Rajasthan : पहले भी 2 CM को छोड़नी पड़ी थी कुर्सी, जानिए तब कांग्रेस आलाकमान ने कैसे निकाला समाधान?
जयपुर, 26 सितम्बर। राजस्थान में इस वक्त किस्सा कुर्सी का चल रहा है। कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। राजस्थान के मौजूदा सीएम अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी से एक कदम दूर हैं। वहीं, अशोक गहलोत की जगह सीएम बनने वालों की दौड़ में पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट सबसे आगे हैं। दिक्कत यह है कि राजस्थान कांग्रेस सीएम की कुर्सी के लिए दो हिस्सों में बंट गई है। एक गुट चाहता है कि सचिन पायलट सीएम बनें तो अशोक गहलोत गुट सचिन पायलट को सीएम के रूप में नहीं देखना चाह रहा। अब अंतिम फैसला कांग्रेस आलाकमान के हाथ में है। कांग्रेस आलाकमान के संकेत हैं कि सचिन पायलट सीएम और अशोक गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें। गहलोत गुट के विधायकों के सचिन पायलट के विरोध में इस्तीफों के खेल ने आलाकमान की भी मुश्किलें बढ़ा दी है।
राजस्थान कांग्रेस के इतिहास में यह कोई पहला मौका नहीं है जब मुख्यमंत्री पद के लिए इस तरह की उठापटक हुई हो। पहले भी दो मुख्यमंत्रियों को कुर्सी छोड़नी पड़ी है। तब कांग्रेस आलाकमान के लिए फैसला लेना इतना आसान नहीं था, मगर समाधान निकाला गया।
पहला मौका : हीरालाल शास्त्री को मुख्यमंत्री पद से देना पड़ा था इस्तीफा
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार बात 1949 की है। राजस्थान की रियासतों के एकीकरण के बाद हीरालाल शास्त्री को प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया था। कुछ समय बात ही राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी हो गई। तब राजस्थान पीसीसी चीफ गोकुल भाई भट्ट गुट मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री व मेवाड़ के किसान नेता माणिक्यलाल वर्मा का गुट जोधपुर के जयनारायण व्यास को सीएम बनाना चाहता था।
सचिन पायलट व अशोक गहलोत गुट की तरह शास्त्री और व्यास गुट में भी उस समय सीएम पद को लेकर खूब घमासान मचा था। दोनों गुटों की खींचतान के बीच 5 जनवरी 1921 को महज 21 माह बाद ही हीरालाल शास्त्री को सीएम के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। सीएम पद के लिए आलाकमान की पसंद हीरालाल शास्त्री होने के बावजूद विधायक दल में बहुमत के चलते जयनारायण व्यास मुख्यमंत्री बने थे।
दूसरा मौका : विधायकों के बहुमत के दम पर मोहनलाल सुखाड़िया बने सीएम
राजस्थान कांग्रेस में सीएम की कुर्सी छोड़ने का दूसरा मौका राजस्थान विधानसभा चुनाव 1952 में आया। जयनारायण व्यास में दो सीटों पर चुनाव लड़ा और दोनों पर हार गए। ऐसे में टीकाराम पालीवाल को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया। फिर जयनारायण व्यास किशनगढ़ से उप चुनाव जीते और 1 नवंबर 1952 को फिर से सीएम पद की शपथ ली।
जयनारायण व्यास पंडित नेहरू के करीबी थे। उधर, माणिक्यलाल वर्मा के गुट ने मोहनलाल सुखाड़िया को सीएम बनाने के लिए सियासत तेज कर दी थी। तब कांग्रेस आलाकमान ने विश्वास मत का रास्ता निकाला। तब नेहरू नहीं चाहते थे कि जयनारायण व्यास सीएम पद छोड़ें। माणिक्यलाल वर्मा गुट ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव की दुहाई देकर विधायक दल की मीटिंग बुलाई। मीटिंग में मोहनलाल सुखाड़िया के पक्ष में बहुमत होने से जयनारायण व्यास को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी और सुखाड़िया सीएम बने।
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