Maharashtra:एकनाथ शिंदे के लिए फडणवीस ने क्यों छोड़ा CM पद? 5 कारण जानिए
मुंबई, 30 जून: महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री के रूप में जब बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने एकनाथ शिंदे के नाम की घोषणा की तो उनका परिवार भी भौंचक्का रह गया। इससे पहले पूरा देश यही मानकर चल रहा था कि पूर्व सीएम फडणवीस को ही गुरुवार शाम को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी शपथ दिलाएंगे। फडणवीस के ऐलान से एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायक भी चकित थे। उन्होंने कहा भी, 'बीजेपी के पास ज्यादा एमएलए होने के बावजूद देवेंद्र फडणवीस ने यह फैसला बालासाहेब के शिवसैनिक को सीएम बनाने के लिए लिया। संख्या के हिसाब से फडणवीस सीएम बन सकते थे, लेकिन उन्होंने बड़ा दिल दिखाया है.....।' आइए जानते हैं कि वे क्या कारण हो सकते हैं, जिसकी वजह से भाजपा नेतृत्व और देवेंद्र फडणवीस ने राजनीतिक पंडितों को भी हिला दिया है।
यह संदेश देने की कोशिश कि बीजेपी सत्ता लोलुप नहीं!
भाजपा और शिवसेना गठबंधन महाराष्ट्र में पांच साल सरकार चलाने के बाद 2019 में दोबारा चुनाव जीत कर लौटा। मुख्यमंत्री के तौर पर नेतृत्व देवेंद्र फडणवीस के हाथों में था और उद्धव ठाकरे की मौजूदगी में कई चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें दोबारा सीएम बनाने की अपील भी कर चुके थे। लेकिन, नतीजे आने के बाद शिवसेना सहयोगी भारतीय जनता पार्टी से लगभग आधे एमएलए होने के बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर अड़ गई। सीएम की कुर्सी पर बैठने की उतावली शिवसेना के नेताओं की एनसीपी से बातचीत शुरू हो चुकी थी। महाराष्ट्र की राजनीति में नए प्रयोग पर मंथन चल रहा था। तभी अचानक एक दिन सुबह राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। साथ में एनसीपी नेता और शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने भी डिप्टी सीएम की शपथ ले ली। लेकिन, बिना आंकड़े जुटाए यह सरकार टिक नहीं पाई। शिवसेना ने विरोध में चुनाव लड़कर आने के बादजूद कांग्रेस और एनसीपी से गठबंधन करके उद्धव ठाकरे को सीएम की कुर्सी पर बिठा दिया। लेकिन, वह सुबह-सुबह शपथ लेने की घटना से भाजपा की छवि को चोट पहुंची। उसपर सत्ता लोलुप होने के आरोप लगे थे। शायद यही वजह है कि जब देवेंद्र फडणवीस का मुख्यमंत्री बनना तय था, तो पार्टी ने एक ऐसा मास्टरस्ट्रोक चला, जिससे उसे लगता है कि उसपर लगा यह आरोप धुल सकता है।
शिवसैनिकों की भावना पर नजर
जब सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया तो लाचारी में इस्तीफा देते वक्त पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने यह बताने की कोशिश की कि बीजेपी के इशारे पर उनके अपनों ने ही पीठ में छुरा घोंपा है। उन्होंने कहा, 'तुमने बालासाहेब के बेटे को नीचा किया है।' सत्ता में बने रहने के लिए साम दाम दंड भेद के तमाम हथकंडे नाकाम रहने के बाद यह उद्धव का इमोशनल कार्ड था। हो सकता है कि भाजपा को लगा कि महाराष्ट्र की भावनात्मक राजनीति के लिए उनकी यह चाल आगे चलकर उसे नुकसान पहुंचा सकता है। खासकर एकनाथ शिंदे गुट के शिवसैनिकों पर वोटरों का कोई नकारात्मक असर ना पड़े। शायद यही वजह है कि पार्टी ने अपनी कुर्सी एक ऐसे शिवसैनिक को सौंप दी है, जो बाल ठाकरे का कट्टर अनुयायी है।
बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत की हिमायती
भाजपा ने सीएम कुर्सी छोड़कर असल में लंबी रेस की राजनीति पर दांव लगाया है। उद्धव ठाकरे के समर्थक नेताओं ने पिछले ढाई वर्षों में सत्ता में रहते हुए चाहे जितनी भी राजनीति की हो, भाजपा ने शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे का नाम जपना कभी नहीं छोड़ा है। पार्टी को लगता है कि महाराष्ट्र का एक तबका बाल ठाकरे को आज भी मसीहा के रूप में देखता है और उनकी राजनीति बीजेपी की राजनीति से कोई ज्यादा अलग भी नहीं थी। पार्टी इतने बड़े वोट बैंक को हमेशा के लिए अपना कायल बनाकर रखना चाहती है। एकनाथ शिंदे ने कहा भी है, 'हम बालासाहेब ठाकरे और धर्मवीर आनंद दिघे की विचारधारा को लेकर चलेंगे।' अलबत्ता भाजपा का यह कदम उद्धव कैंप को जरूर चिंता में डाल सकता है।
2024 के चुनावों पर नजर
पिछले करीब 10 दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति में सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा हुआ है कि पार्टी के 40 विधायकों के समर्थन का दावा करने वाले मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की शिवसेना में असली कौन है? कानूनी तौर पर इसका जवाब आने में अभी थोड़ा वक्त लग सकता है। लेकिन, शिंदे ने जिस तरह से बाल ठाकरे और आनंद दिघे का नाम अपने शपथग्रहण में भी लिया है, उससे भाजपा के लिए यह पेश करना ज्यादा आसान होगा कि बाल ठाकरे की विरासत वाली असली शिवसेना शिंदे के ही पास है। पार्टी इसका लाभ 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उठा सकती है।
ताकि शिंदे गुट में ना मचे भगदड़!
एकनाथ शिंदे ने जिस तरह से उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री रहते पार्टी के विधायकों को तोड़ा है, उससे इसकी आगे क्या गारंटी है कि इनमें से कुछ विधायक फिर नहीं छिटक सकते हैं। देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री रहते, शिंदे समर्थक विधायकों को लेकर बीजेपी को यह डर हमेशा बना रह सकता था। लेकिन, एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर उद्धव के बागियों का फिर से टूटने का खतरा थोड़ा कम जरूर हो गया है। क्योंकि, उन्हें लगेगा कि सरकार की कमान उन्हीं के नेता के हाथों में है, न कि बीजेपी के हाथों में। इससे भाजपा के लिए सरकार चलवाना ज्यादा आसान रह सकता है।