
G-20 Summit: भारत के दोस्त पुतिन क्यों नहीं हो रहे हैं शामिल? 2014 को याद कर डर गये रूसी राष्ट्रपति
G20 Summit in Bali: आखिरी बार रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को साल 2014 में जी20 ग्रुप से अलग-थलग उस वक्त कर दिया गया था, जब रूस ने यूक्रेन पर हमला कर उससे क्रीमिया छीन लिया था और जी20 सम्मेलन में पुतिन के खिलाफ पश्चिमी देशों का ऐसा रवैया था, कि उसे देखकर रूसी राष्ट्रपति स्तब्ध रह गये थे और वो जी20 शिखर सम्मेलन से फौरन चले गये थे। और अब आठ सालों के बाद जब रूस ने पूरी तरह से यूक्रेन पर हमला कर रखा है और करब 9 महीने से ये लड़ाई जारी है, तो इस बार पुतिन जी20 शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे।

जी20 में शामिल नहीं होंगे पुतिन
यूक्रेन युद्ध में अभी तक कई बार बात बढ़कर परमाणु युद्ध तक पहुंच चुकी है और पश्चीमी देशों के भेजे गये हथियार ने रूसी सेना में तबाही फैला दी है, जिसका नतीजा ये हुआ, कि पुतिन के हाथ अभी तक एक भी जीत नहीं लगी है, लिहाजा रूसी राष्ट्रपति ने कल से शुरू होने वाले जी20 शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं होने का फैसला किया है। एक्सपर्ट्स का कहना है, कि अगर पुतिन इस बैठक में शामिल होते, तो फिर उनसे काफी सवाल पूछे जाते और बात उनके अपमान तक भी पहुंच सकती थी, लिहाजा पुतिन बैठक में शामिल ही नहीं हुए। पर्यवेक्षकों का कहना है कि, क्रेमलिन रूसी नेता को इंडोनेशिया में निंदा के तूफान से बचाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन पुतिन पहले के ही अलग-थलग किए जा चुके हैं और पश्चिमी देशों के अभूतपूर्व प्रतिबंधों के दायरे में है। डायलॉग ऑफ सिविलाइजेशन इंस्टीट्यूट के मुख्य शोधकर्ता एलेक्सी मालाशेंको ने कहा कि, पुतिन एक बार फिर सार्वजनिक रूप से अपमानित नहीं होना चाहते थे। उन्होंने कहा कि, साल 2014 में ब्रिस्बेन शिखर सम्मेलन में पुतिन को फोटो सेशन से दूर रखा गया था, जब बैठक के बाद सभी देशों का ग्रुप फोटो सेशन हुआ था।

क्या फिर होता अपमान?
एलेक्सी मालाशेंको ने कहा कि, "शिखर सम्मेलन के दौरान आपको अलग अलग नेताओं से बात करनी होती है और फोटो खिंचवाना होता है, लेकिन पुतिन वहां किससे बात करते और किससे फोटो खिंचवाते?" G20 की सभा अनिवार्य रूप से यूक्रेन में मास्को के आक्रमण से प्रभावित होगी, जिसने वैश्विक ऊर्जा बाजारों को झकझोर दिया है और भोजन की कमी को बढ़ा दिया है। वहीं, क्रेमलिन के करीबी विदेश नीति विशेषज्ञ फ्योदोर लुक्यानोव ने संकेत दिया कि, पुतिन यूक्रेन पर झुकने के लिए तैयार नहीं थे। ग्लोबल अफेयर्स जर्नल में रूस के संपादक लुक्यानोव ने कहा कि, "उनकी स्थिति सर्वविदित है, जो बदलने वाली नहीं है। दूसरे पक्ष की स्थिति भी अच्छी तरह से ज्ञात है। इसीलिए, उसमें जाने की क्या बात है?" क्रेमलिन ने कहा कि, यहां तक की पुतिन वीडियो लिंक के जरिए भी हाई-प्रोफाइल सम्मेलन को संबोधित नहीं करेंगे। लिहाजा, रूस ने सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए अपने विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव को भेजा है।

यूक्रेन पर पुतिन बने हुए हैं अडिग
इससे पहले जुलाई महीने में बाली में ही हुए जी20 विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान रूसी विदेश मंत्री का काफी ठंडा स्वागत किया गया था और उनके संबोधन के दौरान ज्यादातर सदस्य देशों के प्रतिनिधि बाहर चले गये थे और इस बार भी कुछ ऐसा ही होने वाला है। वहीं, राजनीतिक विश्लेषक कॉन्स्टेंटिन कलाचेव ने कहा कि, बाली की यात्रा करने से पुतिन का इनकार यूक्रेन को लेकर "एक गतिरोध की भावना" को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि, "पुतिन के पास कहने के लिए कुछ नहीं है, उनके पास यूक्रेन पर कोई प्रस्ताव नहीं है जो दोनों पक्षों को संतुष्ट कर सके।" वहीं, एक्सपर्ट्स का ये भी कहना है, कि हालिया दिनों में यूक्रेन में पुतिन को बार बार हार का सामना करना पड़ा है और सितंबर में सैनिकों की लामबंदी की घोषणा के बाद अब पुतिन ने खेरसॉन शहर को खाली करने का फैसला लिया है। वहीं, रूस और यूक्रेन के बीच की बातचीत भी ठंडे बस्ते में चली गई है।

विदेश नीति बदल रहे हैं पुतिन?
वहीं, पश्चिमी देशों के लगाए गये अभूतपूर्व प्रतिबंधों से इतन अब पुतिन उन देशों के साथ संबंधों को गहरा करना चाहते हैं, जिनके पारंपरिक रूप से मास्को के साथ अच्छे संबंध हैं या जो वैश्विक मामलों में संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभुत्व के खिलाफ हैं। राजनीतिक विश्लेषण फर्म आर पोलितिक के संस्थापक तातियाना स्टैनोवाया ने कहा कि, "पुतिन के विचार में जी20 शिखर सम्मेलन में जाने से इनकार रूस को तटस्थ राज्यों के साथ संबंध बनाने से नहीं रोकेगा।" उन्होंने कहा कि, "पुतिन का मानना है कि रूस की अमेरिकी विरोधी लाइन को बहुत समर्थन मिल रहा है।" वहीं, क्रेमलिन जोर देकर कहता है, कि रूस अलग-थलग नहीं है, और स्टानोवाया ने बताया कि पुतिन अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व में सहयोगियों की तलाश कर रहे हैं।

नये रिश्ते बना रहे हैं पुतिन
हालांकि, यूक्रेन पर रूस के हमले ने मध्य एशिया में मास्को के पड़ोसियों को भी झकझोर कर रख दिया है और कजाकिस्तान और उजबेकिस्तान जैसे देशों को कहीं और गठबंधन की तलाश करने के लिए प्रेरित किया है। कलाचेव ने कहा कि, पश्चिम के साथ रूस के टकराव ने उसे ग्लोबल पॉलिटिक्स और जलवायु परिवर्तन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर फैसले लेने के उसके विचार को हाशिये पर धकेल दिया है। उन्होंने कहा कि, रूस अब उत्तर कोरिया और ईरान के साथ खुलकर दोस्ती बढ़ा रहा है, वहीं सऊदी अरब और अमेरिका के बीच आए दरार का भी फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है, जबकि भारत और चीन के साथ उसके रिश्ते पहले से ही मजबूत रहे हैं, जिससे फिलहाल वो काफी फायदा उठा रहा है।