महाराष्ट्र में 6 करोड़ साल पहले विशालकाय ज्वालामुखी ने मचाई थी भयानक 'तबाही', अब मिले सबूत
यवतमाल, जुलाई 04: महाराष्ट्र में करीब 6 करोड़ साल पहले ज्वालामुखी ने तबाही मचाई थी। इसका खुलासा उस वक्त हुआ जब राज्य के यवतमाल जिले के एक गांव में सड़क बनाने के काम किया जा रहा था। इस दौरान ज्वालामुखी के लावा से छह करोड़ साल पहले बने बेसाल्ट चट्टान के स्तंभ (खंभों) का पता चल पाया है, जिसकी जानकारी एक प्रमुख भूविज्ञानी ने दी। उन्होंने कहा कि यह दुर्लभ चट्टान पिछले सप्ताह जिले के वानी-पंधकवाड़ा क्षेत्र के शिबला-पारदी गांव में मिली है।
6 करोड़ साल पहले ज्वालामुखी के लावा से बनी चट्टान
पर्यावरणविद् और भूविज्ञानी प्रोफेसर सुरेश चोपेन ने इन चट्टानों के बारे में जानकारी साझा करते हुए बताया कि यह 60 मिलियन वर्ष यानी 6 करोड़ साल पहले महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर ज्वालामुखी विस्फोट के लावा से बनी प्राकृतिक चट्टान है, जिसे कॉलमर बेसाल्ट कहा जाता है। षट्भुज (6 भुजाओं से घिरी बन्द आकृति) के आकार के खंभे शीतलन (कूलिंग) और सिकुड़ना से बनी थी।
60 लाख साल पुराने शंख के जीवाश्म भी मिले
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त समिति के पूर्व सदस्य प्रोफेसर सुरेश चोपेन ने यह भी बताया कि यवतमाल जिले का वानी इलाका भौगोलिक रूप से बहुत ही प्राचीन है। पूर्व सदस्य प्रोफेसर सुरेश चोपेन के मुताबिक इसी इलाके में उनको पंढरकवाड़ा और मारेगांव तहसील के पास 20 करोड़ साल पुराने स्ट्रोमेटोलाइट (स्तरित तलछटी संरचनाएं) और 60 लाख साल पुराने शंख के जीवाश्म मिले थे।
गर्म लावा यवतमाल से प्रवाहित हुआ
उन्होंने बताया कि सात करोड़ साल पहले तक महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में एक महासागर था, लेकिन 60 मिलियन वर्ष पहले क्रेटेशियस के अंत के दौरान पृथ्वी पर भौगोलिक घटनाएं हुईं और आज के पश्चिमी घाट से गर्म लावा दरार के रूप में यवतमाल जिले और मध्य विदर्भ और गुजरात तक प्रवाहित हुआ, जिसे दक्कन जाल के रूप में जाना जाता है। उन्होंने बताया कि ज्वालामुखी ने मध्य भारत में पांच लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर किया। महाराष्ट्र में 80 प्रतिशत चट्टान संरचनाएं बेसाल्ट आग्नेय हैं।
महाराष्ट्र में कई जगह पाई गई ऐसी चट्टानें
प्रोफेसर चोपेन ने बताया कि कर्नाटक में सेंट मैरी द्वीप ऐसे स्तंभकार बेसाल्ट के लिए एक टूरिस्ट प्लेस के रूप में फेमस है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में, यवतमाल से पहले मुंबई, कोल्हापुर और नांदेड़ में ऐसी चट्टानें पाई गई हैं। जब गर्म लावा एक नदी में बहता है और अचानक ठंडा हो जाता है तो यह सिकुड़ जाता है और षट्भुज के आकार का हो जाता है, ऐसे पत्थर के खंभे बनते हैं, जिन्हें स्तंभ बेसाल्ट कहा जाता है।
ज्वालामुखी विस्फोट के कारण जंगल और जीव-जंतु हो गए राख
यहीं नहीं उन्होंने बताया कि भौगोलिक दृष्टि से ये चट्टानें बहुत अहम हैं और प्रशासन को पत्थर के खंभों और वहां पाए जाने वाले इलाेक की सुरक्षा करनी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया कि यवतमाल जिले में 60 मिलियन साल पहले विशालकाय डायनासोर जैसे जीव और जानवर रहते थे। घने जंगल थे लेकिन महाराष्ट्र में इस विशाल ज्वालामुखी विस्फोट के कारण सारे जंगल और जीव-जंतु राख हो गए।