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नेताओं के चलते फंसे किसान, युवा अध्यक्ष के गरम मिजाज के चलते थाने में नपे

कांग्रेस के युवा प्रदेश अध्यक्ष कुणाल चैधरी और शास्वत सिंह जैसे युवा नेता किसानों का नेतृत्व कर रहे थे तो वहीं प्रशासन की तरफ से प्रषिक्षु आईएएस आदित्स सिंह एसडीएम और कुमार प्रतीक जैस युवा आईपीएस कमान को संभाले हुए थे।

By Gaurav Dwivedi
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टीकमगढ़। 3 अक्टूबर को जिला कलेक्ट्रेट में हुए पथराव और लाठीचार्ज के बाद किसानों को पुलिस थाने में अर्धनग्न कर बंद करने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। सबसे बड़ा सवाल ये उभरकर आ रहा है कि आखिरकार कांग्रेस के युवा प्रदेश अध्यक्ष कुणाल चैधरी और शास्वत सिंह जैसे युवा नेता किसानों का नेतृत्व कर रहे थे तो वहीं प्रशासन की तरफ से प्रषिक्षु आईएएस आदित्स सिंह एसडीएम और कुमार प्रतीक जैस युवा आईपीएस कमान को संभाले हुए थे। ऐसे में कही ऐसी घटनाएं युवा जोश में हुई लापरवाही तो नहीं है।

'अनुभव की कमी'

युवक कांग्रेस के बैनर तले आयोजित एक कार्यक्रम में किसान भी शामिल थे, जिन्हें नहीं पता था कि उनका नेतृत्व वो युवा कर रहे हैं जिन्हें अभी राजनीति की गहराई मालूम नहीं है। उधर दूसरी ओर प्रशासन में भी वो अधिकारी थे, जिन्हें या तो पहला जिला मिला है या फिर वो प्रषिक्षु हैं। अधिक भीड़ में 25 साल के वो युवा भी थे, जिन्हें पलक झपकते ही गुस्सा आ जाता है और पत्थर उठा लेते हैं।

क्या कहते है अधिकारी?

मनीष श्रीवास्तव (रिटायर्ड आईएएस):- मध्यप्रदेष कैडर के रिटायर्ड आईएएस इस कांड पर कहते हैं की निश्चित ही अनुभव के आधार पर परिपक्वता आती है लेकिन ये कहना गलत होगा कि जिले के प्रशासन में आला अधिकारी युवा हैं तो वो घटना को कंट्रोल नहीं कर पाए। ज्यों-ज्यों इन अधिकारियों की नौकरी का तजुर्वा बढ़ेगा तो अनुभव भी साथ आएगा।

डॉ. भारतेन्दु कठैल (रिटायर्ड मनोरोग चिकित्सक):- सीनियर रिटायर्ड डॉक्टर कठैल का मानना है कि 27 से 50 साल की उम्र में मनुष्य की स्थिति सामान्य होती है। 25 साल से कम के युवाओं मे तेज गुस्से का होना स्वाभाविक है। हो सकता है कि पत्थरबाजों को नियत्रण करने के लिए गुस्सा आना स्वाभाविक है। मनोज बाबू चैबे (सामाजिक कार्यकर्ता) का कहना है कि युवा प्रशासन होने के कारण निश्चित ही परिस्थितियों को नियंत्रण करने की कमी है। अगर विवेकपूर्ण निर्णय लिया होता तो ये स्थिति नहीं होती।

कई लोगों के सुनने के बाद ये स्पष्ट होता लग रहा है कि युवा कांग्रेस की लीडरशिप और जिले में बैठे उच्च पदों पर युवा अधिकारियों के अनुभव की ही कमी का ये परिणाम है कि इस आंदोलन में किसान मोहरा बन गए हैं। जिनके पास अब जिंदगी भर अब प्रायश्चित के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा है। क्योंकि वो ना तो पथराव करने और ना ही बेइज्जत होने के लिए इस आंदोलन में शामिल हुए थे।

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English summary
Farmers trouble from leaders in Teekamgarh Madhya Pradesh
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