर होने के बावजूद उसे मुंबई क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट का हेड किसके कहने पर बनाया गया? किसके कहने पर उसे ही एंटीलिया केस की जांच सौंपी गई? अगर कोरोना के नाम पर फिर से पुलिस में शामिल किया गया तो उसी से संबंधित ड्यूटी क्यों नहीं लगाई गई? किसके दबाव में बहाली हुई? जाहिर है कि इन सब सवालों के लिए पूर्व पुलिस कमिश्नर सीधे तौर पर जवाबदेह हैं। लेकिन, क्या उद्धव सरकार सीधे तौर पर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ सकती है? जबकि, उसके शासन ने तो प्रमुख संदिग्ध के हाथ में ही जांच सौंप दी थी।