आयुष्मान योजना फर्जीवाड़ा: डमी मरीजों का वेरिफिकेशन करने वाले कौन? दिल्ली तक जुड़े तार !
जबलपुर, 29 अगस्त: सेन्ट्रल इंडिया किडनी हॉस्पिटल के मालिक पति-पत्नी को कोर्ट में पेश किया गया। जहां से पुलिस को एक दिन की रिमांड मिली है। आरोपी डॉ. अश्वनी पाठक और उनकी पत्नी दुहिता पाठक पर, आयुष्मान योजना के जरिए करोड़ों का फर्जीवाड़ा करने का आरोप हैं। एक दिन पहले पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार किया था। जनता और सरकार की आँखों में धूल झौंक कर गोरखधंधा करने वाली इस दंपत्ति के नेटवर्क में शामिल लोगों का भी पता किया जा रहा हैं। बड़ा सवाल है कि योजना के नाम पर भर्ती फर्जी मरीजों का ऑनलाइन और फील्ड वेरिफिकेशन करने वाले कौन थे? जिनकी बदौलत सरकारी खजाना खाली होता रहा।
एक दिन की पुलिस रिमांड पर पाठक दंपत्ति
जबलपुर में अवैध रूप से होटल में अस्पताल चलाने और सरकारी योजना के नाम फर्जीवाड़ा करने वाली पाठक दंपत्ति पुलिस की मेहमान है। सेन्ट्रल इंडिया किडनी अस्पताल के कर्ताधर्ता डॉ. अश्वनी पाठक और उनकी पत्नी दुहिता पाठक को कई गंभीर आरोपों के तहत गिरफ्तार किया था। सोमवार को दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से पुलिस को एक दिन की रिमांड मिली हैं। पुलिस को आरोपियों से इस फर्जीवाड़े के संबंध में कई बिंदुओं पर पूछताछ करना हैं।
फर्जीवाड़े में शामिल मैनेजर भी गिरफ्तार
बड़े पैमाने पर चल रहे इस फर्जीवाड़े की जारी जांच में सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल के मैनेजर को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस गिरफ्त में आए कमलेश्वर मेहतो इस पूरे कांड में अकाउंटेंट और मैनेजमेंट का काम संभालता था। एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा का कहना है कि आरोपी से कई अहम जानकारी मिली है। इसके साथ ही एसपी ने इस केस की जांच के लिए SIT भी गठित कर दी है। आगे की जांच में कई और बड़े खुलासे होने की उम्मीद है।
पुलिस को गिरोह के दलालों की तलाश
बताया जा रहा है कि आयुष्मान भारत जनकल्याणकारी योजना के नाम फर्जीवाड़ा करने का 'मास्टर माइंड' पाठक दंपत्ति का ही था। जिसे बेहद शातिर तरीके से एक गिरोह के रूप में अंजाम दिया जा रहा था। इसकी पिछले दो सालों से किसी को भी या तो भनक नहीं लगी, या फिर कुछ लोग अश्वनी पाठक एंड कंपनी को संरक्षण दे रहे थे। पुलिस को उन दलालों की तलाश है, जो आयुष्मान योजना का लाभ लेने की पात्रता रखने वाले लोगों को डॉ. पाठक के पास पहुँचाने का ठेका लेते थे।
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दूसरे जिले के ग्रामीण इलाकों का रिकॉर्ड
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस गोरखधंधे में लिप्त पाठक दंपति ने कोविडकाल के दौरान कुछ लोगों के साथ यह प्रयोग किया था। जिसमें मिली कामयाबी ने उनको फुल फ्लेश फर्जीवाड़े में धकेल दिया। आसपास के कई जिलों से आयुष्मान कार्डधारी पात्रता रखने वाले लोगों का रिकॉर्ड हासिल किया। फिर सबसे पहला टारगेट ग्रामीण इलाका रहा। कम पढ़े लिखे और जल्दी लालच में आ जाने वाले लोगों को अंधी कमाई का हथियार बनाना शुरू किया।
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दलालों की टीम की मॉनिटरिंग के लिए मैनेजर
सूत्रों के मुतबिक फर्जीवाड़े के इस खेल में प्रदेश के कई जिलों में सक्रिय दलाल फर्जी मरीजों को डॉ. पाठक के अस्पतालनुमा होटल पहुँचाने की व्यवस्था करते थे। गिरोह में शामिल लोगों की बाकायदा फोन पर मीटिंग होती थी। फर्जी मरीज तैयार होते ही, डॉ. अश्वनी पाठक आयुष्मान योजना के तहत इलाज संबंधी ऑनलाइन अप्रूवल की व्यवस्था में जुट जाता था। आरोपी का शातिर दिमाग और सांठगाँठ इतनी तगड़ी थी कि उसे अप्रूवल लेने में कभी कोई परेशानी नहीं आई। सक्रिय दलालों की लंबी चैन की मॉनिटरिंग करने एक मैनेजर को भी तैनात किया गया था।
हेल्पलाइन से और फील्ड वेरिफिकेशन करने वाले कौन?
इस बड़े फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद शहर से लेकर सेंट्रल लेवल तक कई अफसरों की संदिग्ध भूमिका की आशंका जताई जा रही है। आयुष्मान भारत योजना विभाग के जिम्मेदार अधिकारी खुद बताते है कि अप्रूवल के बाद ही मरीजों का इलाज शुरू होता है। उसके बाद योजना के हेल्पलाइन नंबर और फील्ड ऑफिसर द्वारा भी वेरिफिकेशन होता है। इसी आधार फिर इलाजरत संबंधित मरीज के पूरे खर्च की अधिकतम 5 लाख रुपए तक की राशि अस्पताल के खाते में क्रेडिट हो जाती है। मतलब साफ़ है कि इस काले धंधे के गठजोड़ को मजबूत करने वालों की लंबी फेहरिस्त हैं, जिनका बेनकाब होना बहुत जरुरी है।
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